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टीवी, इंटरनेट पर देखने वाले कार्यक्रमों से पता लगाई जा सकती है बच्चों की मनोदशा

भारतीय बाल चिकित्सा अकादमी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. हरमेश ¨सह बैंस ने कहा कि दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं भारत में होती हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें 22 प्रतिशत जनसंख्या 10 से 19 वर्ष के बच्चों और किशोरों की रहती है। वर्ष 2014 से 2016 के आंकड़ों के मुताबिक 26 हजार 476 किशोरों ने आत्महत्याएं की हैं, लेकिन इनमें से

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Feb 2019 05:02 AM (IST)Updated: Mon, 18 Feb 2019 05:02 AM (IST)
टीवी, इंटरनेट पर देखने वाले कार्यक्रमों से पता लगाई जा सकती है बच्चों की मनोदशा
टीवी, इंटरनेट पर देखने वाले कार्यक्रमों से पता लगाई जा सकती है बच्चों की मनोदशा

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र: भारतीय बाल चिकित्सा अकादमी के पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. हरमेश ¨सह बैंस ने कहा कि दुनिया में सबसे ज्यादा आत्महत्याएं भारत में होती हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें 22 प्रतिशत जनसंख्या 10 से 19 वर्ष के बच्चों और किशोरों की रहती है। वर्ष 2014 से 2016 के आंकड़ों के मुताबिक 26 हजार 476 किशोरों ने आत्महत्याएं की हैं, लेकिन इनमें से 80 प्रतिशत बच्चों की जान बचाई जा सकती है। अगर अभिभावक व शिक्षक सचेत रहें और बच्चों की गतिविधियों पर अपनी नजर बनाए रखें तो मानसिक रूप से परेशान और विचलित बच्चों की जान बचाई जा सकती है। केवल इस बात से भी बच्चे की मानसिक स्थिति को परखा जा सकता है कि वह टीवी और इंटरनेट पर क्या देख रहा है और किस तरह के कार्यक्रम और फिल्म देख रहा है।

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वे एक निजी होटल में मिशन किशोर उदय कार्यशाला में 40 बाल चिकित्सकों, विज्डम, द मिलेनियम, सहारा स्कूल, ग्रीन फील्ड, एचएम मथाना व कई विद्यालयों से आए शिक्षकों और बच्चों के अभिभावकों को संबोधित कर रहे थे। इसमें बहुत बड़ा योगदान मोबाइल और इंटरनेट का भी है। जब तक बच्चों को मानसिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं किया जाता कि इंटरनेट के फायदों की बजाय उसका लाभ किस तरह से लेना है तब तक इस समस्या से उबर पाना मुश्किल है। तनाव को मैनेज करना जरूरी

इस दौरान अकादमी के जिला प्रधान डॉ. राकेश भारद्वाज ने कहा कि छात्र अपने तनाव को मैनेज नहीं कर पाते। घर, स्कूल या कॉलेज में उन्हें अपनी भावनाओं का इजहार का मौका नहीं मिलता। बहुत से छात्र पहचान के संकट से जूझते हैं, अपने भविष्य को लेकर असुरक्षित महसूस कर रहे छात्र सबसे अलग रहना शुरू कर देते हैं और धीरे-धीरे अवसादग्रस्त रहना शुरू कर देते हैं। ऐसी स्थिति में ऐसे बच्चों को अभिभावक चिकित्सक के माध्यम से काउंसि¨लग करवाकर अवसाद से बाहर निकाल सकते हैं। इसके अलावा पढ़ाई को हौव्वा न बनाएं और ज्यादा नंबर लाने के लिए उस पर दबाव न बनाए। पढ़ाई में मन न लगने पर उसकी खूबियों पर फोकस करें और प्रोत्साहित करें। बच्चों को किया जाएगा प्रोत्साहित

डॉ. राकेश भारद्वाज ने बताया कि रोटरी क्लब के साथ अकादमी का एक एमओयू हुआ है, जिसके तहत स्कूलों के बच्चों को प्रोत्साहित व प्रेरित किया जाएगा। डॉ. एएस चावला लुधियाना, रोहतक से डॉ. सतीश शर्मा, डॉ. छाया प्रसाद ने मौजूदा लोगों को संबोधित किया। इस अवसर पर डॉ. संजय शर्मा, जिला रोटरी अजय मदान, सचिव कुलदीप गुप्ता, भारतीय बाल चिकित्सक के जिला सचिव डॉ. तनुज अग्रवाल, डॉ. केदार गोयल, डॉ. गीता गोयल, डॉ. जगमाल ¨सह, डॉ. सुरेंद्र राणा, डॉ. रेखा, बलराम शर्मा, रमेश व अन्य मौजूद रहे।


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