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इस बार होली पर देवगुरु बृहस्पति अपनी राशि में होंगे, 499 साल बाद ऐसा संयोग, होलाष्टक 2 से,

होली पर इस बार देवगुरु बृहस्पति अपनी धनु राशि और शनि ग्रह अपनी ही राशि मकर में रहेंगे। ऐसा संयोग 499 साल बाद बन रहा है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sat, 29 Feb 2020 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 29 Feb 2020 12:46 PM (IST)
इस बार होली पर देवगुरु बृहस्पति अपनी राशि में होंगे, 499 साल बाद ऐसा संयोग, होलाष्टक 2 से,
इस बार होली पर देवगुरु बृहस्पति अपनी राशि में होंगे, 499 साल बाद ऐसा संयोग, होलाष्टक 2 से,

कुरुक्षेत्र [जगमहेंद्र सरोहा]। इस बार होली के दिन देवगुरु बृहस्पति अपनी धनु राशि और शनि ग्रह अपनी ही राशि मकर में रहेंगे। इससे पहले इन दोनों ग्रहों का ऐसा योग तीन मार्च, 1521 को बना था। उस समय भी ये दोनों ग्रह अपनी राशि में ही थे। होली पर शुक्र मेष राशि, मंगल और केतु धनु, राहु मिथुन, सूर्य और बुध कुंभ और चंद्र सिंंह राशि में रहेगा। ग्रहों के इन योगों में होली आने से यह शुभ फल देने वाली रहेगी। इस बार 9 मार्च को होली है।

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धार्मिक शोध केंद्र के अध्यक्ष पंडित ऋषभ वत्स ने बताया कि यह बात विशेष स्मरणीय है कि हर साल जब सूर्य कुंभ राशि और चंद्र सिंह राशि में होता है, तब होली मनाई जाती है। वह फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा का दिन ही होता है। होलिका दहन से अगले दिन को रंगवाली होली या फाग के नाम से जाना जाता है। इस दिन गुलाल और पानी के रंगों से उत्सव मनाया जाता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से पूर्णिमा तक होलाष्टक रहता है। इस बार होलाष्टक 2 से 9 मार्च रात्रि 11:17 तक रहेंगे। होलाष्टक में सभी तरह के शुभ कर्म वर्जित होते हैं। इन दिनों में पूजा-पाठ और दान-पुण्य करने का विशेष महत्व है। होलाष्टक अवधि को तांत्रिक पूजा, क्रूर ग्रह शांति के लिए काफी उपयुक्त समय माना जाता है।

होली की पौराणिक कथा

होली की कथा भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की बहन होलिका से जुड़ी हुई है। कथा के अनुसार प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप असुरों का राजा था। वह भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान का परम भक्त था। इस बात से हिरण्यकश्यप बहुत नाराज और क्रोधित रहता था। उसने कई बार प्रह्लाद को मारने की कोशिश की, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। उसकी बहन होलिका को वरदान मिला था कि वह आग में नहीं जलेगी। फाल्गुन मास की पूर्णिमा पर हिरण्यकश्यप ने लकड़ी की शय्या बनाकर होलिका की गोद में प्रह्लाद को बैठा दिया और आग लगा दी। इस आग में भगवान विष्णु के आशीर्वाद से प्रह्लाद तो बच गया, लेकिन होलिका जल गई। तभी से हर वर्ष इसी तिथि पर होलिका दहन किया जाता है।

होलिका दहन का ज्योतिषीय महत्व

इस बार होलिका दहन नौ मार्च दिन सोमवार रात्रि 11:17 से पहले ही होगा। यह दहन पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र ङ्क्षसह राशि में होगा। रात्रि 6:44 से 9:02 तक का समय होलिका दहन के लिए सर्वोत्तम है।

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