विदेशों में भी हैं चीनी मिट्टी पर की गई हस्तकला के दिवाने
उतर प्रदेश मेरठ में जन्मे पले अनीश खान के हाथों में इतना जादू है कि उनकी हस्तकला के दीवाने भारत में ही नहीं विदेशों तक में हैं। शिल्पकार अनीश खान ने अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में लगाए स्टाल में आकर्षक चीनी मिट्टी के बर्तन सजाए हुए हैं। उन्होंने कहा कि शौक-शौक में ही उनकी हस्तकला को देश में ही नहीं अन्य देशों में भी एक पहचान मिलेगी ऐसा सोचा भी नहीं था लेकिन उनकी मेहनत और लग्न रंग लाई।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : उतर प्रदेश मेरठ में जन्मे पले अनीश खान के हाथों में इतना जादू है कि उनकी हस्तकला के दीवाने भारत में ही नहीं विदेशों तक में हैं। शिल्पकार अनीश खान ने अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में लगाए स्टाल में आकर्षक चीनी मिट्टी के बर्तन सजाए हुए हैं। उन्होंने कहा कि शौक-शौक में ही उनकी हस्तकला को देश में ही नहीं अन्य देशों में भी एक पहचान मिलेगी, ऐसा सोचा भी नहीं था, लेकिन उनकी मेहनत और लग्न रंग लाई। अपनी मेहनत से पत्थरों को पीसकर पाउडर बनाकर और चीनी मिट्टी तैयार करके बर्तनों का रुप देना उनके जीवन का एक मकसद बन गया।उनके इस मकसद ने वर्ष 2006 में एक मुकाम हासिल किया, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने विशालकाय बाउल और उस पर विशेष रंगों से की गई पेंटिंग को स्टेट अवार्ड से नवाजा। यह अवार्ड हासिल करने के बाद उनके हौसलों को उड़ान मिली और लगातार अच्छी गुणवता के चीनी मिट्टी के बर्तन तैयार करने लगे। शिल्पी अनीश खान का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में पिछले पांच सालों से आ रहे हैं, इस महोत्सव में अमेरिका में सप्लाई की गई हांडी भी लेकर आए हैं, इसके अलावा विशेष रंगों से नक्काशी की गई प्लेटों को भी पर्यटकों के लिए रखा है। इन सभी चीनी के बर्तनों को और उस पर की गई पेंटिग को हाथ से ही तैयार किया जाता है। इसके कारण ही उनकी शिल्प कला को लोग सराह रहे हैं। उनके पास हाथ से तैयार किए गए रंगों से विशेष प्रकार डिश प्लेट भी रखी है। एक दिन में चार प्लेट पर पेंटिग का कार्य मुश्किल से पूरा हो पाता है। इस बार उनके स्टाल पर 20 रुपये से लेकर 1200 रुपये तक का समान रखा हुआ है।
पंजाब की फुलकारी का सिगापुर और मलेशिया में भी छाया जादू
फोटो संख्या : 10 कुरुक्षेत्र : पंजाब के पटियाला में बनी फुलकारी का जादू भारत के साथ-साथ सिगापुर और मलेशिया में भी छाया है। इन दोनों देशों में एक साल में 10 लाख रुपये से ज्यादा कीमत की फुलकारी लगातार भेजी जा रही है। हालांकि एक साल में केवल 40 लाख रुपये की फुलकारी की बिक्री कर रहे हैं। खास बात यह है कि आधुनिक दौर में युवा पीढ़ी फुलकारी से धीरे-धीरे मुंह मोड़ती नजर आ रही है। लेकिन पंजाब की इस लोक संस्कृति को बचाने के लिए पंजाब और आसपास के राज्यों में लगने वाले मेलों में फुलकारी को सजा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव के शिल्प मेले में फुलकारी लेकर पहुंचे मुकेश अग्रवाल का कहना है कि यह महोत्सव पंजाब की लोक संस्कृति फुलकारी को सहेजने का काम कर रहा है। वह इस महोत्सव में पिछले पांच सालों से आ रहे हैं, यहां का माहौल उन्हें हर वर्ष ब्रह्मासरोवर के इस शिल्प मेले में खींचकर ले आता है। इसलिए युवा पीढ़ी को फुलकारी की संस्कृति से रुबरु करवाने के लिए अलग-अलग डिजाइन की फुलकारी लेकर महोत्सव में पंहुच रहे हैं। इस महोत्सव में उनके पास फुलकारी के 25 तरह के डिजाईन हैं और इनमें से कई ऐसी फुलकारी हैं, जिनको तैयार करने में 28 से 32 दिन का समय लग जाता है। इन फुलकारियों पर हाथों से कढ़ाई का काम करवाते हैं। उन्होंने कहा कि भारत में पंजाब, चंड़ीगढ़, दिल्ली में फुलकारी को सबसे ज्यादा पंसद किया जाता है, लेकिन अन्य प्रदेशों में फुलकारी के कद्रदान काफी कम हैं। इस समय उनके पास 800 से लेकर 1500 रुपये तक की फुलकारी है। पटियाला के त्रिपड़ी क्षेत्र में फुलकारी को तैयार किया जाता है और इस फुलकारी की महक भारत ही नहीं अन्य देशों में भी फैल रही है। महाराष्ट्र की तंदूरी चाय भी पहुंची महोत्सव में
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कुरुक्षेत्र : अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में चाय पीने का शौक रखने वालों लोगों के लिए एक अच्छी खबर है, इस महोत्सव में पर्यटकों का स्वाद बढ़ाने के लिए महाराष्ट्र के पुणे की तंदूरी चाय लेकर पहुंचे हैं उत्तर प्रदेश के लखनऊ के रहने वाले अनिल सिंह। यह चाय जहां लोगों के स्वाद को बढ़ाएगी वहीं स्वास्थ्य को भी ठीक रखेगी। यह चाय मिट्टी के कुल्लड़ में सर्व की जा रही है। महोत्सव में तंदूरी चाय लेकर पहली बार पहुंचे लखनऊ निवासी अनिल सिंह ने स्टाल नंबर 104 पर तंदूरी चाय रखी है, इस चाय की कीमत 30 रुपये प्रति कप रखी गई है। लखनऊ निवासी अनिल सिंह ने बताया कि तंदूरी चाय को तैयार करने के लिए सबसे पहले तंदूर को अच्छी तरह गर्म करके उसमें कुल्हड़ को गर्म किया जाता है और इस कुल्हड़ में फिर बनी हुई चाय डाली जाती है। यह चाय कुल्हड़ में उबाले लेती है, इसके पश्चात चाय को मिट्टी के छोटे कुल्हड़ में सर्व किया जाता है। इस चाय को सर्व करने में कुछ ज्यादा खर्चा होता है, जिसके कारण ही एक कप चाय की कीमत 30 रुपये रखी गई है। इस चाय का स्वाद बहुत अलग प्रकार का होता है और यह स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव नहीं डालती है। उन्होंने तंदूरी चाय बनाने का तरीका महाराष्ट्र पुणे के खरारी चौक से सीखा और इस तरह की चाय सीखकर लखनऊ में लोगों को तंदूरी चाय पिला रहे हैं। उनकी चाय को उत्तर प्रदेश के साथ-साथ दिल्ली के प्रगति मैदान में भी खूब पंसद किया गया। वहीं से उन्हें महोत्सव के मेले के बारे में जानकारी मिली। इस जानकारी के बाद ही उन्होंने महोत्सव में आने का मन बनाया और वह पहली बार इस महोत्सव में कुरुक्षेत्र पहुंचे। महोत्सव में पहुंचने के पहले दिन ही उनकी चाय को लोगों ने खूब पसंद किया है।