मन को अपने कर्म के प्रति स्थिर रखने वाला ग्रंथ है गीता : महाराज
ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि श्रीमद्भगवद गीता मन को कर्म के प्रति स्थिर रखने वाला ग्रंथ है। मन स्थिर रहने पर ही मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह तनाव से मुक्त होता है। वह रविवार को शाहाबाद के मारकंडा नेशनल कालेज में शुरू हुए तीन दिवसीय दिव्य गीता सत्संग में प्रवचन कर रहे थे।
संवाद सहयोगी, शाहाबाद : गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने कहा कि श्रीमद्भगवद गीता मन को कर्म के प्रति स्थिर रखने वाला ग्रंथ है। मन स्थिर रहने पर ही मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और वह तनाव से मुक्त होता है। वह रविवार को शाहाबाद के मारकंडा नेशनल कालेज में शुरू हुए तीन दिवसीय दिव्य गीता सत्संग में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि गीता किसी को भी उसके व्यवहारिक दायित्वों से उदासीन करने वाला ग्रंथ नहीं है। उन्होंने कहा कि मनुष्य के सामने समस्या मानसिक हलचल की है, मानसिक स्थिरता की है। वह मन ही है? जो कई बार ध्यान में बैठने पर भी भजन पाठ का पूरा लाभ नहीं लेने देता। उन्होंने कहा कि मन जितना उधेड़बुन में, ऊहापोह में, चिता चितन में या व्यर्थ की सोच में लगा रहेगा, उतना ही अंदर की क्षमताओं का नाश होता रहेगा। यह जीवन बहुत अनमोल है। गीता में विश्व की हर समस्या का समाधान है। गीता का एक-एक शब्द भगवान की दिव्य वाणी है। इस मौके पर मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार और पूर्व मंत्री कृष्ण बेदी को स्वामी ज्ञानानंद महाराज ने स्मृति चिह्न प्रदान किया। श्री कृष्ण कृपा एवं जीओ गीता परिवार से विजय आनंद, राममूर्ति शर्मा, सुरेंद्र बजाज, खरैती लाल मक्कड़ और प्रकल्प प्रमुख राजिद्र बतरा ने सभी श्रद्धालुओं का स्वागत किया। मंच का संचालन हरीश मुंजाल ने किया। उद्योगपति यशपाल वधवा, नगर पालिका प्रधान बलदेव राज चावला, राज सतीजा, राजेश चावला और मुलख राज गुंबर ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया।