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धौलावीरा में पत्थरों को काटकर बनाया गया तालाब जल संरक्षण की दृष्टि से अदभुत : प्रो. एसपी शुक्ल

भारत रत्न गुलजारी लाल नंदा नीतिशास्त्र एवं दर्शन केंद्र में साप्ताहिक व्याख्यान माला के प्रथम सत्र में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एसपी शुक्ल ने प्राचीन भारत में जल प्रबंधन तथा आधुनिक परिदृश्य विषय पर व्याख्यान दिया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 08 Jun 2019 09:12 AM (IST)Updated: Sat, 08 Jun 2019 09:12 AM (IST)
धौलावीरा में पत्थरों को काटकर बनाया गया तालाब जल संरक्षण की दृष्टि से अदभुत : प्रो. एसपी शुक्ल
धौलावीरा में पत्थरों को काटकर बनाया गया तालाब जल संरक्षण की दृष्टि से अदभुत : प्रो. एसपी शुक्ल

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : भारत रत्न गुलजारी लाल नंदा नीतिशास्त्र एवं दर्शन केंद्र में साप्ताहिक व्याख्यान माला के प्रथम सत्र में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एसपी शुक्ल ने प्राचीन भारत में जल प्रबंधन तथा आधुनिक परिदृश्य विषय पर व्याख्यान दिया। विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में जल प्रबंधन तथा आधुनिक परिदृश्य विषय पर व्याख्यान दिया। विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष्य में तथा कुरुक्षेत्र तीर्थों का नंदा जी के द्वारा किए गए पुर्नरुद्धार के संदर्भ में यह व्याख्यान था। उन्होंने मोहनजोदड़ो, हड़प्पा के उत्खनन से लेकर ऋग्वेद व परवर्ती साहित्य में एवं शिलालेखों में उन्होंने तालाब, बावड़ी, कुंआ तथा वर्षा के जल के तरह-तरह के संरक्षण का उल्लेख किया।

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उन्होंने कहा कि धौलावीरा के उत्खनन से पत्थर को काटकर बनाए गए, अद्भुत तालाबों का जल संरक्षण दृष्टि से उपयोग आज विश्व प्रसिद्ध है। चंद्रगुप्त मौर्य के समय बनाए गए सुदर्शन झील का निर्माण में कैसे पर्सिया का आर्किटेक्ट शामिल था, यह 150 ई. का ऐतिहासिक जल संरक्षण का उपाय था। मोहनजोदड़ो में ही 700 से अधिक कुएं मिले हैं तथा वेदों में अधिकतर हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के भूगोल और जल सचेनता का विवरण प्राप्त होता है। वैज्ञानिक पक्ष में उन्होंने याद दिलाया कि दुनिया में 97 प्रतिशत जल समुद्र में है। 2.7 प्रतिशत दोनों मेरुओं में बर्फ के रूप में है। मात्र 0.3 प्रतिशत ही स्वच्छ जल मनुष्य व प्राणियों के उपयोग के लिए है। आज चाहिए गेहूं, चावल जैसे अनाज का उत्पादन कम करके बाजरा, ज्वार आदि अनाज की की ओर जाया जाए। जल के वैज्ञानिक रूप धार्मिक एवं नीति से पहले जुड़ा हुआ था। पिलनी व मसारू इमोटो जैसे वैज्ञानिकों ने जन के मनस्तात्विक पक्ष का गंभीर विश्लेषण किया जो हमारे वैदिक पौराणिक मान्यताओं से मिल जाता है। अगला विश्व युद्ध जल के कारण संभावित है। पंडित विनोद पचौरी ने अपने अध्यक्षीय वचन ने एक जल व पर्यावरण परक कविता से अपना विचार व्यक्त किया। कार्यक्रम के आरंभ में कदली वृक्ष का रोपण किया गया तथा सरस्वती वंदन प्रस्तुत किया गया। रमेश सुखीजा ने मंच संचालन किया। केन्द्र के कार्यकारी निदेशक डॉ. सुरेंद्र मोहन मिश्र ने अतिथियों का परिचय कराते हुए केन्द्र की गतिविधियों की जानकारी दी। व्याख्यान में राजेंद्र सिंह राणा, प्रो. ईश्वर मित्तल, शशी मित्तल, डॉ. ब्रजमोहन शर्मा, मुकेश कौशिक, बलवान सिंह, रणवीर रोड़, विक्रम शर्मा, रविदत्त, रवि कुकरेजा, हरिदत्त आदि उपस्थित रहे।

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