भगवान श्रीकृष्ण ने जहां गीता का ज्ञान दिया वहां आज सुदेश शर्मा दे रहीं कर्म का संदेश
ज्योतिसर की जिस पवित्र धरती से भगवान श्रीकृष्ण ने विश्व को गीता का ज्ञान दिया, आज उसी धरती की सुदेश शर्मा कर्म संदेश की सजीव संवाहक हैं।
कुरुक्षेत्र [बृजेश द्विवेदी]। ‘मेरे हाथ-पांव कांप गए थे। माथे पर पसीना आ गया था। दो चार मिनट और रुक जाती तो शायद चक्कर खाकर गिर पड़ती। मैं बैंक के पढ़े लिखे अफसरों से डर गई थी। जुबान ही नहीं खुली। मात्र तीसरी कक्षा तक जो पढ़ी थी। अपने पर भरोसा ही नहीं था। घटना को 13 वर्ष बीत चुके हैं। साथियों व सहयोगियों ने दोबारा बैंक भेजा। फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। आज हस्तशिल्पकार के रूप में पहचान है।’
भगवान श्री कृष्ण की धरती से यह कहानी खुद सुदेश शर्मा की जुबानी है। वह अब 500 परिवारों की प्रेरणा हैं। जिला ग्रामीण विकास अभिकरण (डीआरडीए) की प्रशिक्षक हैं। अपने ही बच्चों ने उन्हें अंग्रेजी बोलना-पढ़ना सिखाया। आज इनमें एक बेटा इंजीनियर तो दूसरा शिक्षक है।
ज्योतिसर की जिस पवित्र धरती से भगवान श्रीकृष्ण ने विश्व को गीता का ज्ञान दिया, आज उसी धरती की सुदेश शर्मा कर्म संदेश की सजीव संवाहक हैं। बात 2005 की है। खेतों में मजदूरी करने वाले पति की सहायता के लिए वह भैंस पालती थीं। किसी तरह घर का खर्च निकल रहा था। बड़ा बेटा 10वीं व छोटा 8वीं में था। बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए पैसे नहीं थे।
चुनौतियां बड़ी थी
सुदेश ने कहा कि चुनौतियां बड़ी थीं। परंतु जिजीविषा के सामने न उम्र बाधक बनी न पढ़ाई। पैर घर की चौखट से बाहर रखे। राह तलाशी। खुद तो स्वावलंबी हुई हीं, साथ ही अब तक करीब 500 महिलाओं को स्वरोजगार का रास्ता दिखा चुकी हैं। ये हस्तशिल्पकार महिलाएं अपने उत्पाद बाजारों में बेच अच्छा पैसा कमा रही हैं।
2005 में बनाया था समूह
सुदेश ने बताया कि सबसे पहले उन्होंने ग्रामीण विकास एजेंसी के तहत 2005 में सहगल फाउंडेशन एनजीओ के लिए स्वयं सहायता समूह बनाया था। पहली बार स्वयं सहायता समूह का खाता खुलवाने के लिए बैंक गईं तो अधिकारी के कार्यालय से बिना बात किए ही वापस आ गईं। एनजीओ सदस्यों ने दोबारा प्रेरित किया तो हिम्मत जुटाकर दोबारा बैंक गईं और खाता खुलवाया। उसके बाद मुड़कर नहीं देखा। अब सैकड़ों लोगों के बीच खड़े होकर बोलने में भी हिचक नहीं होती।
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