फोटो ¨खचवाने तक सीमित रह गया स्वच्छता अभियान
संवाद सहयोगी, पिपली : महात्मा गांधी की जयंती पर अधिकारी से लेकर राजनेता ने हाथ में झाड़ू लेकर गांव से लेकर शहर तक जोर-शोर से स्वच्छता अभियान चलाया, लेकिन ये अभियान केवल फोटो ¨खचवाने तक ही सीमित रहा। गांधी जयंती बीत जाने के बाद ये अभियान दम तोड़ गया। ग्रामीण इलाकों में जहां इसका साफ असर दिख रहा है, वहीं शहरी इलाके भी अछूते नहीं हैं। गांधी जयंती बीते दस दिन से ऊपर बीत चुके हैं।
संवाद सहयोगी, पिपली : महात्मा गांधी की जयंती पर अधिकारी से लेकर राजनेता ने हाथ में झाड़ू लेकर गांव से लेकर शहर तक जोर-शोर से स्वच्छता अभियान चलाया, लेकिन ये अभियान केवल फोटो ¨खचवाने तक ही सीमित रहा। गांधी जयंती बीत जाने के बाद ये अभियान दम तोड़ गया। ग्रामीण इलाकों में जहां इसका साफ असर दिख रहा है, वहीं शहरी इलाके भी अछूते नहीं हैं। गांधी जयंती बीते दस दिन से ऊपर बीत चुके हैं। आलम ये है कि ग्रामीण क्षेत्रों में जगह-जगह गंदगी के ढ़ेर स्वच्छता अभियान के नारे को ठेंगा दिखाते हुए नजर आते हैं। पिपली में गंदगी के ढ़ेर लगे अभियान की पोल खोल रहे हैं।
गांधी जयंती पर ग्रामीण क्षेत्रों में गांव के चौधरियों व नेताओं ने वाहवाही लूटने के लिए हाथ में झाड़ू लेकर स्वच्छता अभियान चलाया। इस अभियान के तहत गांव की गलियों में घूम-घूम कर ग्रामीणों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने का काम किया गया। शुरूआती दौर में तो स्वच्छता अभियान का ग्रामीण क्षेत्रों में असर दिखाई दिया, लेकिन जैसे ही गांधी जयंती बीती यह अभियान बेअसर होता चला गया। इसे लापरवाही कहें या जागरूकता की कमी कि प्रशासन केवल गांधी जयंती के अवसर पर ही स्वच्छता अभियान को जोर शोर से उठाने के बाद भूल जाता है। ग्रामीणों ने बताया कि स्वच्छता अभियान की आड़ में पंचायत की कमाई को व्यर्थ में ही लुटाया जा रहा है। जब तक स्वच्छता अभियान नियमित चलाने के लिए जवाबदेही तय नहीं की जाएगी, ऐसे अभियान चलाने का कोई फायदा नहीं है। ग्रामीणों का कहना है कि किसी विशेष दिन अभियान न चलाकर प्रतिदिन ऐसे अभियान चलाए जाने चाहिए, तभी स्वच्छता अभियान जागरूक होगा। ग्रामीणों ने बताया कि स्कूलों में भी बच्चों को स्वच्छता अभियान के प्रति नियमित रूप से जागरूक किया जाना चाहिए। स्कूलों में मात्र किसी विशेष दिन पर ही स्वच्छता अभियान चलाकर केवल खानापूर्ति की जाती है। पंचायतों की स्वच्छता अभियान के लिए जवाबदेही निश्चित की जानी चाहिए। खासतौर पर देखा जा रहा है कि पंचायतें ही अभियान को चलाने में सरकारी फरमानों को अमल में नहीं लाती। नतीजन करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी नतीजे शून्य नजर आते हैं।