यह है हौसले और जिद की अनोखी कहानी, हॉकी से अब बने सियासत के सूरमा
कभी जिस खिलाड़ी से यह कह दिया गया था कि अब शायद ही वह हॉकी खेल पाएगा उसी ने कई कीर्तिमान बनाए। इसके बाद राजनीति में उतरा तो सफलता हासिल कर दी।
कुरुक्षेत्र [विनोद चौधरी]। यह कहानी है एक जिद्दी बच्चे की है, जो बड़े भाई का ट्रैकसूट देख उसे पाने की हसरत रखता है और उसके लिए हॉकी के मैदान में पूरी लगन के साथ उतरता है। यह कहानी है उस युवा खिलाड़ी के हौसले की है जो कोमा से लौटने के बाद हॉकी के मैदान पर उतरने की इच्छाशक्ति रखता है। यह कहानी है संदीप सिंह की.., जिनकी जिद, लगन, हौसले और इच्छाशक्ति ने उन्हें न केवल हॉकी का दिग्गज खिलाड़ी बनाया, बल्कि राजनीति के मैदान में भी पहले ही दांव में सूरमा साबित किया।
हर किसी के जीवन में एक दौर आता है जब या तो वह टूट जाता है या और निखर जाता है। संदीप के जीवन में ऐसा दौर था 2006। साल 2006 में रीढ़ की हड्डी में गोली लगने के बाद 22 दिन कोमा में रहे संदीप ने कड़े संघर्ष के दम पर दो साल बाद ही मैदान में उतरकर हॉकी थाम ली थी। मौत के मुंह से लौटकर हॉकी के मैदान में आ डटे कुरुक्षेत्र के शाहाबाद के संदीप ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कीर्तिमान स्थापित किए।
भारत की तरफ से सबसे ज्यादा 170 गोल, एक मैच में पांच गोल तथा 145 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से शॉट लगाकर गोल करने जैसे विश्व रिकॉर्ड बनाकर संदीप ने दुनिया के सामने अपनी काबिलियत का लोहा मनवाया। संदीप ने 2009 में देश को सुल्तान अजलान शाह टूर्नामेंट का खिताब दिलवाया। उनकी ताकतवर ड्रैग फ्लिक के चलते हॉकी जगत में उन्हें ‘फ्लिकर सिंह’ नाम मिला।
भारत की ओर से सबसे कम उम्र में ओलंपिक खिलाड़ी बनने का सौभाग्य भी उनको हासिल है। हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने भी उनकी मेहनत, जज्बे और काबिलियत पर भरोसा कर पिहोवा विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी का टिकट देकर मैदान में उतारा। इस मैदान में भी संदीप सूरमा साबित हुए। उन्होंने 52 साल में पहली बार यह सीट भाजपा के खाते में डाली। मुख्यमंत्री ने भी इस सीट से जीत दर्ज करवाने पर उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा देते हुए खेल मंत्री का पद दिया।
17 साल की उम्र में शुरू किया था खेलना
संदीप ने अपनी शुरुआती शिक्षा शाहाबाद में ही हासिल की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने पटियाला स्थित खालसा कॉलेज में प्रवेश लिया और बाद में कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से बीए की डिग्री प्राप्त की। संदीप के बड़े भाई बिक्रमजीत सिंह को हॉकी से लगाव था। वह अक्सर संदीप के हाथों में भी हॉकी स्टिक थमा देते थे। बिक्रमजीत बताते हैं, ‘मैं बचपन से ही हॉकी खेलता था। जब मैं हॉकी की किट और ट्रैकसूट घर लेकर जाता तो संदीप ट्रैकसूट लेने की जिद करता। मैंने बोला यह अच्छे खिलाड़ी को ही मिलती है। इससे वह इतना प्रेरित हुआ कि पूरी लगन से हॉकी खेलने लगा।’
17 साल की उम्र में संदीप ने जूनियर हॉकी टीम में खेलना शुरू किया। यह उनकी लगन का ही परिणाम था कि एक साल बाद ही उन्हें ओलंपिक में भारत की ओर से खेलने का मौका मिला। 19 साल की उम्र में वह भारतीय जूनियर हॉकी टीम के कप्तान बने।गोली लगने के बाद के संघर्ष पर बनी फिल्म सूरमा: अगस्त 2006 को संदीप शताब्दी ट्रेन से चंडीगढ़ से दिल्ली जा रहे थे। जर्मनी में होने वाले सीनियर हॉकी वल्र्ड कप में हिस्सा लेने के लिए उन्हें दिल्ली से फ्लाइट पकड़नी थी। कुरुक्षेत्र रेलवे स्टेशन से पहले ट्रेन में अचानक गोली चली और वह उनकी कमर में आ लगी। गोली सीधे रीढ़ की हड्डी में धंसने से वह कोमा में चले गए। 22 दिन बाद कोमा से बाहर आए। इसके बाद दो साल तक पीजीआइ चंडीगढ़ में इलाज चला। इस दौरान संदीप ने कड़ी मेहतन की। कोमा से उठकर दोबारा हॉकी के मैदान में लौटने के उनके संघर्ष पर ही सूरमा फिल्म बनी, जिसके बाद से संदीप को सूरमा कहा जाने लगा।
..जब अस्पताल में ही मंगवाई हॉकी स्टिक
रीढ़ की हड्डी में गोली लगने के बाद डॉक्टर ने संदीप से कहा था कि अब वह शायद ही खेल पाएं, लेकिन उन्होंने तुरंत डॉक्टर की बात का जवाब देते हुए कहा कि वह हॉकी जरूर खेलेंगे। इसके बाद जब डॉक्टर कमरे से बाहर गए तो संदीप ने अपने बड़े भाई को बोला कि वह उन्हें अस्पताल में ही हॉकी लाकर दें। वह अपने पांव पर खड़े होंगे और हॉकी जरूर खेलेंगे। वापसी के बाद हॉकी के मैदान में उतरे संदीप ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कीर्तिमान बनाए।
भारत को ड्रैग फ्लिक में विश्व स्तर पर दिलाई पहचान
हॉकी में ड्रैग फ्लिक एक आर्ट है। भारत को हमेशा इसकी कमी खलती रही। जब हॉकी में पेनाल्टी कार्नर कनवर्जन के लिए इस प्रणाली को अपनाया गया तो हालैंड के फ्लोरिस जॉन बोवलेंडर से बड़ा दुनिया का कोई खिलाड़ी नहीं था। दुनिया पहली बार इस विधा से रूबरू हो रही थी। बोवलेंडर के ड्रैग फ्लिक बिजली की गति से गोलपोस्ट में समाते थे। स्कोर शीट में उनका नाम सबसे आगे रहता था। पाकिस्तान को सोहेल अब्बास के रूप में ऐसा चेहरा मिला जो बोवलेंडर की टक्कर का था, लेकिन भारत अपनी इस बड़ी कमजोरी से उबर नहीं सका।
संदीप सिंह वह चेहरा थे, जिन्होंने जुगराज सिंह के साथ भारत को इस विधा में विश्व स्तर पर पहचान दिलाई। इसके बाद तो रुपिंदर पाल सिंह और वीआर रघुनाथ और हरमनप्रीत सिंह जैसे खिलाड़ियों की लाइन लग गई। कहा जा सकता है कि हॉकी में भारत ने अगर विश्व स्तर पर फिर से पहचान बनाई थी तो उसके पीछे संदीप सिंह प्रेरित ड्रैग फ्लिक में कामयाबी भी थी।
संदीप को इसके लिए भी श्रेय दिया जा सकता है कि उन्होंने भारतीय हॉकी टीम में फिटनेस के लिए उभरे एक तरह के आंदोलन में भी अहम भूमिका निभाई। यह कोई सामान्य बात नहीं कि कभी कमजोर फिटनेस के कारण मात खा जाने वाली हॉकी की टीम इंडिया एक समय दुनिया की सबसे फिट टीम बन गई। फिटनेस को लेकर यह सोच अभी भी कायम है।
अब युवाओं को दिशा देने पर फोकस
हरियाणा के खेल मंत्री संदीप सिंह ने कहा कि खेल से युवा पीढ़ी को नई दिशा मिल सकती है। युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा मिलने पर ही देश उन्नति की राह पर आगे बढ़ेगा। अब वह युवाओं को खेल से जोड़ने के लिए काम करेंगे।
पत्नी भी हॉकी खिलाड़ी
हॉकी से प्रेम करने वाले संदीप को जीवनसाथी भी हॉकी से जुड़ा मिला। उनकी शादी 2009 में हरजिंदर कौर के साथ हुई। हरजिंदर भी भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा रही हैं। गोल्ड मेडल हासिल किया है। हरजिंदर ने शादी के बाद संदीप के अनुरोध पर अपने हॉकी के सपने को पीछे छोड़ने का फैसला किया और अब वह अपने बेटे सहजदीप की देखभाल करती हैं। संदीप को खाने में पास्ता, सलाद, अंकुरित अनाज पसंद है। वर्कआउट करना, म्यूजिक सुनना और फिल्में देखना उनकी हॉबी है। फिल्मी दुनिया की बात करें तो शाह रुख खान उनके पसंदीदा अभिनेता हैं।
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