साधना की आधार भूमि है नैतिकता : मिश्रा
भारतरत्न गुलजारी लाल नंदा केंद्र के नीतिशास्त्र और दर्शनशास्त्र के निदेशक डा. सुरेंद्र मोहन मिश्रा ने कहा कि साधना की आधार भूमि नैतिकता है।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र :
भारतरत्न गुलजारी लाल नंदा केंद्र के नीतिशास्त्र और दर्शनशास्त्र के निदेशक डा. सुरेंद्र मोहन मिश्रा ने कहा कि साधना की आधार भूमि नैतिकता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि नैतिकता साधना का चरम लक्ष्य नहीं है और नीतिवादी होना दूसरों के लिए भले ही चरम आदर्श हो, पर एक साधक के लिए जीवन में कोई महत्वपूर्ण अवस्था नहीं है। वह रविवार को नीति शास्त्र और दर्शन शास्त्र केंद्र कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और आनंद मार्ग प्रचारक संघ के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को करवाए गए वेबिनार में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि साधना के प्रारंभ में ही मानसिक सामंजस्य की आवश्यकता होती है । इसी मानसिक सामंजस्य का नाम नैतिकता है। आचार्य दिव्यचेतनानंद अवधूत कहा कि बहुत बार लोग कहते हैं, मैं धर्म-कर्म कुछ नहीं समझता, सत्य पथ पर रहूंगा, झूठ नहीं बोलूंगा। उन्होंने कहा कि सब यही पर्याप्त है और इससे अधिक कुछ करने की या सीखने की आवश्यकता नहीं है। नैतिकता सामंजस्यपूर्ण जीवन बिताने का प्रयत्न है। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन विश्वविद्यालय के उपनिदेशक डा. विश्वजीत भौमिक ने कहा कि नैतिक आदर्श ऐसा होना चाहिए, जिससे मनुष्य को साधना मार्ग में चलने का सामर्थ्य भी मिले और प्रेरणा भी मिले। नॉर्थ बंगाल विश्वविद्यालय के दर्शन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. लक्ष्मीकांत पाधी ने कहा कि चोरी न करना ही मनुष्य के जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं हो सकता, चोरी करने की प्रवृत्ति का नष्ट होना नई बात है। झूठ बोलना चरम लक्ष्य नहीं, मन से मिथ्यावाद दूर हो जाय यही बड़ी बात है। मुंबई विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग के प्रो. शेफाली पांडया ने कहा कि साधक की यात्रा का मार्ग नीतिवाद के उस प्रारंभिक रूप से शुरु होता है, जहां झूठ नहीं बोलना, चोरी न करना, आदि उसका आधार होता है। इस वेबिनार में पंचानन बर्मा विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग के सहायक प्राचार्या डा. सुनंदिता भौमिक, रवि दत्ता भी शामिल रहे।