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आधार ने मोनू को परिवार से मिलवाया

टैक्नोलॉजी दुरुपयोग से कुछ परिवार बरबाद हो रहे है तो कुछ परिवार आपस में जुड़ भी रहे हैं। ऐसी की एक कहानी है धर्मनगरी के मोनू की। जो अपने परिवार से पांच साल पहले यानी 20 फरवरी 2015 को एक शादी समारोह में गुम हो गया था और घूमते-घूमते मोनू करीब ढाई साल बाद महाराष्ट्र के रेलवे स्टेशन पर पहुंचा तो जिला बाल संरक्षण टीम महाराष्ट्र को मिला।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Feb 2020 09:27 AM (IST)Updated: Fri, 21 Feb 2020 09:27 AM (IST)
आधार ने मोनू को परिवार से मिलवाया
आधार ने मोनू को परिवार से मिलवाया

अनुज शर्मा, कुरुक्षेत्र : टेक्नोलॉजी दुरुपयोग से कुछ परिवार बर्बाद हो रहे है तो कुछ परिवार आपस में जुड़ भी रहे हैं। ऐसी ही एक कहानी है धर्मनगरी के मोनू की। जो अपने परिवार से पांच साल पहले यानी 20 फरवरी 2015 को एक शादी समारोह में गुम हो गया था। घूमते-घूमते मोनू करीब ढाई साल बाद महाराष्ट्र के रेलवे स्टेशन पर पहुंचा तो जिला बाल संरक्षण टीम महाराष्ट्र को मिला। जहां से टीम ने उसे बाल आश्रम में भेज दिया।

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इसके ढाई साल बाद 6 फरवरी 2020 को बाल आश्रम में रहने के बाद आश्रम ने मोनू को सरकारी फंड दिलवाने के लिए उसका आधार कार्ड बनवाने के लिए जैसे ही उसकी अंगुली आधार मशीन पर रखी तो उसका पिछला सारा रिकॉर्ड कंप्यूटर स्क्रीन पर आ गया।

जिला बाल संरक्षण अधिकारी इंदू शर्मा व रिचा शर्मा ने बताया कि 6 फरवरी 2020 को महाराष्ट्र की बाल संरक्षण टीम ने फोन किया और बताया कि गांव बारना जिला कुरुक्षेत्र का बच्चा मोनू मिला है। वह सोचने-समझने व बोलने में असमर्थ है। इसके बाद उनकी टीम बताए गए गांव में जाकर बच्चे के स्वजनों से मिली। टीम ने स्वजनों की वीडियो कॉल कर बच्चे की पहचान करवाई। जिससे पता लगा कि बच्चा उनका ही है। इसके बाद ही बच्चे को अपने घर लाने की प्रक्रिया शुरू की और इत्तेफाक से जिस दिन बच्चा शादी समारोह से गुम हुआ था। उसी तारीख को यानी 20 फरवरी 2020 को अपने परिवार को मिल गया।

कई साल तक खाए धक्के

मोनू के पिता हरिराम ने बताया कि मोनू की चिता ज्यादा इसलिए थी कि वह दिमागी रूप से कमजोर है। वह सुन तो सकता है लेकिन बोल नहीं सकता। उसके लिए ज्योतिष, पीर-फकीर के पास गए और कई मंदिरों व मजारों पर मन्नत भी मांगी। इसके बावजूद भी कोई असर नहीं होता दिखा। पुलिस स्टेशन में भी रिपोर्ट दर्ज कराई, लेकिन पुलिस भी ढूंढकर थक गई। इसके बाद उन्होंने अपने बच्चे से मिलने तक की आस खो दी थी। बाल संरक्षण की टीम उनके घर पर आई और वीडियो कॉल करवा कर उन्हें बच्चा दिखाया तो उनकी आंखों में आंसू आ गए। तब से ही वे अपने बच्चे को घर लाने के लिए टीम के साथ संपर्क में रहे और 20 फरवरी को वे अपने बच्चे को घर पर लाए।

वर्जन : टीम का रहा योगदान

पांच साल बाद बच्चे को उसके स्वजनों से मिलवाने में उनकी टीम का योगदान रहा है। वह अपने आप को खुश किस्मत मानती है।

इंदू शर्मा, जिला बाल संरक्षण अधिकारी, कुरुक्षेत्र।


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