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धर्मनगरी के मिल मालिक हजम कर गए 141 करोड़ रुपये का चावल

धर्मनगरी के कुछ मिल मालिक कस्टम मीलिग का 4.60 लाख क्विटल चावल हजम कर गए। यह आज के बाजार भाव में करीब 141 करोड़ की बड़ी राशि है। सरकार ब्याज राशि जोड़कर इसकी रिकवरी करती है तो यह 400 से 500 करोड़ रुपये तक होगी है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 19 Jul 2020 07:20 AM (IST)Updated: Sun, 19 Jul 2020 07:20 AM (IST)
धर्मनगरी के मिल मालिक हजम कर गए 141 करोड़ रुपये का चावल
धर्मनगरी के मिल मालिक हजम कर गए 141 करोड़ रुपये का चावल

जगमहेंद्र सरोहा, कुरुक्षेत्र

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धर्मनगरी के कुछ मिल मालिक कस्टम मीलिग का 4.60 लाख क्विंटल चावल हजम कर गए। यह आज के बाजार भाव में करीब 141 करोड़ की बड़ी राशि है। सरकार ब्याज राशि जोड़कर इसकी रिकवरी करती है तो यह 400 से 500 करोड़ रुपये तक होगी है। अकेले कुरुक्षेत्र के 78 मिलों की रिकवरी है। करनाल, कैथल और यमुनानगर को खंगाला जाए तो कस्टम मीलिग में बड़ा घोटाला उजागर हो सकता है। जानकारों का कहना है कि कस्टम मीलिग शुरू होने से आज तक करीब 20 साल में इतना बड़ा फटका मिल मालिक सरकार को लगा चुके हैं। इसमें विभाग के कई बड़े अधिकारियों का भी हाथ है। चावल घोटाले में मलाई खाने वाले अधिकारी आज भी बड़ी कुर्सियों पर जमे बैठे हैं।

जानकारों का कहना है कि कस्टम मीलिग का काम 1999 में शुरू हुआ था। मिल मालिक शुरू दिन से ही धान लेकर चावल देने के वक्त पीछे हट जाते हैं। फिजिकल वेरीफिकेशन और कोर्ट में केस करने के बाद भी रिकवरी नहीं हो पाती। इस बार 238 मिलो को करीब 11.47 लाख मीट्रिक टन धान दिया था। इसमें भी तय समय 15 जुलाई तक पूरी रिकवरी नहीं हुई है। ये दो उदाहरण

मामला नंबर-एक

जिले के एक मिल मालिक ने कई साल पहले 300-400 गाड़ी धान की ली थी। उसने कुछ ही चावल विभाग को लौटाया। इसके बाद विभाग के कई बार नोटिस गए, लेकिन कोई रिकवरी नहीं कराई गई। यह मामला आज भी लटका हुआ है।

मामला नंबर-दो

एक पूर्व विधायक का पिहोवा क्षेत्र में राइस मिल है। विभाग ने उनको सात-आठ साल पहले 3-4 करोड़ का धान दिया था। उन्होंने पूरा चावल वापस नहीं किया। डीएफएसस ने उनकी प्रॉपर्टी अटैच करने का फैसला लिया, लेकिन आज तक वह भी नहीं हो पाया है। आधी अधूरी फाइलों व सेटिग बड़ा रोड़ा

डीएफएससी मिल मालिकों से सिक्योरिटी राशि लेते हैं। संबंधित फर्म से एक गारंटर और फिक्सड डिपोजिट लिया जाता है। विभाग चावल की रिकवरी के लिए कोर्ट में भी जाता है, लेकिन विभाग यहां आरोप तय नहीं कर पाता। उनकी फाइलों में कम मिलती है या फिर फर्म किसी के नाम होती है और उसकी प्रॉपर्टी आगे किसी के नाम होती है। इन सबके चलते विभाग रिकवरी नहीं कर पा रहा है। यह होती है कस्टम मीलिग

सरकार हर साल किसानों से धान खरीदती है। इससे आगे मिल मालिकों को चावल निकालने के लिए देती है। मिल मालिक एक क्विंटल धान पर 67 किलोग्राम चावल सरकार को वापस करती है। सरकार इसके बदले मिल मालिकों को 10 रुपये प्रति क्विंटल चार्ज देती है। इसके विभाग की भाषा में कस्टम मीलिग कहते हैं। वर्जन :

ऐसा कोई मिल मालिक एसोसिएशन का सदस्य नहीं है और न ही उनको बनाया जाता। एसोसिएशन अपने सदस्यों से सौ प्रतिशत रिकवरी का भरोसा दिलाती है। वे इसकी जिम्मेदारी भी लेते हैं।

ज्वैल सिगला, चेयरमैन, हरियाणा राइस मिलर एसोसिएशन, कुरुक्षेत्र।


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