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कोरोना में शिल्पियों ने उधार लेकर तराशा हुनर, अब कद्रदानों का इंतजार

कोरोना काल में काम-धंधे प्रभावित हुए तो शिल्पकारों को भी इसकी मार झेलनी पड़ी। शिल्पकारों के हुनर पर लाकडाउन लग गया। नौबत यहां तक आ गई थी कि शिल्पकारों को उधार लेकर अपने हुनर को तराशना पड़ा। अब कोरोना की पहली व दूसरी लहर के बाद शिल्प मेलों का आगाज हुआ है। कुछ शिल्पकार दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे व्यापार मेले से सीधे अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में पहुंचे हैं। उन्हें अब कोरोना का साया छंटता नजर आ रहा है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Dec 2021 12:18 AM (IST)Updated: Sat, 04 Dec 2021 12:18 AM (IST)
कोरोना में शिल्पियों ने उधार लेकर तराशा हुनर, अब कद्रदानों का इंतजार
कोरोना में शिल्पियों ने उधार लेकर तराशा हुनर, अब कद्रदानों का इंतजार

सतविद्र सिंह, कुरुक्षेत्र : कोरोना काल में काम-धंधे प्रभावित हुए तो शिल्पकारों को भी इसकी मार झेलनी पड़ी। शिल्पकारों के हुनर पर लाकडाउन लग गया। नौबत यहां तक आ गई थी कि शिल्पकारों को उधार लेकर अपने हुनर को तराशना पड़ा। अब कोरोना की पहली व दूसरी लहर के बाद शिल्प मेलों का आगाज हुआ है। कुछ शिल्पकार दिल्ली के प्रगति मैदान में लगे व्यापार मेले से सीधे अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में पहुंचे हैं। उन्हें अब कोरोना का साया छंटता नजर आ रहा है।

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अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में राज्य व राष्ट्रीय स्तरीय शिल्पकार अपनी शिल्पकला प्रदर्शित कर रहे हैं। इनमें से एक हैं काष्ठ नक्काशी कारीगर सहारनपुर निवासी मोहम्मद इमरान। मोहम्मद इमरान लकड़ी की शिल्पकला में माहिर हैं। पुश्तैनी काम में मोहम्मद को अपने हुनर की बदौलत वर्ष 2007 में राष्ट्रीय अवार्ड मिल चुका है। महज छठी पास मोहम्मद की शिल्पकला के विदेशी भी कायल हैं। वे विदेश में न केवल शिल्पकला का प्रशिक्षण देने जाते हैं, बल्कि वे देशभर में आयोजित होने वाले शिल्प मेलों अपनी कला को प्रदर्शित भी करते हैं, मगर अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव उनका सबसे पंसदीदा शिल्प मेला है। यहां उनकी शिल्पकला के सबसे ज्यादा कद्रदान हैं। अंतरराष्ट्रीय गीता महोत्सव में वे आठ सीटर सोफा सेट डेढ़ लाख रुपये से ज्यादा का बेच चुके हैं। इसके साथ ही लकड़ी पर तांबे की नक्काशी को लेकर बनाई गई गांधी की मूर्ति 25 हजार की बिकी है।

मोहम्मद इमरान बताते हैं कि शीशम, सागवान, नीम, आम व पापुलर की लकड़ी पर सबसे बेहतर कास्तकारी होती है। वे यहां पर 50 रुपये से लेकर 25 हजार रुपये तक के लकड़ी से बना सामान लेकर आए हैं। इनमें फ्लावर पोर्ट, मूड़े, सोफा सेट, डायनिग टेबल, झूला, कुर्सी व छोटे खिलौने शामिल हैं। मोहम्मद का कहना है कि कोरोना काल में उनको सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। नौबत यहां तक आ गई थी कि उन्हें अपनी शिल्पकला को बचाए रखने के लिए उधार लेना पड़ा।

विदेशी छात्र सीखते हैं पूरे चाव से शिल्पकला

मोहम्मद इमरान का कहना है कि वे काष्ठ नक्काशी की कला सिखाने के लिए विदेश में भी जाते हैं। विदेशी छात्र पूरी तन्मयता के साथ इस शिल्पकला को सीखते हैं। अभी तक वे जर्मनी, आस्ट्रेलिया व बांग्लादेश में जा चुके हैं। उनके पास कई अन्य देशों से भी शिल्पकला सिखाने का आफर था, लेकिन कोरोना संक्रमण का फैलाव होने के चलते वे नहीं जा सके हैं। अब उनका फोकस कोरोना काल में हुए नुकसान की भरपाई करना है, इसलिए वे विदेशी आमंत्रण की बजाय शिल्प मेलों में अपनी कला प्रदर्शित करने को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं।


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