किरण चौधरी और शैलजा के इकट्ठा होने से बढ़ सकती है हुड्डा की मुश्किलें
पिहोवा जनक्रांति यात्रा रैली में उमड़ी भीड़ से भले ही पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र ¨सह हुड्डा व उनके खेमे के नेता गदगद नजर आ रहे हों लेकिन, कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी व राज्यसभा सदस्य शैलजा के एक मंच पर आने से उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। किरण चौधरी के मंच पर शैलजा के कट्टर समर्थक व राज्यसभा के पूर्व सदस्य ईश्वर ¨सह न केवल उपस्थित हुए बल्कि उन्होंने सीधे तौर पर हुड्डा पर हमला बोलते हुए गत चुनाव में हुई हार के लिए जिम्मेदार भी ठहरा दिया।
बृजेश द्विवेदी, कुरुक्षेत्र :
पिहोवा जनक्रांति यात्रा रैली में उमड़ी भीड़ से भले ही पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र ¨सह हुड्डा व उनके खेमे के नेता गदगद नजर आ रहे हों लेकिन, कांग्रेस विधायक दल की नेता किरण चौधरी व राज्यसभा सदस्य शैलजा के एक मंच पर आने से उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं। किरण चौधरी के मंच पर शैलजा के कट्टर समर्थक व राज्यसभा के पूर्व सदस्य ईश्वर ¨सह न केवल उपस्थित हुए बल्कि उन्होंने सीधे तौर पर हुड्डा पर हमला बोलते हुए गत चुनाव में हुई हार के लिए जिम्मेदार भी ठहरा दिया।
हुड्डा पर मुकदमा दर्ज होने के बाद पिहोवा में उनकी पहली रैली थी। रैली में आए लोगों में पूरा जोश दिखा। उन्होंने इस जोश को भुनाते हुए जहां अपने पिछले कार्यकाल में कराए गए विकास कार्य को गिनवाया वहीं सत्ता में दोबारा आने पर कई नए वादे पूरा करने का भरोसा दिलाया। हालांकि किरण चौधरी की रैली भीड़ के मुकाबले हुड्डा की रैली से कम थी लेकिन यहां मंच से छोड़े तीर का निशाना दूर तक जाएगा। भले ही किरण चौधरी ने पार्टी की आंतरिक गुटबाजी का मंच से कोई जिक्र नहीं किया लेकिन उनके समर्थकों ने मौका नहीं गंवाया। न केवल किरण चौधरी को भावी मुख्यमंत्री घोषित किया बल्कि हुड्डा पर भी सीधा हमला बोला।
हरियाणा के सभी लोग जानते हैं कि पूर्व राज्यसभा सदस्य ईश्वर ¨सह शैलजा के काफी करीब है तथा उन्हें ही अपना नेता भी मानते हैं। किरण चौधरी के मंच पर उनकी उपस्थिति का मतलब शैलजा की उपस्थिति माना जा रहा है। ईश्वर ¨सह ने नाम लिए बगैर सीधा हुड्डा पर ही हमला किया। उन्होंने कहा कि अनुशासन के बगैर सफलता नहीं मिल सकती । आज कुछ लोग अपने आपको पार्टी हाईकमान से भी ऊपर मान रहे हैं, वह संगठन के अध्यक्ष को कुछ नहीं मानते और विधायक दल की नेता की भी नहीं सुनते। यह वही लोग हैं जिन्होंने 67 विधायकों के साथ पहली बार 2004 में सत्ता संभाली थी, दूसरी बार 40 विधायकों के साथ सत्ता संभाली और तीसरी बार हालात ऐसे हो गए कि कांग्रेस के पास विधानसभा में विपक्ष का नेता बनने लायक भी संख्या बल नहीं रहा। कांग्रेस की धर्मनगरी में हुई इन दो रैलियों ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि आगामी चुनावों में कांग्रेस को भाजपा से पहले अपने ही नेताओं की दावेदारी और गुटबाजी से निपटना होगा तभी हरियाणा की सत्ता पर अपना दावा पेश कर पाएंगे।