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स्वास्थ्य विभाग ने इमारतें तो खड़ी कीं, दूर नहीं कर पाया चिकित्सकों की कमी

जागरण संवाददाता कुरुक्षेत्र पिछले पांच साल में स्वास्थ्य विभाग ने अस्पतालों के लिए नए भवन तो खड़े कर दिए लेकिन चिकित्सकों की कमी को दूर नहीं कर पाया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 07:24 AM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 07:24 AM (IST)
स्वास्थ्य विभाग ने इमारतें तो खड़ी कीं, दूर नहीं कर पाया चिकित्सकों की कमी
स्वास्थ्य विभाग ने इमारतें तो खड़ी कीं, दूर नहीं कर पाया चिकित्सकों की कमी

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : पिछले पांच साल में स्वास्थ्य विभाग ने अस्पतालों के लिए नए भवन तो खड़े कर दिए, लेकिन चिकित्सकों की कमी को दूर नहीं कर पाया। इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि जिले में 106 चिकित्सा अधिकारियों के स्वीकृत पदों में से 23 पद आज भी खाली हैं। वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारियों की संख्या जहां नौ होनी चाहिए थी, उन पर भी सात ही वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी तैनात हैं, दो पद अभी भी खाली हैं। बात अगर एलएनजेपी यानी जिले के मुख्य सरकारी अस्पताल की करें तो यहां भी चिकित्सकों के 42 पदों में से 13 पद खाली पड़े हैं। सबसे बुरी हालत तो इस समय प्रसूति विभाग की है। जहां एलएनजेपी अस्पताल के चालीस प्रतिशत मरीज दाखिल रहते हैं। यानी एक समय में यहां 90 से ज्यादा जच्चा-बच्चा दाखिल रहते हैं। मगर इतना बड़ा विभाग महज दो स्त्री रोग विशेषज्ञों के भरोसे छोड़ा गया है। यहां के बढ़ते बोझ के चलते तीन साल में दो स्त्री रोग विशेषज्ञ पहले ही सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को छोड़ चुकी हैं। इतना ही नहीं जितने नए चिकित्सक भर्ती हुए उनमें से ज्यादातर ने ज्वाइन नहीं किया। अगर ज्वाइन किया तो उनमें से भी कुछ चिकित्सक अस्पताल में मरीजों के बोझ को देखकर कुछ ही दिन में छोड़ गए। रही सही कसर अस्पताल में अपर्याप्त दवाओं ने पूरी कर दी। अस्पताल में मिलने वाली आधी अधूरी दवाएं मरीजों के जख्मों पर और नमक लगाने का काम करती हैं। घंटों लाइनों से गुजरने के बाद जब मरीज को डिस्पेंसरी से आधी दवाएं मिलती हैं तो इस सुविधा में कमियों के सिवाए उनके पास बोलने के लिए कोई बात शेष नहीं बचती। आलम यह है कि पिछले दिनों मनोरोग विभाग में आने वाले मरीजों को दी जाने वाली दौरे और नींद तक की दवा उपलब्ध नहीं थी। हालांकि उपकरण लगाने के मामले में भी स्वास्थ्य सेवाओं में सरकार ने तेजी दिखाई। मगर केवल भौतिकी स्ट्रक्चर खड़ा करने से मरीजों का इलाज संभव नहीं होगा। ऐसे में स्वास्थ्य विभाग को चिकित्सकों को सरकारी सेवाओं में रोके रखने और नए चिकित्सकों को आकर्षित करने के लिए अपनी पॉलिसी में आमूलचूल परिवर्तन लाने की दरकार है।

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