परिवार के अनसुलझे पहलू दिखा गया नाटक मौत क्यों रात भर नहीं आती?
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : हरियाणा कला परिषद मल्टी आर्ट कल्चरल सेंटर में नाटक मौत क्यों रात भर नहीं आती का मंचन हुआ।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : हरियाणा कला परिषद मल्टी आर्ट कल्चरल सेंटर में नाटक मौत क्यों रात भर नहीं आती का मंचन हुआ। निष्ठा सांस्कृतिक मंच की ओर से गुरुग्राम के कलाकारों के अभिनय से सजे नाटक का निर्देशन प्रसिद्ध रंगकर्मी मोहनकांत ने किया। रंगकर्मी अनिल दत्ता बतौर मुख्यातिथि मैक में पहुंचे तथा कार्यक्रम की अध्यक्षता अजमेर ¨सह ने की। नाटक मंचन से पूर्व मैक के क्षेत्रीय निदेशक संजय भसीन ने अतिथियों को पौधा देकर स्वागत किया। नाटक मौत क्यों रात भर नहीं आती की शुरुआत तो एक यथार्थवादी नाटक की तरह से होती है, लेकिन ज्यों-ज्यों यह आगे बढ़ता है, नाटक एक फार्स की शक्ल अख्तियार कर लेता है। अपने पूरे घटनाक्रम में नाटक मध्यवर्गीय मानसिकता एवं मूल्यों पर हल्की-हल्की चोट करता चलता है। नाटक मुख्य किरदार अमित खन्ना के इर्द-गिर्द घूमता रहता है। अमित खन्ना जो अपने परिवार की जरुरतें पूरी करने के लिए पैसे नहंी जुटा पा रहा, तो उसे आत्महत्या का ख्याल आ जाता है, जिसके कारण उसके बीमा की रकम उसके परिवार को मिल सकती है। रात भर मरने के बारे में सोचने पर भी अमित खन्ना को आत्महत्या करने का कोई तरीका नहीं सूझता। तभी नाटक में सूत्रधार का प्रवेश होता है, जो नायक को आत्महत्या करने के विभिन्न तरीके बताता है। आत्महत्या से पहले सूत्रधार नायक से सुसाइड नोट भी लिखवा लेता है। रात को नायक सूत्रधार के कहने पर घर में रखी एक पुड़िया से जहर खा लेता है और बिस्तर पर लेट जाता है। जब सुबह उसकी पत्नी उसे देखती है और सुसाइड नोट पढ़ती है तो विलाप करना शुरु कर देती है। अचानक से नायक जाग जाता है और जहर को नकली बताकर अपनी मौत न होने का पछतावा करता है। तब नायक की पत्नी उसे बताती है कि जिस पुड़िया से उसने जहर खाया उसमें मिठा सोड़ा था। नायक अपने किए पर पछताता है और पैसे की कमी को आत्महत्या का कारण बताता है। तभी एक डाक के माध्यम से नायक को उसके मित्र का पत्र प्राप्त होता है। जिसमें नायक के नाम सत्तर लाख का चेक मिलता है। पैसे मिलने की खुशी में नायक दिल का दौरा पड़ने के कारण मर जाता है। इस प्रकार नाटक का दुखांत हो जाता है। इस नाटक की दिलचस्प बात इसके दो अंत रही। किसी भी घटनाक्रम का एक ही अंत हो सकता है, लेकिन संभावना के स्तर पर नाटककार कई तरह के अंत सोच सकता है। ऐसे ही सूत्रधार दोबारा दर्शकों के सामने आता है और दुखांत की अपेक्षा सुखांत के बारे में दर्शकों को बताता है। नाटक निर्देशक की भूमिका गोल्डी ¨सगला ने निभाई। अन्य कलाकारों में मोहित, प्रकाश घई आदि शामिल रहे। नाटक के अंत में अतिथियों द्वारा कलाकारों को सम्मानित किया गया तथा संजय भसीन ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर आभार व्यक्त किया।