हे श्रीकृष्ण दोबारा इस धरा पर आओ और कुरुक्षेत्र के संभावित प्रत्याशियों को गीता का ज्ञान दो . . .
जागरण संवाददाता कुरुक्षेत्र हे श्रीकृष्ण आपको इस धरा पर दोबारा आकर कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट के संभावित प्रत्याशियों को गीता का ज्ञान देना होगा।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र :
हे श्रीकृष्ण आपको इस धरा पर दोबारा आकर कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट के संभावित प्रत्याशियों को गीता का ज्ञान देना होगा। आज उन्हें गीता के ज्ञान की उतनी ही जरूरत है जितनी महाभारत काल में युद्ध से पहले मोहग्रस्त हुए अर्जुन को थी। आज हालात ऐसे हैं कि कुरुक्षेत्र लोकसभा से भी कई पाíटयों के प्रत्याशी उसी तरह मैदान छोड़कर भाग रहे हैं, जैसे युद्ध के मैदान में दोनों तरफ तैयार खड़ी सेनाओं को देखकर अर्जुन ने युद्ध से इंकार कर दिया था। यह प्रत्याशी भी उसी तरह अपनी हार-जीत को लेकर आशंकित हैं जैसे संशय में फंसे अर्जुन अपनों के खिलाफ लड़ने से इंकार कर रहे थे। इनके चुनावी मैदान में उतरने से इंकार करने की बातों से साफ लग रहा है कि उनके मन में हार-जीत को लेकर इसी तरह का द्वंद चल रहा है।
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पांच हजार साल पहले अर्जुन के मन में भी चला था द्वंद पांच हजार साल पहले महाभारत काल में अर्जुन के मन में भी इसी तरह का द्वंद चला था। महाभारत के मैदान में युद्ध के लिए तैयार होकर पहुंचे अर्जुन के मन में कई तरह के सवाल उठ खड़े हुए थे। उसे हार-जीत का डर सताने लगा था। युद्ध के मैदान में अपनों को सामने देखकर भी उसके कदम डगमगा गए थे। ऐसे में श्रीकृष्ण भगवान ने उनकी शंकाओं को दूर करते हुए उन्हें युद्ध के लिए तैयार होने का ज्ञान दिया था। उन्होंने अर्जुन को बताया था कि हार-जीत सभी कर्मों का फल है। इस धरती पर सभी को उसके कर्मों का फल मिलता है और उसे वह भोगना है। श्रीकृष्ण ने गीता में संदेश दिया था कि मनुष्य अपना कर्म करता रहे और फल की चिता ना करे। फल की चिता परमपिता परमात्मा पर छोड़ देनी चाहिए।
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कर्म करना छोड़ फल की चिता में मैदान छोड़ रहे प्रत्याशी आज प्रत्याशी कर्म करना छोड़ फल की चिता में पड़ गए हैं। उन्हें कर्म से पहले ही अपने फल की चिता सताने लगी है। इसी फल की चिता में कई-कई पाíटयां मजबूरी में ही सही गठबंधन की राह पर चलने लगी हैं। ऐसे हालातों में इन प्रत्याशियों को गीता के ज्ञान की जरूरत है।