गीता मनुष्य को कर्म का महत्व समझाती है : डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र
मातृभूमि सेवा मिशन की ओर से अंतरराष्ट्रीय श्रीमद्भागवद्गीता जयंती समारोह के उपलक्ष्य में अठारह दिवसीय विश्व कल्याण महायज्ञ के सप्तम दिवस श्रीमद्भागवद गीता के सातवें अध्याय के श्लोकों की आहुति डाली गई। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्याíथयों ने सस्वर गीता के श्लोकों का उच्चारण करते हुए महायज्ञ में आहुति डाली।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : मातृभूमि सेवा मिशन की ओर से अंतरराष्ट्रीय श्रीमद्भागवद्गीता जयंती समारोह के उपलक्ष्य में अठारह दिवसीय विश्व कल्याण महायज्ञ के सप्तम दिवस श्रीमद्भागवद गीता के सातवें अध्याय के श्लोकों की आहुति डाली गई। मातृभूमि शिक्षा मंदिर के विद्याíथयों ने सस्वर गीता के श्लोकों का उच्चारण करते हुए महायज्ञ में आहुति डाली। मातृभूमि सेवा मिशन के संस्थापक डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि श्रीमद्भागद गीता के सातवें अध्याय में ज्ञानविज्ञान योग का वर्णन है। इस अध्याय में 30 श्लोक हैं। इसमें आत्मा के देह त्यागने, मोक्ष प्राप्त करने तथा दूसरा शरीर धारण करने की प्रक्रिया का पूर्ण वर्णन किया गया है। डॉ. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि सभी ग्रंथों में से श्रीमद्भागवद गीता को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसमें व्यक्ति के जीवन का सार है और इसमें महाभारत काल से लेकर द्वापर में कृष्ण की सभी लीलाओं का वर्णन किया गया है। गीता में श्रेष्ठ मानव जीवन का सार बताया गया है। इसमें 18 ऐसे अध्याय हैं जिनमें आपके जीवन से जुड़े हर सवाल का जवाब और आपकी हर समस्या का हल मिल सकता है। संभवत: संसार का दूसरा कोई भी ग्रंथ कर्म के शास्त्र का प्रतिपादन इस सुंदरता, इस सूक्ष्मता और निष्पक्षता से नहीं करता।