Move to Jagran APP

बुजुर्गो ने जहां से सीखे हस्ताक्षर करने, आज बंद हुई वह पाठशाला

दीपक वशिष्ठ, इस्माईलाबाद : कुम्हार माजरा गांव की राजकीय प्राथमिक पाठशाला अब तालाबंद हो चुकी है। इसके पीछे कारण बच्चों का पाठशाला के प्रति मोहभंग होना है। जबकि गांव के बुजुर्गों ने तो इसी पाठशाला से हस्ताक्षर करना सीखा हुआ है। पाठशाला बुजुर्गो की अनेक यादें आज भी समेटे हुए है। इस्माईलाबाद के अंतर्गत आने वाला गांव कुम्हार माजरा पंजाब सीमा से सटा हुआ है। इस गांव के बाहर चार कमरों में चलने वाली पाठशाला में कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थी।

By JagranEdited By: Published: Fri, 19 Oct 2018 11:04 PM (IST)Updated: Fri, 19 Oct 2018 11:04 PM (IST)
बुजुर्गो ने जहां से सीखे हस्ताक्षर करने, आज बंद हुई वह पाठशाला
बुजुर्गो ने जहां से सीखे हस्ताक्षर करने, आज बंद हुई वह पाठशाला

दीपक वशिष्ठ, इस्माईलाबाद : कुम्हार माजरा गांव की राजकीय प्राथमिक पाठशाला अब तालाबंद हो चुकी है। इसके पीछे कारण बच्चों का पाठशाला के प्रति मोहभंग होना है। जबकि गांव के बुजुर्गों ने तो इसी पाठशाला से हस्ताक्षर करना सीखा हुआ है। पाठशाला बुजुर्गो की अनेक यादें आज भी समेटे हुए है। इस्माईलाबाद के अंतर्गत आने वाला गांव कुम्हार माजरा पंजाब सीमा से सटा हुआ है। इस गांव के बाहर चार कमरों में चलने वाली पाठशाला में कभी बच्चों की किलकारियां गूंजती थी। अभिभावकों तक का पाठशाला के साथ अलग ही लगाव था। कच्चों रास्तों के दौर में पाठशाला किसी मंदिर से कम नहीं थी। यहीं से शिक्षा की रोशनी गांव के अधिकांश लोगों ने प्राप्त की। वर्तमान दौर में अंग्रेजी माध्यम के प्राइवेट स्कूल इस कद्र भारी साबित हुए कि पाठशाला पर शिक्षा विभाग ने सदा के लिए ताला जड़ दिया है। इस पाठशाला में छात्रों की संख्या घटकर केवल दो रह गई थी। गांव के यह छात्र हर¨वद्र व सिमरदीप ही केवल पांचवीं कक्षा में शिक्षा ग्रहण करने आते थे। पाठशाला के अंतिम शिक्षक रामफल रहे। सभी प्रयास असफल होने पर शिक्षा विभाग ने पाठशाला को नजदीकी गांव इस्माईलपुर की पाठशाला में मर्ज कर दिया है। ग्रामीणों के अनुसार यह पाठशाला ग्रामीणों के प्रयास से वर्ष 1970 में बनी थी। लंबे सफर में बीते तीन चार साल में पाठशाला पर बच्चों की कम संख्या भारी साबित हुई। अब पाठशाला का भवन खंडहर में तबदील होने की ओर अग्रसर है। प्राइवेट मोह बढ़ गया-रामफल

prime article banner

इस पाठशाला के अंतिम शिक्षक रहे रामफल बताते हैं कि अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में ही भेजना पसंद करने लगे। प्राइवेट स्कूलों ने भी बचपन से ही अंग्रेजी माध्यम आरंभ करवाने का प्रचार किया। ऐसे में पाठशाला सूनेपन का शिकार हो गई। करेंगे प्रयास- सरपंच

गांव के सरपंच मलूक ¨सह सेना से कैप्टन के पद से रिटायर हैं। वे कहते हैं कि पाठशाला का दर्जा बढ़वाने और दोबारा से आरंभ करवाने का प्रयास करेंगे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.