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शास्त्रीय संगीत में वर्णित तालों और रागों पर की चर्चा

सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र नई दिल्ली एवं विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान कुरुक्षेत्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 451वीं अनुस्थापन पाठ्यक्रम कार्यशाला में शास्त्रीय संगीत के पहलुओं को समझाया गया। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय संगीत विभाग से डॉ. अमरजीत कौर ने विषय विशेषज्ञा के तौर पर भूमिका निभाई।

By JagranEdited By: Published: Fri, 04 Oct 2019 06:40 AM (IST)Updated: Fri, 04 Oct 2019 06:40 AM (IST)
शास्त्रीय संगीत में वर्णित तालों और रागों पर की चर्चा
शास्त्रीय संगीत में वर्णित तालों और रागों पर की चर्चा

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र नई दिल्ली एवं विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान, कुरुक्षेत्र के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 451वीं अनुस्थापन पाठ्यक्रम कार्यशाला में शास्त्रीय संगीत के पहलुओं को समझाया गया। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय संगीत विभाग से डॉ. अमरजीत कौर ने विषय विशेषज्ञा के तौर पर भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत के विभिन्न पहलुओं की चर्चा करते हुए शास्त्रीय संगीत में वर्णित तालों और रागों पर चर्चा के साथ-साथ भारतीय नृत्य शैलियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भारतीय संस्कृति की विविधता भारतीय नृत्य शैलियों में भी देखने को मिलती है जिसमें तमिलनाडु में भारतनाट्यम, आन्ध्र प्रदेश में कुचिपुड़ी, केरल में कथकली, ओडिशा में ओडिसी, मणीपुर में मणीपुरी, केरल में मोहिनीअट्टम आदि नृत्य शैलियां प्रचलित रही हैं। उन्होंने विभिन्न नृत्य शैलियां भी प्रस्तुत कीं।

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विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के निदेशक एवं सीसीआरटी एग्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य डॉ. रामेंद्र सिंह ने कहा कि सीसीआरटी देशभर के विद्यालयों में सेवारत शिक्षकों-शिक्षिकाओं के लिए कार्यशालाओं का आयोजन करता है, जहां नवाचार परंपराओं से मिलते हैं। इनके माध्यम से शिक्षकों को पाठ्यक्रम-शिक्षण में सांस्कृतिक तत्वों की प्रविधियां और पाठ्यक्रम में कलाओं का समावेश करने में भी सहायता मिलती है। कार्यशाला के द्वितीय सत्र में पंजाब विश्वविद्यालय से ख्याति प्राप्त रंगकर्मी डॉ. अनूप शर्मा ने भाषायी कौशलों एवं इनके संव‌र्द्धन हेतु किए जाने वाले प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि बिना मूल्यांकन किसी भी सीखी गई भाषा का कोई मोल नहीं होता। सीखे या ग्रहण किए गए भाषा कौशलों का सही मूल्यांकन भी उसके विकास का महत्वपूर्ण अंग है। सही मूल्यांकन द्वारा ही पता लगाया जा सकता है कि बालक में कौन सा कौशल विद्यमान है और किस कौशल में सुधार या उच्चारात्मक शिक्षण की आवश्यकता है। इन्हीं सब का पता लगाकर एक शिक्षक भविष्य के लिए सही शिक्षण विधि का चुनाव कर सकेगा।


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