घटती जा रही बसें, बढ़ते जा रहे यात्री
पिछले कई सालों से लगातार अनदेखी के चलते रोडवेज के बेड़े में बसों की संख्या घटती जा रही है जबकि आबादी लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में आम जन को यातायात की सुविधा ना मिलने पर वह बसों में लटक कर यात्रा करने को मजबूर है और हादसों को शिकार हो रहा है।
जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : पिछले कई सालों से लगातार अनदेखी के चलते रोडवेज के बेड़े में बसों की संख्या घटती जा रही है, जबकि आबादी लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में आम जन को यातायात की सुविधा ना मिलने पर वह बसों में लटक कर यात्रा करने को मजबूर है और हादसों को शिकार हो रहा है। अपने के काम के घरों निकले लोगों और पढ़ाई के लिए निकले विद्यार्थियों को आधे से ज्यादा बसों के इंतजार और उनके पीछे दौड़ने में निकल रहा है। सरकारी और राजनीतिक तंत्र की अनदेखी के हालात ऐसे हैं कि जहां सालों पहले कुरुक्षेत्र रोडवेज के बेड़े में 180 से ज्यादा बसें थी अब उसी बेड़े में 155 के लगभग बसें हैं। इन बसों में भी कई ऐसी हैं जो किसी ना किसी खराबी के चलते कर्मशाला में खड़ी रहती हैं। इसी कमी के चलते रोडवेज को कई गांवों के साथ-साथ दू्सरे राज्यों में जाने वाली बसों की संख्या को घटाना पड़ रहा है। यात्री को ही हालात से समझौता कर अपना काम निकालना पड़ रहा है। घटती जा रही हैं बसें
कुरुक्षेत्र में दो बस डिपो हैं। इनमें से एक बस डिपो थानेसर के नये बस अड्डे पर है, जिसमें 110 के लगभग बसें है। दूसरा सब डिपो पिहोवा में है जहां पर 49 बसें है। इन्हीं बसों के ऊपर हजारों यात्रियों को उनकी मंजिल पर पहुंचाने की जिम्मेदारी है। आबादी के लिहाज से विशेषज्ञ कुरुक्षेत्र के पास 200 बस होने की बात कह रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि 200 बसें चलाने पर ही यात्रियों की समस्या को कुछ कम किया जा सकता है। आज हालात ऐसे हैं कि बसों की कमी के चलते कई गांवों से सरकारी बसों को नहीं भेजा रहा है। इन गांवों के यात्री निजी बसों पर ही निर्भर हैं। कर्मचारियों के लंबे संघर्ष के बाद चालक-परिचालकों की हुई भर्ती
कर्मचारी नेता मायाराम उनियाल ने कहा कि पिछले कई सालों से लगातार आंदोलन करने के बाद चालक और परिचालकों की भर्ती की गई है। ऐसे में अब जाकर कुरुक्षेत्र डिपो में चालक और परिचालकों की भर्ती पूरी हो पाई है। अब कुरुक्षेत्र के पास 300 के लगभग चालक और 290 के लगभग परिचालक हैं। बसों की कमी का बड़ा कारण कंडम हो रही बसों की जगह पर नई बसें नहीं मिलना है।