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नृत्य कार्यशाला शुरू, 55 प्रतिभागियों ने लिया भाग

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संगीत एवं नृत्य विभाग की ओर से आयोजित कौशल विकास कार्यशाला के चौथे दिन के पहले सत्र की शुरुआत नृत्य की कार्यशाला के साथ हुई। कार्यशाला में 55 प्रतिभागियों ने भाग लिया।

By JagranEdited By: Published: Tue, 03 Aug 2021 07:09 AM (IST)Updated: Tue, 03 Aug 2021 07:09 AM (IST)
नृत्य कार्यशाला शुरू, 55 प्रतिभागियों ने लिया भाग
नृत्य कार्यशाला शुरू, 55 प्रतिभागियों ने लिया भाग

फोटो संख्या : 25

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जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र : कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के संगीत एवं नृत्य विभाग की ओर से आयोजित कौशल विकास कार्यशाला के चौथे दिन के पहले सत्र की शुरुआत नृत्य की कार्यशाला के साथ हुई। कार्यशाला में 55 प्रतिभागियों ने भाग लिया। कार्यशाला के को-आर्डिनेटर डा. हरविदर सिंह लोंगोवाल ने बताया कि इस कार्यशाला में लगभग 140 प्रतिभागियों ने नामांकन करवाया है।

डा. शुभ्रा ने जयपुर घराने की प्रसिद्ध बंदिश चक्रदार परन मुद्राएं करवाई। एक-एक बोल के महत्व बताया। प्रतिभागियों को चक्रधार परन को बोल को सुनकर पहचानने और उनकी उपज शरीर के अंगो से यानी हाथों और पैरों से कैसे होनी चाहिए, इस पर भी विस्तार से बताया। कथक के इतिहास व घरानों की उत्पत्ति और विकास के बारे में बताया गया। दूसरे सत्र में तबला विशेषज्ञ डा. राहुल स्वर्णकार ने अविस्तारशील रचनाओं के अंतर्गत एवं उसके विभिन्न प्रकारों पर विस्तार से चर्चा की, जिसमें दिल्ली, लखनऊ, फर्रुखाबाद घरानों की गतों को सोदाहरण प्रस्तुत किया। कार्यशाला के तीसरे सत्र में पंडित हरविदर शर्मा ने व्याख्यान देते हुए सितार की विभिन्न प्रकार की गतों यथा मसीत खानी, रजा खानी व इमदाद खानी गत के बारे में विस्तार से बताया।

उन्होंने यह भी बताया कि मध्यकाल में विभिन्न गतों का चलन किस प्रकार था और किस प्रकार से तबला के साथ इन गतों का वादन किया जाता था और इसके साथ-साथ राग प्रस्तुतिकरण के तत्वों जिसमें सर्वप्रथम अलाप इसके बाद जोड़ अलाप, जोड़ तान और तान को मध्य काल और आधुनिक काल में किस प्रकार बजाई जाती हैं। प्रोफेसर यशपाल ने उत्तर भारतीय और दक्षिण भारतीय संगीत में रागांग व मेल पद्धति पर विस्तृत चर्चा की। पांचवें सत्र में डा. रवि गौतम ने साउंड रिकार्डिंग से संबंधित विभिन्न विषयों पर प्रतिभागियों को प्रशिक्षण दिया। संगीत एवं नृत्य विभाग की तरफ से डा. हरविदर सिंह लोंगोवाल, डा. सीमा, डा. पुरुषोत्तम, डा. संजीव, डा. सुशील और डा. मुनीश ने इन विभिन्न सत्रों का सूत्र संचालन किया।


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