¨लगानुपात के कलंक को मिटा कर पाया पहला खिताब
लोटनी गांव कभी बेटियों की कम संख्या के लिए बदनाम था, अब उसी गांव को ¨लगानुपात में सुधार का पहला खिताब मिला। इस उपलब्धि को हासिल करने में सबसे खास भूमिका एक गृहिणी ने अदा की। यह थी बलजीत कौर।
संवाद सहयोगी, इस्माईलाबाद :
लोटनी गांव कभी बेटियों की कम संख्या के लिए बदनाम था, अब उसी गांव को ¨लगानुपात में सुधार का पहला खिताब मिला। इस उपलब्धि को हासिल करने में सबसे खास भूमिका एक गृहिणी ने अदा की। यह थी बलजीत कौर।
बलजीत अकसर समाचार पत्रों के पढ़ती थी कि बेटियों की संख्या निरंतर कम हो रही है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण कन्या भ्रूण हत्या है। उसने इसमें बदलाव करने की ठानी। शुरुआत अपने ही गांव से की। महिलाओं को साथ लिया और घर-घर जाकर बेटी बचाने की अलख जगाई।
उन्होंने गुरुद्वारे व मंदिरों में जाने वालों को बताया कि भगवान की कृपा तभी मिलेगी जब बेटियों को बचाओगे, वरना नरक में जगह पाओगे। बलजीत कौर ने अपने अभियान में पंचायत प्रतिनिधियों को भी साथ लिया।
इस दौरान बलजीत कौर ने दो बेटियों को जन्म दिया। इनके नाम जैसमिन और ईशमित रखे। बलजीत की पहल ने रंग दिखाया कि गांव की महिलाओं ने कन्या भ्रूण हत्या से तौबा कर ली। इसी का परिणाम यह रहा कि लोटनी गांव में बेटियों की संख्या बेटों के बराबर जा पहुंची और जिले में लिंगानुपात में सुधार करने पर गांव को पहला पुरस्कार मिला।
गांव की तत्कालीन सरपंच मामो देवी ने भी इस उपलब्धि पर खुद को गौरवान्वित महसूस किया। बलजीत कौर कहती हैं कि वह कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ छेड़ी जंग को जारी रखेंगी। बिना लालच समाज के लिए कुछ कर गुजरने की ललक से अलग ही सुख मिलता है। वे कहती हैं कि यह कर्म भी परमात्मा के नेक खाते में जुड़ता है। इसमें सभी को कुछ न कुछ योगदान अवश्य देना चाहिए।