जीरो बजट खेती पर अामने-सामने हुए कृषि विशेषज्ञ और वैज्ञानिक
जीरो बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए आयोजित कार्यशाला में इसके पैरोकार और कृषि वैज्ञानिक आमने-सामने आ गए।
कुरुक्षेत्र, [पंकज आत्रेय]। जीरो बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन इसके पैरोकार और कृषि वैज्ञानिक आमने-सामने आ गए। इस पद्धति पर लगातार संदेह जताए जाने से नाराज पद्मश्री सुभाष पालेकर ने कृषि वैज्ञानिकों को पूरी कृषि व्यवस्था को बर्बाद करने वाला बताया। पंतनगर कृषि विवि के वैज्ञानिक ने ऐतराज जताया तो हिमाचल के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने उन्हें कड़ी फटकार लगाई।
पैरोकार पालेकर ने वैज्ञानिकों को लिया आड़े हाथ, राज्यपाल ने भी लगाई फटकार
मालूम हो कि पहले दिन ही भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के महानिदेशक डॉ. त्रिलोचन महापात्रा ने जीरो बजट खेती को अभी वैज्ञानिक कसौटी पर परखने की बात कही थी। दूसरे दिन पालेकर ने कृषि विज्ञान को ही खारिज कर दिया। वह बोले, यह पूरी तरह असत्य व अज्ञान है। यह साइंस नहीं तकनीक मात्र है। इसके नाम पर बर्बाद कर देने वाली रासायनिक पढ़ाई हो रही है।
उन्होंने कहा कि एग्रीकल्चर साइंस ने प्रकृति को खत्म करने का काम किया। इसने प्रतिरोधक क्षमता खत्म कर दी। इसने रसायन परोसे व ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा दिया। इसे ठीक करना सरकार नहीं, कृषि वैज्ञानिकों की जिम्मेदारी है। आइसीएआर में विद्यार्थियों को बर्बादी और रसायन पढ़ाया जा रहा है। इस पाठ्यक्रम को बदलना पड़ेगा। यह आइसीएआर के डायरेक्टर करेंगे तो होगा। खेतीबाड़ी को लेकर कुछ सवाल के जवाब हमारे पास नहीं हैं। यह जवाब देना वैज्ञानिकों का काम है। उन्हें चाहिए कि लेबोरेट्री से बाहर निकलकर खेतों में ट्रायल करें।
हमें अमान्य नहीं कर सकते : डॉ. डीके सिंह
पालेकर की तीखी बातों पर कृषि विवि पंतनगर (उत्तर प्रदेश) के डॉ. डीके ङ्क्षसह ने ऐतराज जताया। कहा, सर हम वैज्ञानिक लोग काम कर रहे हैं। आप हमें अमान्य नहीं कर सकते। यह नहीं कह सकते कि वैज्ञानिक कुछ नहीं हैं। ग्लोबल वार्मिंग के लिए कोई फसल जिम्मेदार नहीं है। धान की फसल बायोमास पैदा करती है। जैविक खेती में वर्मी कंपोस्ट में कार्बन भी प्राकृतिक है।
राज्यपाल ने फटकार लगाई
डॉ. डीके सिंह बोल ही रहे थे कि हिमाचल के राज्यपाल आचार्य डॉ. देवव्रत खड़े हो गए। उन्हाेंने कहा, आप बिना बात की जिद कर रहे हैं। देश का विनाश कर रहे हो और योजनाबद्ध तरीके से जीरो बजट खेती का विरोध कर रहे हो। साइंटिस्ट कह रहे हैं कि 300 क्विंटल गोबर की खाद प्रति एकड़ 60 किलो नाइट्रोजन की पूर्ति करती है। खेत में किसान स्प्रे करते-करते मर जाता है। आपकी रासायनिक खेती का इतिहास कितना है। एक फार्मूला दिया है, जिसके प्रमाण हैं।