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मई माह के मुख्य प्रदर्श अहिछत्र

By Edited By: Published: Wed, 02 May 2012 06:22 PM (IST)Updated: Wed, 02 May 2012 06:22 PM (IST)
मई माह के मुख्य प्रदर्श अहिछत्र

कुरुक्षेत्र, जागरण संवाद केंद्र : श्रीकृष्ण संग्रहालय में इस वर्ष महाभारत से संबंधित पुरास्थलों को 'एक्जीबीट्स ऑफ द मंथ' की श्रृंखला में प्रदर्शित किया जा रहा है। इसी श्रृंखला में माह मई के लिए अहिछत्र को मुख्य प्रदर्श के लिए चुना गया है जो वर्तमान में उत्तरप्रदेश के बरेली जनपद में स्थित रामपुर के पास है।

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उत्तर वैदिककाल से ही कुरु राज्य के उत्तर में पड़ने वाले राज्य को पाचाल नाम से जाना गया है। पड़ोसी राज्य होने के कारण कुरु पाचाल राज्यों के आपसी संबंध कभी मधुर तो कभी कटु रहे। इन दोनों राज्यों को कुरू-पाचाल युग्म में रखा जाना भी इसी तथ्य को संकेतिक करता है। उत्तर वैदिक काल के ब्राह्माण ग्रंथों में भी कुरु पाचाल राज्यों का उल्लेख युग्म रूप में ही मिलता है। कभी कुरु राज्य में पाचालों का अतिक्रमण तो कभी कुरुओ द्वारा पाचाल प्रदेश के कई भू भागों को कुरू प्रदेश में विलय होना यह उस युग में एक सामान्य सी बात हो गई थी। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार पाचाल राज्य का उत्तरी हिस्सा राजा द्रुपद को द्रोणाचार्य को देना पड़ा था। इस विभाजन में भी कुरुओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी। महाभारत के अनुसार कुरु राजकुमारों जिनमें अर्जुन की मुख्य भूमिका थी, ने अपने गुरु द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा के रूप में पाचाल राज्य का उत्तरी भाग युद्ध में जीत कर प्रदान किया था।

पाचाल प्रदेश अथवा पाचाल राज्य का प्राचीन भारतीय राजनीति में बड़ा महत्व था। महाभारत में तो इसकी भूमिका अपने चरम पर देखने को मिलती है। महाभारत युद्ध में पाचाल राजकुमार धृष्टद्युमन् पांडवों के प्रधान सेनापति रहे। इसी तथ्य को देखते हुए कई विद्वानों ने यह भी आशका जताई है कि कहीं महाभारत युद्ध कुरूओं एवं पाचालों के बीच तो नहीं लड़ा गया था? पाचों पांडवों की पत्‍‌नी द्रुपद राज कुमारी द्रौपदी की महाभारत में निभाई गई भूमिका भी सर्वज्ञात है। दृष्टद्युमन् के अतिरिक्त महाभारत युद्ध में पाचाल नरेश द्रुपद एवं उनके पुत्र शिखंडी की भूमिका भी अति महत्व पूर्ण रही थी। विरोधी प्रधान सेनानायक भीष्म पितामह के पराभव में शिखंडी की अति महत्वपूर्ण भूमिका थी। महाभारत युद्ध में धृष्टद्युमन् द्वारा द्रोणाचार्य का वध तथा दुर्याेधन के धराशायी होने के उपरान्त रात्रि में द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा द्वारा पाडवों व पाचालों के शिविर पर आक्रमण तथा प्रतिशोध में धृष्टद्युमन् एवं अन्य पाचालों एवं पांडव पुत्रों के वध के प्रसंग इस युद्ध के अंत तक पाचालों की महाभारत युद्ध में भूमिका को संकेतिक करते है। भगवान बुद्ध ने जब अपने उपदेशों के लिए समस्त भारत का भ्रमण किया, तो उन्होंने कुरू-पाचाल देश के निवासियों की भाषा एवं आचरण को सर्वोत्तम बताया।

उत्तर पाचाल राज्य की राजधानी अहिछत्र नगरी थी जिसकी पहचान वर्तमान में उत्तरप्रदेश के बरेली जनपद में स्थित रामपुर के पास एक प्राचीन किले के भगनवशेषों से की जाती है। इस प्राचीन किले अथवा पुरास्थल के भगनवशेष लगभग छह किमी के घेरे में है। इसी परिधि में कई टीले है जिनमें एक टीला 23 मीटर की अधिकतम उचाई वाला है। इसी निक्षेप पर एक मंदिर के भी भग्नावशेष मिलते है। अहिछत्र के इस प्राचीन नगर को उत्तर से दक्षिण की ओर बनी एक प्राचीर पूर्वी व पश्चिमी दो भागों में बाटती थी।

प्राचीन भारत के इस महान नगर एवं प्रमुख सास्कृतिक केंद्र के इतिहास एवं पुरातत्व को विस्तृत रूप से जानने के उद्देश्य से यहा भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा केएन दीक्षित के निर्देशन में 1940-44 के बीच व्यापक स्तर पर उत्खनन कराया गया। इसके बाद लगभग 20 साल बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा एनआर बनर्जी के मार्ग निर्देशन में पुन: 1963-64 तथा 1964-65 में इस स्थल की पुन: खुदाई की गई।

यहा के उत्खनन से मुख्यत: 4 सास्कृतिक निक्षेपों का पता चला है। सर्वप्रथम यहा गेरुआ रंगीन मृदभांडीय संस्कृति के लोगों का आगमन हुआ। यहा का प्रथम आवासीय निक्षेप इसी संस्कृति से संबंधित है। ठीक हस्तिनापुर के सबसे निचले स्तर में भी इसी संस्कृति के लोगों के रहने के प्रमाण मिलते है। यहा के दूसरे सास्कृतिक अथवा आवासीय निक्षेप से धूसर चित्रित मृदभांडीय संस्कृति के प्रमाण मिलते है। इसी संस्कृति का संबंध भारत के सुप्रसिद्ध पुरात्तव विद प्रो. बीबी लाल महाभारत से जोड़ते हैं। इसके बाद यहा के दो निक्षेप आद्य ऐतिहासिक काल एवं कुषाण गुप्त काल से संबंधित हैं।

दर्शकों को अहिछत्र नगर के इतिहास एवं पुरात्तव से अवगत कराने के उद्देश्य से ही महाभारत कालीन स्थलों की श्रृंखला में मई महिने के प्रदर्श के रूप में अहिछत्र का चयन किया गया है। यहा इस प्रदर्शनी में प्राचीन अहिछत्र नगर की नगर योजना यहा तक पहुचने का मार्ग एवं इसके अंर्तगत आने वाले अनेक पुरास्थलों, मंदिरों, मृदभांडों, मृण मूर्तियों एवं प्राचीन संरचनाओं इत्यादि को रोचक ढग से दिखाया गया है।

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