जरा देख के
क्रेडिट के भूखे जनप्रतिनिधियों की राजनीति के कारण स्मार्ट सड़कों पर बेसहारा गोवंश गंदगी में मुंह मार गुजारा करने को मजबूर हैं।
तेरे राज में बेसहारा असहाय हो गए..
गब्बर के नाम से पहचाने जाने वाले सत्ताधारी की कार्रवाई के बाद बेपटरी नगर निगम की व्यवस्था संभाले नहीं संभल रही है। चहुंमुखी विकास के दौर में बेसहारा गोवंशों को जनप्रतिनिधियों व नेताजी का सानिध्य नहीं मिल रहा है। सियासत के रचे गए खेल में गोवंशों के मुंह से हरा चारा भी छीन लिया गया है। क्रेडिट के भूखे जनप्रतिनिधियों की राजनीति के कारण स्मार्ट सड़कों पर बेसहारा गोवंश गंदगी में मुंह मार गुजारा करने को मजबूर हैं। सैकड़ों गाय, नंदी और बछड़ों के चारे पर सियासत हावी हो चुकी है। नतीजन इनकी देखभाल के लिए तय हुई जिम्मेदारी कमजोर पड़ने लगी है। दानी सज्जन ने कहा कि नेताजी के सानिध्य में स्वास्थ्य, लघु सचिवालय, खेल, शिक्षा के हालात किसी से छिपे नहीं हैं, यहां जनता के साथ-साथ अब बेसहारा भी असहाय हो गए हैं। विकास के ठेकेदार बने जनप्रतिनिधि बेसहारों की सेवा में क्रेडिट से दूर भाग रहे हैं।
प्रचार दमदार हो, सुविधा कौन देख रहा है
स्वास्थ्य अधिकारी बेहतर जानते हैं कि जरूरतमंद को सुविधाएं भला कब मिली हैं जो अब मिलने लगेंगी, लेकिन प्रचार बेहतर होना चाहिए। प्रचार ऐसा, जैसे सब कुछ पहली बार हो रहा है। मानो जरूरतमंद को नागरिक अस्पताल के बाहर से ही कर्मी सेवाएं देने के लिए तत्पर खड़े मिलें। नागरिक अस्पतालों के हालात का जायजा लें तो प्रचार में नंबर वन सुविधाओं का दावा करने वाले अधिकारी केवल कागजों को भरने में जुटे हुए हैं। दूसरी तरफ, लाइनों में चक्कर आने से मरीज गिरने को मजबूर हैं, जबकि स्टाफकर्मी की ड्यूटी भी सही से नहीं लगाई जा रही है। आयुष्मान भारत योजना के लाभार्थी इलाज के लिए नागरिक व निजी अस्पतालों में भटकने को मजबूर हैं, लेकिन प्रचार के दम पर 70 हेल्थ एंड वैलनेस सब-सेंटर अपग्रेड होने की तैयारी में हैं। कोटपेंट वाले साहब ने चुटकी लेकर बोला कि प्रचार दमदार होना चाहिए सुविधा देखने कौन आ रहा है।
तन्नै कौण सा ओलिपिक खेलणा
सरजी, यहां न तो मैदान है, न ही पीने का पानी, कोच प्रैक्टिस नहीं करवाता है। एक हफ्ते बाद मुकाबले शुरू होने हैं। खिलाड़ी के सवाल पर साहिब कुछ बोलते इससे पहले फुरसत में बीड़ी के छल्ले बनाता कर्मचारी तपाक से बोला, तन्नै कौण सा ओलंपिक खेलणा है। जवाब सुनने पर खिलाड़ी उलटे पांव निकल लिया। कर्ण स्टेडियम में बेशक सरकार ने सिंथेटिक ट्रैक और सुविधा केंद्र पर करोड़ों रुपये लगा दिया है, लेकिन खिलाड़ियों को समय पर कोच नहीं मिल रहा है। बिना कोच की मौजूदगी में सुबह-शाम खिलाड़ी अपने दम पर प्रैक्टिस कर रहे हैं। स्टेडियम में बिखरा करोड़ों रुपये का खेल का सामान, टूटे प्रवेश द्वार, गंदगी का ढेर यहां के अधिकारियों को खूब भा रहा है। अधिकारियों के साथ खेल मंत्री की बैठकों का असर यहां नाममात्र है। सुविधाओं पर करोड़ों रुपये खर्च करने वाला विभाग अपने अधिकारियों को चुस्त करने को कक्षा देना भूल गया। यारा नाल गलबहियां, कौन देखे प्रोटोकॉल
लघु सचिवालय में जरूरतमंदों के लिए प्रोटोकॉल जरूरी है, ऐसे में साहिब के पहचान वाले आ जाएं तो फिर क्या बात है.. प्रोटोकॉल के नाम पर ताजे समोसे और डिप-टी अरेंज करने में कर्मचारी निष्ठा से जुट जाते हैं। वाकया एडीसी कार्यालय स्थित फ्लोर का है। जब कुछ जरूरतमंद अपनी अर्जी लेकर घंटों से साहिब से मिलने के लिए बैठे हैं और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी उन्हें इधर-उधर का पाठ पढ़ाने में व्यस्त है। एक घंटे से चल रही इस प्रक्रिया के दौरान अचानक साहिब के पहचान वाले ने बाबूजी के बारे में क्या पूछा कि कर्मचारी ने जवाब में डिप टी के साथ ताजा समोसे का प्रपोजल रखते हुए दरवाजा खोल दिया। दो घंटे से बाहर कुर्सी पर बैठी बुजुर्ग महिला समझ चुकी थी कि अधिकारियों को आमजन से दूर रखने के लिए यहां प्रोटोकॉल केवल आम जनता के लिए है, जबकि अधिकारी अपनों के लिए नियमों को भूल जाते हैं।