युवा अभिभावक, समझ नहीं पाते शिशु की बीमारी, एक हजार के पीछे 27 मौत
एक वक्त था जब संयुक्त परिवार में दादा दादी नवजात के पालन-पोषण में मदद करते थे। उन्हें पता होता था शिशु को कैसे रखना है।
जागरण संवाददाता, करनाल : एक वक्त था जब संयुक्त परिवार में दादा दादी नवजात के पालन-पोषण में मदद करते थे। उन्हें पता होता था शिशु को कैसे रखना है। वह बीमार है तो लक्षण क्या है? लेकिन संयुक्त परिवार परंपरा टूटने के बाद अब युवा जोड़े इस पारंपरिक ज्ञान से वंचित हैं। लिहाजा बच्चा तो पैदा कर लेते हैं, यह समझ नहीं पाते उसका लालन पालन कैसे करे? रिसर्च में सामने आया है कि एक हजार बच्चों के पीछे 27 मौतों की वजह सिर्फ उनका उचित तरीके से पालन न करना है। करनाल में यह आंकड़ा 1000 के पीछे 21 है। हेल्थ विभाग ने अब तय किया कि ऐसे युवा जोड़ों को सिखाया जाएगा कि वह कैसे बच्चों को पालन-पोषण करें।
यह गलती करते हैं युवा दंपती
जन्म के बाद बच्चों को किस प्रकार से रखा जाए, उसके बारे में पता नहीं होता। उन्हें पता नहीं होता कि साफ-सफाई कैसे की जाए? यह जानकारी न होने की वजह से बच्चे संक्रमण या बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। संक्रमण यदि हो गया तो उसके लक्षण क्या हैं। इनकी पहचान नहीं कर पाते। जिस कारण समस्या बढ़ जाती है।
अब यह सीखाया जाएगा अभिभावकों को
एसएनसीयू (ए सिक न्यू बोर्न केयर यूनिट) में एक डॉक्टर व दो स्टाफ नर्सो इस काम में लगाया गया है। पहले इन्हें ट्रेंड किया गया। अब आगे यह युवा जोड़ों सिखाएंगी।
- एक माह तक के बच्चे को कैसे उठाया जाए, उसका तरीका क्या है।
- बच्चे को गर्म कैसे रखना है।
- साफ-सफाई कैसे की जाए।
- बच्चे को दूध पिलाने का क्या तरीका है।
- खतरे के लक्षण को कैसे पहचाना जाए। एसएनसीयू में दाखिल बच्चों के अभिभावकों के लिए है यह ट्रेनिग
प्रोग्राम की नोडल अधिकारी डॉ. अन्नु शर्मा व टेक्निकल एडवाइजर डॉ. निधि शर्मा ने बताया कि प्री मैच्योर, और कम वजन वाले शिशु के अभिभावकों के लिए तो यह ट्रेनिग बहुत ही जरूरी है। अभिभावकों को एसएनसीयू में बुलाकर उन्हें बच्चे के पालन-पोषण की जानकारी दी जाती है। इसके लिए चार से पांच दिन का कोर्स है। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि इस ट्रेनिग के बाद बच्चों का लालन-पालन युवा अभिभावक अच्छे से कर पाएंगे।