आपातकाल में करनाल के इस परिवार के मासूम सहित 11 सदस्यों ने काटी थी जेल
आपातकाल में जेल काटने वालों में गुलाटी परिवार के सदस्यों का संघर्ष भुलाया नहीं जा सकता है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का विरोध करने वालों में भारत का यह अकेला परिवार था जिनके छोटे-बड़े 11 सदस्यों को एक साथ जेल काटनी पड़ी। जेल में ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिधिया ने इस परिवार की तीन साल की बच्ची को बुखार होने पर देख-रेख की।
यशपाल वर्मा, करनाल
आपातकाल में जुल्म सहने वालों में करनाल का गुलाटी परिवार भी है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का विरोध करने वालों में भारत का यह अकेला परिवार था, जिसके 11 सदस्यों ने एक साथ जेल काटी। जेल में ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिधिया ने परिवार की तीन साल की बच्ची को बुखार होने पर देखरेख की। रानी बाग पुलिस चौकी व पंजाबी बाग थाने में पुलिस की बर्बरता प्रवीण गुलाटी आज भी नहीं भूले हैं। बाजुओं और आंखों के बाल जबरन उखाड़ने तथा जलती सिगरेट गले पर लगाने जैसी यातनाएं दी गई थीं। परिवार ने ऐसे में लोकतंत्र की आवाज बुलंद की, जब पति-पत्नी भी बिस्तर पर इंदिरा गांधी का नाम लेने से डरते थे। परिवार के दो वर्ष के सुधीर और तीन वर्ष की सरोज ने जेल काटकर लोकतंत्र की सुरक्षा की। 11 सदस्यों ने काटी जेल
प्रवीण कहते हैं कि परिवार में शादी थी और पुलिस ढूंढ रही थी। मुझे गिरफ्तारी देनी थी लेकिन लोगों तक संदेश जाना जरूरी था जिसके चलते सुबह 8 से 9 के बीच में गन्नौर के लक्ष्मण और रानीबागी निवासी केवल कृष्ण के साथ बीच सड़क में इंदिरा गांधी के खिलाफ नारे लगाने शुरू कर दिए। पुलिस तीनों को उठाकर चौकी ले गई। पूरा परिवार संघ प्रचारक है इसलिए घर में कोई नहीं छोड़ा। गुलाटी की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने पिता खानचंद, माता सरस्वती, भाई हरगोबिद, भाभी जनकदुलारी, गोद में भतीजे सुधीर गुलाटी, बहन सुमित्रा व उसकी बेटी सरोज, संतोष व उसकी बेटी अलका और पुष्पा को जेल भेज दिया। पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली भी जेल में साथ थे। तब वह दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के प्रधान थे। राजमाता ने बेटी को संभाला
प्रवीण कुमार बताते हैं कि बहन सुमित्रा को तिहाड़ जेल में रखा गया था। सुमित्रा की गोद में दो वर्षीय बेटी सरोज थी। पुलिसवालों ने धक्का दिया जिससे सरोज की नाक से खून बहने लगा। रात को वह बीमार पड़ गई। जेलकर्मियों में किसी ने बच्ची की हालत पर तरस नहीं खाया। महिलाओं के साथ खाना न देना और अभद्र भाषा का प्रयोग आम था। पास ही फांसी कोठरी में ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिधिया बंदी थीं। राजमाता ने गेट के पास आकर बेटी के बारे में पूछा और चिता न करने की दिलासा दी। अपनी निगरानी में बच्ची को स्वस्थ किया। परिवार में पढ़ा लोकतंत्र का पाठ
23 मार्च 1957 को जन्मे प्रवीण कहते हैं कि लोकतंत्र का पाठ परिवार में पढ़ा। पिता खानचंद संघ विचारधारा के थे और चाचा-ताऊ का परिवार आज भी इससे जुड़ा है। 17 जुलाई 1975 को उन्हें जेल हुई जबकि आठ नवंबर 1976 को रिहाई मिली थी। कभी पद या उपलब्धि का लालच नहीं किया। मुख्यमंत्री मनोहर लाल को रानीबाग से संघ के साथ जोड़ा था। अफसोस है कि आज पार्टी में कई नेता हमारा बलिदान जानते तक नहीं हैं। इनकी संख्या काफी है। चौधराहट के पीछे दौड़ने वाले युवाओं को आपातकाल में इन यातनाओं की जानकारी नहीं है।