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अंतिम दौर मेें मानसून, यहां हुई सामान्य से 41 फीसद कम बारिश, छह जिलों में सूखे जैसे हालात

हरियाणा में सामान्य से 41 फीसद कम बारिश दर्ज की गई है। बरसात के गैप का यह आंकड़ा बहुत बड़ा है। इस सीजन में यह आंकड़ा कवर नहीं हो पाएगा।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Mon, 16 Sep 2019 09:28 AM (IST)Updated: Tue, 17 Sep 2019 08:26 AM (IST)
अंतिम दौर मेें मानसून, यहां हुई सामान्य से 41 फीसद कम बारिश, छह जिलों में सूखे जैसे हालात
अंतिम दौर मेें मानसून, यहां हुई सामान्य से 41 फीसद कम बारिश, छह जिलों में सूखे जैसे हालात

करनाल [प्रदीप शर्मा]। मानसून अंतिम दौर में है। अमूमन 15 सितंबर तक अलविदा हो जाने वाला मानसून इस बार एक हफ्ते देरी से जाएगा। हालांकि इस दौरान भी बारिश की संभावना नहीं है। इस बार हरियाणा में मानसून की बारिश अच्छी नहीं रही। अब तक 416.2 एमएम बारिश होनी थी, लेकिन महज 244.9 एमएम ही हो पाई है। यानी सामान्य से 41 फीसद कम बारिश दर्ज की गई है। बरसात के गैप का यह आंकड़ा बहुत बड़ा है। इस सीजन में यह आंकड़ा कवर नहीं हो पाएगा। प्रदेश के छह जिलों में तो सूखे जैसे हालात बने रहे। पानीपत सहित सोनीपत, रोहतक, फतेहाबाद, झज्जर और पंचकूला ऐसे जिले हैं, जहां पर 55 से 71 फीसद तक कम बरसात हुई है।

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प्रदेश के किसी भी जिले में नहीं हुई पूरी बारिश

इस बार मानसून ने हरियाणा से दूरी बनाए रखी। यही कारण रहा कि किसी भी जिले में पूरी बरसात नहीं हुई। कोई भी जिला सामान्य के आंकड़े को नहीं छू पाया। हालांकि कुछ जिलों सिरसा, यमुनानगर और अंबाला में संतोष जनक बरसात हुई है, लेकिन यह इनमें भी बरसात का ग्राफ सामान्य से कम दर्ज किया गया।

कम बारिश का ये होगा असर

जितनी बारिश की उम्मीद लगाई थी उतनी नहीं हो पाई। जहां पर धान की पैदावार अच्छी होती है करनाल, पानीपत, यमुनानगर, अंबाला, कुरुक्षेत्र और कैथल में भी कम बारिश हुई, जिससे किसानों को भूजल स्तर पर ही निर्भर रहना पड़ा। हालांकि कृषि विभाग ने किसानों को धान कम से कम लगाने के लिए प्रेरित किया था, लेकिन इसका असर कम देखने को मिला। कृषि विभाग की जागरूकता के बाद भी किसानों ने धान की रोपाई की।

अक्टूबर में बारिश बिगाड़ सकती है खेल

मौसम विभाग की मानें तो अक्टूबर माह में भी बारिश से इनकार नहीं किया जा सकता। यह समयावधि ऐसी होती है जब धान उठान का कार्य जोरों पर होता है। ऐसे में यदि अक्टूबर माह में बारिश होती है तो किसानों के लिए किसी परेशानी से कम नहीं होगी। धान भीगने से किसानों की दिक्कतें बढ़ सकती हैं।

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