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कनाडा की यूनिवर्सिटी के आग्रह पर श्री गुरुग्रंथ साहिब का संस्कृत में अनुवाद

श्री गुरुग्रंथ साहिब का संस्कृत में अनुवाद का कार्य पूर्ण हो गया है। नीलोखेड़ी के सेवानिवृत्त संस्कृत शिक्षक आचार्य जयनारायण शास्त्री ने आठ साल चार माह में इस अनुवाद को पूरा किया।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sun, 26 Aug 2018 01:22 PM (IST)Updated: Mon, 27 Aug 2018 08:55 PM (IST)
कनाडा की यूनिवर्सिटी के आग्रह पर श्री गुरुग्रंथ साहिब का संस्कृत में अनुवाद
कनाडा की यूनिवर्सिटी के आग्रह पर श्री गुरुग्रंथ साहिब का संस्कृत में अनुवाद

करनाल [अश्विनी शर्मा]। श्री गुरुग्रंथ साहिब का संस्कृत में अनुवाद का कार्य पूर्ण हो गया है। नीलोखेड़ी के सेवानिवृत्त संस्कृत शिक्षक आचार्य जयनारायण शास्त्री ने आठ साल चार माह में इस अनुवाद को पूरा किया। महाभारत की तर्ज पर श्री गुरुग्रंथ साहिब को पर्वों में बांटा हुआ है। इसके 55 पर्व बने हैं, जबकि कुल 1759 पेज पर इन्हें उकेरा गया है। इसे लिखने में अनुस्तुक छंद का इस्तेमाल हुआ है।

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करनाल के नीलोखेड़ी निवासी आचार्य जयनारायण शास्त्री 1989 में संस्कृत अध्यापक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। इसके बाद वह संस्कृत साहित्य सृजन में व्यस्त हो गए। इस दौरान इन्होंने सतप्रकाश महाराज को अपना संस्कृत साहित्य भेंट किया। ये पुस्तकें लेकर सतप्रकाश महाराज कनाडा चले गए और आचार्य जयनारायण का साहित्य एमसी गिल धार्मिक यूनिवर्सिटी कनाडा के डॉ. अरविंद शर्मा को दिया।

साहित्य पढ़ने के पढऩे के बाद डॉ. शर्मा ने जयनारायण शास्त्री से संपर्क किया और उनसे अनुरोध किया कि वह श्रीगुरुग्रंथ साहिब का संस्कृत में अनुवाद करें। अभी तक इसका संस्कृत में अनुवाद नहीं हुआ है। उनके आग्रह पर जयनाराण शास्त्री ने अप्रैल 2010 में अनुवाद का कार्य शुरू कर दिया। प्रत्येक माह अनुवाद के बाद करीब 500 श्लोक भेजने लगे। समय बीतने के साथ ही अनुवाद का काम बढ़ता गया।

5 जुलाई 2018 को यह काम पूरा हो गया। अनुवाद का कार्य पूरा होने का पता चलते ही कई संस्थाओं व हरियाणा संस्कृत साहित्य अकादमी ने उन्हें इसका प्रकाशन कराने की पेशकश की। मगर उन्होंने बताया कि एमसी गिल धार्मिक यूनिवर्सिटी कनाडा के आग्रह पर यह कार्य किया है। पहले प्रकाशन का अधिकार उनका है। इसके बाद कोई भी प्रकाशन करवा सकता है।

मिल चुका है प्रदेश का सर्वोच्च संस्कृत सम्मान

जयनारायण शास्त्री को प्रदेश की संस्कृत साहित्य अकादमी की ओर से दिए जाने वाला सर्वोच्च सम्मान महर्षि वाल्मीकि पुरस्कार वर्ष 2007 में मिला मिल चुका है। अकादमी ने 2004 में उन्हें वेद व्यास पुरस्कार  व 2013 में हरियाणा संस्कृत गौरव सम्मान से अलंकृत किया।

सात महाकाव्य व दो खंड काव्य सहित लिखी कई रचनाएं

वह संस्कृत में सात महाकाव्य, दो खंड काव्य, तीन नाटक व दो स्रोत सहित कई रचनाएं लिख चुके हैं। उनके साहित्य पर पटियाला विश्वविद्यालय, बनारस विश्वविद्यालय व कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के छात्र पीचएचडी के लिए शोध कर रहे हैं।

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