सदियों पहले हुए युद्ध की यादें ताजा करा देती हैं ये इमारतें
ऐतिहासिक किला अपने अंदर इतिहास संजोए हुए है। इस किले में इस समय भी मौजूद कई इमारते सदियों पहले हुए युद्ध की यादें ताजा करवा देती हैं। कस्बे के इस किले में पृथ्वीराज चौहान व कू्रर विदेशी शासक मोहम्मद गौरी के बीच तराइन युद्ध हुआ था। पृथ्वीराज चौहान का किला होने के कारण इस स्थान का वर्णन भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
रोहित लामसर, तरावड़ी
ऐतिहासिक किला अपने अंदर इतिहास संजोए हुए है। इस किले में इस समय भी मौजूद कई इमारतें सदियों पहले हुए युद्ध की यादें ताजा करवा देती हैं। कस्बे के इस किले में पृथ्वीराज चौहान व क्रूर विदेशी शासक मोहम्मद गौरी के बीच तराइन युद्ध हुआ था। पृथ्वीराज चौहान का किला होने के कारण इस स्थान का वर्णन भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। तरावड़ी को पहले तराईन के नाम से जाना जाता था। बुद्धिजिवियों के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने सैनिकों के विश्राम के लिए यहां किले का निर्माण करवाया था। यह किला अब लोगों का आशियाना बनकर रह गया है। इस यादगार इमारत में अब लोगों ने अपने घर बसा लिए हैं, लेकिन आज भी इसकी चारों तरफ की इमारतें अपने अंदर संजोए इतिहास को ब्यान करती हैं। शहरवासी कर रहे सुंदरीकरण की मांग
काटजू नगर किले वार्ड नंबर-1 के पार्षद आत्मप्रकाश ने बताया कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने अनाज मंडी में आयोजित रैली में तरावड़ी में पृथ्वी राज चौहान के नाम पर स्मारक बनाने की घोषणा की थी। यह स्मारक जल्दी ही राष्ट्रीय राजमार्ग तरावड़ी के पास कहीं भी बनाया जाना चाहिए। ताकि आने वाले वाले लोगों को तरावड़ी की पहचान पता चल सके। आज के समय में इस किले को सुंदरीकरण की जरूरत है। इमारतें लगातार खंडर में तबदील होती जा रही है। संबधित विभाग एवं प्रशासन ने इसकी सुध नहीं ली। पहली लड़ाई में मोहम्मद गौरी को देखना था पड़ा था हार का मुंह
बता दें कि सन 1191-1192 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच यहीं पर 18 बार युद्ध हुआ था। बताया जा रहा है कि पहली लड़ाई में मोहम्मद गौरी को हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन दूसरी लड़ाई में पृथ्वीराज के साले जयचंद ने भीतरघात किया और वह मोहम्मद गौरी से जा मिला। नतीजतन इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। तरावड़ी में युद्ध की यादें ताजा करवाने वाले इस ऐतिहासिक किले का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है। यह किला पृथ्वीराज चौहान व मोहम्मद गौरी के युद्ध का गवाह है।