खामोश मतदाता ने लिख दी भाजपा की रिकार्ड तोड़ जीत की स्क्रिप्ट
प्रचार में विपक्ष नहीं कर पाया भाजपा की बराबरी। देर से घोषित किया था कैंडीडेट। नेता नहीं पकड़ पाए वोटर की नब्ज।
अश्विनी शर्मा, करनाल
मतदाता खामोश था। गुपचुप। मन में तय था। क्या करना है। क्यों करना है। सब कुछ। मतदान के दिन 12 मई को कहां बटन दबाना है। इसकी भनक तक नहीं लगने दे रहा था। आज यानी 23 मई को जो परिणाम आया, वह चौकाने वाला है। रिकॉर्ड मतों से भाजपा उम्मीदवार की जीत का अंदाजा किसी को नहीं था।
यह तो तय था कि करनाल सीट से संजय भाटिया जीत हासिल कर रहे हैं, लेकिन इतने वोट से यह बात मतदाता ने बहुत ही तरीके से मन में दबा कर रखी। यही वजह है कि इस जीत से हर कोई हैरान है। इतनी बड़ी जीत की उम्मीद तो भाजपा कार्यकर्ता को भी नहीं थी। अब सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर कैसे यह भाटिया की जीत इतनी बड़ी हुई। आखिर वह क्या फैक्टर रहा जो उन्हें रिकार्ड तोड़ मत तक लेकर गया।
गन्नौर के विधायक कुलदीप शर्मा को कांग्रेस ने भले ही अपना उम्मीदवार बनाया, लेकिन वह पहले दिन से बैकफुट पर थे। कांग्रेस एक भी जगह भाजपा को घेरने में कामयाब नहीं रही। कोई ऐसा मुद्दा शर्मा खड़ा नहीं कर पाए जिस पर मतदाता को अपने साथ जोड़ सके। उनका प्रचार ढीले से तरीके से चलता रहा। वह न मतदाता में सेंध लगा पाए ना खुद को भाजपा प्रत्याशी के सामने मजबूती से खड़ा कर पाए। यहीं हाल इनेलो उम्मीदवार. का था। उन्होंने एक भी मौके पर सरकार को घेरने की कोशिश नहीं की। जजपा और आप ने पानीपत निवासी संजय भाटिया को अपना उम्मीदवार बनाया। लेकिन वह भी मतदाता के बीच अपना असर दिखाने में नाकामयाब रहा। इसका परिणाम यह निकला कि हर मतदाता की पहली पसंद भाजपा बन कर उभरी।
कांग्रेसी उम्मीदवार को उम्मीद थी कि ब्राह्मण होने के नाते, उन्हें इस बिरादरी के मत तो मिल ही जाएंगे। यह भी सोच थी कि क्योंकि असंध विधानसभा क्षेत्र से उन्हें अच्छी खासी बढ़त मिल सकती है। रोड़ बिरादरी जिसके एक लाख 20 मत है, वह क्योंकि भाजपा के पक्ष में शुरू से एकजुट है, इसलिए जाट मतदाता जो कि दो लाख 10 हैं, कांग्रेस की ओर आ सकता है। लेकिन यह समीकरण भी यहां गलत साबित होता नजर आ रहा है। इससे यहीं साबित हो रहा है कि इस बार कोई फैक्टर नहीं चल पा रहा था। इस वजह से हर तबके के मतदाता ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया। हर वर्ग भाजपा के पक्ष में एकजुट था। इसका असर शहर से लेकर गांव तक नजर आया है।
मतदान के वक्त मतदाता की सिर्फ यहीं सोच थी, वोट मोदी को देना है। वह स्थानीय स्तर पर कुछ भी नहीं देख रहा था। हालांकि राजनीति पंडित यह मान कर चल रहे थे कि पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में इस बार मोदी फैक्टर कम काम कर रहा है, लेकिन वह गलत साबित हुए। इस बार क्योंकि मतदाता बोलने से भले ही बच रहा था, लेकिन उसके सामने सिर्फ चेहरा मोदी ही बने हुए थे। यहीं वजह रही कि इस बार भाटिया को रिकार्ड तोड़ मत मिले।