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खामोशी में छिपाए है सियासत के राज

करनाल संसदीय क्षेत्र का चुनावी माहौल खामोशी में सारे राज छुपाए हुए है। यहां कांग्रेस और भाजपा में ही मुख्य मुकाबला है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 05 May 2019 06:27 AM (IST)Updated: Sun, 05 May 2019 06:27 AM (IST)
खामोशी में छिपाए है सियासत के राज
खामोशी में छिपाए है सियासत के राज

मनोज ठाकुर, करनाल

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करनाल संसदीय क्षेत्र का चुनावी माहौल खामोशी में सारे राज छुपाए हुए है। मोदी लहर को स्वीकार करने वाले लोगों को एक तरफ कर दिया जाए तो इस माहौल ने राजनीतिक दलों की धड़कन बढ़ाई हुई है। पहले इस सीट से अपनी जीत सुनिश्चित मान रही भाजपा की चिंता बढ़ी हुई है। इसके पीछे अहम यह है कि यह मुख्य प्रतिद्वंदी दल काग्रेस ने ब्राह्मण-जाट वोट बैंक की गोलबंदी करनी शुरू की हुई है। इस परिदृश्य में जजपा-आप गठबंधन और इनेलो चुनावी रेस में आगे बढ़ने के लिए खासा जोर लगाना होगा। इन दोनों ही दलों से जाट वोट बैंक हटकर काग्रेस की ओर मूव करता है तो इन दोनों दलों के लिए मुसीबत खड़ी होगी। काग्रेस को ताकत मिलेगी और भाजपा को एक कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ेगा। हाल की परिस्थितियों में चुनावी रेस में किसी को भी आगे या पीछे करने का आकलन करना राजनीतिक पंडितों के लिए भी मुश्किल है। काग्रेस व भाजपा में मुख्य मुकाबला

करनाल संसदीय क्षेत्र का इतिहास भी यही कहता है कि इस सीट पर मुख्य तौर पर मुकाबला भाजपा व काग्रेस के बीच ही रहा है। लिहाजा इस बार भी चुनावी टक्कर भाजपा व काग्रेस के बीच में अब तक नजर आ रही है। भाजपा प्रत्याशी संजय भाटिया और काग्रेस प्रत्याशी कुलदीप शर्मा जनसंपर्क अभियान में जुटे हुए हैं। इनेलो करनाल संसदीय क्षेत्र से कभी चुनाव नहीं जीत पाई है। जजपा के लिए आप के साथ गठबंधन कर करनाल से चुनाव मैदान में उतरने का यह पहला अवसर है। इनेलो से धर्मवीर सिंह व जजपा-आप गठबंधन से कृष्ण अग्रवाल मैदान में है। दिग्गज नहीं समझ पाए करनाल लोकसभा सीट की तासीर

करनाल लोकसभा सीट की तासीर समझना राजनीतिक पंडितों के लिए भी आसान नहीं रहा है। यहीं गच्चा राजनीति के पीएचडी माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल खा गए थे। 1998 में काग्रेस की टिकट पर उन्होंने करनाल संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा। उनके सामने भाजपा के आईडी स्वामी थे। स्वामी प्रशासनिक सेवा से रिटायर होकर आए थे। ऐसे में पहले ही चुनाव में भजन लाल ने स्वामी को चारों खाने चित कर दिया और जीत दर्ज की। 1999 में फिर लोकसभा चुनाव जनता के सामने आए गए। दोबारा से भजन लाल और स्वामी आमने-सामने आ गए। जीवन में कभी भी चुनाव नहीं हारे भजन लाल अपनी जीत को लेकर शुरू से आश्वस्त थे। क्योंकि उनके सामने प्रत्याशी भी ऐसा था, जिसे सक्त्रिय राजनीति का ज्यादा अनुभव नहीं था। अलबत्ता चुनाव नतीजे हैरान करने वाले आए। जनता ने भजनलाल को शिकस्त देकर स्वामी को अपनी पलकों पर बैठा लिया। स्वामी की जीत की गूंज पूरे देश में चर्चा का केंद्र बनी। ईनाम के तौर पर उन्हें अटल सरकार में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री भी बनाया गया। वर्ष 2004 के चुनाव तक स्वामी भी राजनीति में एक बड़ा नाम बन चुके थे और इस साल हुए चुनाव में भाजपा ने उन्हें फिर मौका दिया। स्वामी अपनी जीत पर पक्का यकीन मानकर चल रहे थे। लेकिन वह यह भूल गए थे कि ये करनाल संसदीय क्षेत्र पिछले ही चुनाव में भजनलाल की राजनीतिक की पीएचडी तोड़ चुका है। लिहाजा केंद्र सरकार के राज्यमंत्री को इस चुनाव में जनता ने नकारा और संसदीय क्षेत्र में काग्रेस की टिकट पर आए नए चेहरे डा. अरविंद शर्मा को जीत दिला दी। फिर जनता ऐसी मेहरबान हुई कि 2009 के चुनाव में भी अरविंद शर्मा को जीत दिलाई। यह चुनावी अतीत बताता है कि करनाल की जनता के मूड को भापने में दिग्गजों का लंबा अनुभव भी फेल हो चुका है। प्रदेश की वीआइपी सीट बनी

प्रदेश की राजनीति में अहम स्थान रखने वाली करनाल संसदीय क्षेत्र इस समय वीआइपी सीट के रूप में पहचान बना चुकी है। अतीत में यहा दिग्गज आकर चुनाव लड़ते रहे हैं। करनाल विधानसभा से विधायक चुने गए मनोहर लाल सीएम बने तो करनाल संसदीय क्षेत्र का नाम भी उभरा। सीएम मनोहर लाल का प्रतिनिधित्व ही मुख्य तौर इस क्षेत्र में उभरकर सामने आता है। इस सीट पर भाजपा की जीत और हार के मायने लंबे संदभरें में लिए जाएंगे। पारंपरिक ब्राह्मण सीट रही है करनाल

पारंपरिक तौर पर करनाल की पहचान ब्राह्मण सीट के तौर पर रही है। यहा से अब तक बने अधिकतर सासद ब्राह्मण बने हैं। तीन बार ही जनता ने गैर ब्राह्मण को संसद तक पहुंचाया है। इनमें मोहिंद्र सिंह लाठर, पूर्व सीएम भजन लाल व निवर्तमान भाजपा सासद अश्रि्वनी चोपडा का नाम शामिल है

दो लाख नए मतदाता दबाएंगे ईवीएम

करनाल संसदीय क्षेत्र में इस बार करीब दो लाख नए मतदाता ईवीएम का बटन पहली बार दबाएंगे। यह मतदाता 18 से 24 साल तक की आयु वर्ग के हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में करनाल 16 लाख से ज्यादा मतदाता थे। इस समय करनाल लोकसभा क्षेत्र के 9 विधानसभा क्षेत्र में 18 लाख 50 हजार 816 मतदाता हैं। 2014 के चुनाव में किस पार्टी का कितने प्रतिशत मत मिले

पार्टी मत प्रतिशत

भाजपा 49.84

काग्रेस 19.66

इनेलो 15.74

बसपा 8.60

नोटा 0.25 करनाल के ये बने सासद 1952-57- वीरेंद्र कुमार सत्यवती -काग्रेस

1957-62-सुभद्रा जोशी -काग्रेस

1962-67- स्वामी रामेश्वरानंद -जनसंघ

1967-71- माधो राम शर्मा-काग्रेस

1971-77- माधो राम शर्मा-काग्रेस

1977-80- भगवत दयाल शर्मा-जनता पार्टी

1977-80- मोहिंद्र सिंह लाठर-जनता पार्टी

1980-84- पंडित चिरंजी लाल शर्मा-काग्रेस

1984-89 पंडित चिरंजी लाल शर्मा-काग्रेस

1989-91-पंडित चिरंजी लाल शर्मा-काग्रेस

1991-96-पंडित चिरंजी लाल शर्मा-काग्रेस

1996-98- आईडी स्वामी-भाजपा

1998-99- भजन लाल-काग्रेस

1999-04- आईडी स्वामी-भाजपा

2004-2009- अरविंद कुमार शर्मा-काग्रेस

2009-2014- अरविंद कुमार शर्मा-काग्रेस

2014-अब तक -अश्रि्वनी चोपड़ा-भाजपा

करनाल में सबसे ज्यादा वोट पंजाबी बिरादरी के हैं। इस बिरादरी के दो लाख से ज्यादा वोट हैं। दूसरे नंबर पर जाट मतदाता हैं। इस बिरादरी के करीब दो लाख मतदाता हैं। तीसरे नंबर ब्राह्मण मतदाता हैं और इनकी संख्या करीब

डेढ़ लाख है। चौथे नंबर पर रोड बिरादरी के मतदाता हैं। इनकी संख्या एक लाख 20 हजार के करीब हैं। पाचवें नंबर पर जट सिख मतदाता है। इनकी संख्या करीब 92 हजार है। छठे नंबर पर राजपूत मतदाता हैं और इनकी संख्या करीब 80

हजार है। सातवें नंबर महाजन मतदाता हैं और ये 75 हजार से ज्यादा हैं। मुस्लिम वोटर 60 हजार के करीब हैं। काग्रेस प्रत्याशी-कुलदीप शर्मा

पूर्व स्पीकर, विधायक गन्नौर

उम्र 62 साल

शिक्षा-एलएलबी चार प्लस प्वाइंट

कुलदीप शर्मा के पिता पूर्व सासद पंडित चिरंजी लाल शर्मा लगातार चार करनाल से सासद रहे हैं। पारंपगत ब्राह्मण सीट होने का दावा इस सीट पर किया जाता है, लिहाजा काग्रेस ने बेहद सोचसमझकर उन्हें वोट दिया है, जो जातीय समीकरण को भी साधता है। वह स्थानीय मुद्दों व समस्याओं से वाकिफ भी हैं। लेकिन लोगों से कनेक्टिविटी का आभाव, स्थानीय स्तर पर काग्रेसियों में गुटबाजी, भाजपा के मुकाबले चुनाव प्रचार के लिए कम समय मिलना व 2004 के लोकसभा चुनाव में आजाद प्रत्याशी के तौर जमानत जब्त होना उनके लिए माइनस प्वाइंट है। 2. भाजपा प्रत्याशी संजय भाटिया

पार्टी के प्रदेश महामंत्री

उम्र 51 साल

शिक्षा-बीकॉम संजय भाटिया का सबसे बड़ा प्लस प्वाइंट यह है कि वह इस क्षेत्र के वर्करों से अच्छी तरह से वाकिफ हैं और वर्कर भी उनसे। वह करनाल जिले में संगठनात्मक जिम्मेदारी के तहत काम भी कर चुके हैं। मुख्यमंत्री के भी वह नजदीकी हैं। अलबत्ता उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती रूठों को मानने की है। चूंकि संसदीय चुनाव में प्रत्येक बिरादरी के वोट अहम हो जाते हैं। जातीय समीकरण को साधते हुए आगे बढ़ाना भी भाटिया के लिए बेहद अहम हैं। पंजाबी बिरादरी में उनकी अच्छी पैठ है। लेकिन इसके साथ ही करनाल संसदीय क्षेत्र में प्रभाव रखने वाली बिरादरियों के वोट बैंक को अपने साथ लेना होगा। आप-जजपा प्रत्याशी कृष्ण लाल अग्रवाल

उम्र 41 साल

शिक्षा एलएलबी कृष्ण कुमार अग्रवाल समाजसेवी छवि के व्यक्ति हैं। वह अखिल भारतीय अग्रवाल सम्मेलन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। वह व्यापारी संगठनों से भी जुड़े रहे हैं। यह उनके प्लस प्वाइंट हैं। लेकिन आप का जनाधार करनाल सीट बेहद कम रहा है। दूसरे जजपा का वोट बैंक करनाल क्षेत्र में कितना है यह भी अभी नहीं पता। जो लोग जजपा में आस्था रखते हैं, वह किस हद तक ट्रासफर होकर आप प्रत्याशी के पास आएंगे। यह सवाल भी अभी जस का तस खड़ा है। इनेलो प्रत्याशी धर्मबीर सिंह

उम्र 56 साल

शिक्षा बीए इनेलो प्रत्याशी धर्मबीर सिंह करनाल व पानीपत जिले से अच्छी तरह से परिचित हैं। वह मूल रूप से करनाल के असंध हलके पाढ़ा गाव के रहने वाले हैं। 1980 में वह पार्टी से जुड़े थे। इसके बाद पार्टी के अलग अलग पदों पर रहे हैं। उनके लिए चुनौती यह है कि इनेलो के पुराने वोट बैंक को पूरी तरह से कैसे एकजुट किया जाए। चूंकि जजपा के उदय का असर सीधे तौर पर उनकी पार्टी पर आया है। इनेलो कभी करनाल से जीत भी नहीं पाई है। लिहाजा उनके सामने इनेलो के जनाधार को ही कायम रखने की चुनौती भी प्रमुख है।

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