केसीजीएमसी में ओपीडी घटी, जिम्मेदारी से बचने के लिए नागरिक अस्पताल को बताया वजह
कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज में डेढ़ माह में ओपीडी 2500 से घटकर 1500 पर आ गई। ओपीडी क्यों घटी? क्या बीमारियां कम हुई हैं? या फिर कोई ओर कारण है? इन सवालों पर गौर करने के बजाय डीएमएस कार्यालय की तरफ से निदेशक को पत्र लिखकर बेहद शर्मनाक जवाब दिया।
जागरण संवाददाता, करनाल : कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज में डेढ़ माह में ओपीडी 2500 से घटकर 1500 पर आ गई। ओपीडी क्यों घटी? क्या बीमारियां कम हुई हैं? या फिर कोई ओर कारण है? इन सवालों पर गौर करने के बजाय डीएमएस कार्यालय की तरफ से निदेशक को पत्र लिखकर बेहद शर्मनाक जवाब दिया। पत्र में लिखा है कि नागरिक अस्पताल की वजह से मेडिकल कॉलेज की ओपीडी कम हुई है। यह नहीं बताया गया कि क्यों मरीज बड़े स्वास्थ्य संस्थान को छोड़कर छोटे स्वास्थ्य संस्थान में जाकर इलाज करना पसंद कर रह रहे हैं। क्लीनिकल स्टाफ का यह जवाब मेडिकल कॉलेज में भी चर्चा का विषय बना हुआ है।
नागरिक अस्पताल में ओपीडी 700 से बढ़कर 1600 के करीब पहुंची
इधर नागरिक अस्पताल में दो माह में 700 से बढ़कर करीब 1600 तक पहुंच गई है। सीमित डॉक्टरों की टीम व सीमित संसाधन होने की बावजूद भी लोग नागरिक अस्पताल में इलाज करना पसंद कर रहे हैं। अस्पताल की बढ़ी ओपीडी को लेकर नागरिक अस्पताल प्रबंधन अपनी पीठ थपथपा रहा है। जागरण पड़ताल में केसीजीएमसी की ओपीडी घटने के बड़े कारण 1. इलाज की प्रक्रिया में अंतर
- कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज में इलाज की प्रक्रिया काफी लंबी है। रजिस्ट्रेशन कराने के भी पहले टोकन के लिए लाइन लगती है। उसके बाद रजिस्ट्रेशन के लिए। स्लिप बनने के बाद ओपीडी के बाहर कतार। ओपीडी में टेस्ट लिख दिए तो तीन दिन के बाद रिपोर्ट आती है। तब तक मरीज की हालत क्या होगी उसका अंदाजा इस व्यवस्था से लगाया जा सकता है।
- इधर नागरिक अस्पताल में ओपीडी रजिस्ट्रेशन के लिए लाइन है और ओपीडी के लिए भी, लेकिन मरीजों को आसानी से जगह मिल जाती है और एक छत के नीचे सभी व्यवस्था होने के कारण इलाज कराने के लिए भागदौड़ नहीं करनी पड़ती। 2. केसीजीएमसी के डॉक्टरों और मरीजों के बीच बढ़ती अविश्वास की खाई
- कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों द्वारा इलाज में लापरवाही के कई केस सामने आ चुके हैं, कई मौत हो चुकी हैं, इस प्रकार के मामले सामने आने के बाद लोगों ने मेडिकल कॉलेज से कन्नी काटना शुरू कर दिया है। इमरजेंसी में भी लोग पहले नागरिक अस्पताल के ट्रामा सेंटर में जाते हैं, बाद में दूसरे विकल्प के रूप में मेडिकल कॉलेज को चुन रहे हैं। इन मामलों से भी उठा मेडिकल कॉलेज के प्रति लोगों का विश्वास
- जून 2018 में केसीजीएमसी के डॉक्टर द्वारा अमृतधारा अस्पताल में जाकर रेफर किए गए मरीज का 16 हजार रुपये में आपरेशन करने के मामले में दोषी पाया गया था। स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज के आदेश पर तीन सदस्यीय जांच कमेटी मेडिकल कॉलेज पहुंची थी। इस मामले में डॉ. मन्नु को निलंबित कर दिया गया था। - 2017 में केसीजीएमसी की इमरजेंसी में आए मरीज के परिजनों को डॉ. गाजी द्वारा गुमराह करने का भी मामला सामने आया था। डॉक्टर ने सिग्नस अस्पताल से सांठ-गांठ कर मरीज को रेफर कर दिया था। इस मामले में बच्चे की मौत भी हो गई थी। इस केस में डॉ. गाजी पर एफआइआर के निर्देश दिए थे। - जून 2018 में ही केसीजीएमसी के डॉक्टरों द्वारा मेडिकल स्टोर संचालकों से सांठ-गांठ की बात सामने आई थी। डॉक्टरों द्वारा जो दवाइयां लिखी जाती हैं, उसमें से ज्यादातर बाहर की होती हैं। डॉक्टर पर्ची पर साइन कर भेजते हैं। तीन सदस्यीय टीम ने जांच पड़ताल में यह गड़बड़ी भी पकड़ी थी। मेडिकल स्टोर पर रिकॉर्ड खंगालने पर पता चला कि पर्ची पर डॉक्टर के साइन हैं। इधर डेढ़ करोड़ की दवाइयों का लॉट मेडिकल कॉलेज के लिए बन गया सिरदर्द
पिछले दो माह की ओपीडी की कार्यशैली को देखकर मेडिकल कॉलेज की ओर से डेढ़ करोड़ रुपये की दवाइयों का लॉट मंगवा लिया गया। डेढ़ माह से जैसे ही ओपीडी में भारी गिरावट आई तो प्रबंधन की सांसें फूली हुई हैं। डेढ़ करोड़ की जो दवाइयां मंगवाई गई हैं, वह 2500 ओपीडी के अनुसार हैं, लेकिन अब ओपीडी महज 1500 तक सिमटकर रह गई है। ऐसे में यदि दवाइयों को एडजस्ट नहीं किया तो एक्सपायरी हो सकती हैं।
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नागरिक अस्पताल के पीएमओ डॉ. पीयूष शर्मा ने कहा कि नागरिक अस्पताल की व्यवस्था बेहतर हुई है। लोगों का सरकारी अस्पताल के प्रति विश्वास बढ़ा है, यही कारण है कि ओपीडी में इजाफा हुआ है। सीमित संसाधनों के बावजूद हमारा प्रयास रहता है कि लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं दी जाएं।
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कल्पना चावला राजकीय मेडिकल कॉलेज के डिप्टी मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. अशोक जागलान ने कहा कि ओपीडी कम जरूर हुई है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यहां पर इलाज बेहतर नहीं है। कुछ ओर भी कारण हो सकते हैं। मरीज स्वतंत्र हैं, वह मेडिकल कॉलेज में इलाज कराएं या नागरिक अस्पताल में।