दोस्तों ने याद किए बलजीत के साथ बिताए पल, साथ में की थी सेना ज्वाइन
शहीद बलजीत ¨सह का बचपन से ही सपना था कि वह देश की सरहदों की रक्षा करें। मृदुभाषी और मिलनसार प्रवृत्ति रखने वाला बलजीत ¨सह ने युवा अवस्था में ही भर्ती की तैयारी शुरू कर दी थी। देशभक्ति का जज्बा इतना ज्यादा था कि अपने दोस्त परमजीत, सुशील कुमार और संजय के साथ सेना की भर्ती के लिए जी तोड़ मेहनत करता रहता था।
संवाद सहयोगी, घरौंडा (करनाल) : शहीद बलजीत ¨सह का बचपन से ही सपना था कि वह देश की सरहदों की रक्षा करें। मृदुभाषी और मिलनसार प्रवृत्ति रखने वाला बलजीत ¨सह ने युवा अवस्था में ही भर्ती की तैयारी शुरू कर दी थी। देशभक्ति का जज्बा इतना ज्यादा था कि अपने दोस्त परमजीत, सुशील कुमार और संजय के साथ सेना की भर्ती के लिए जी तोड़ मेहनत करता रहता था। कहते हैं मंजिलें उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, और हुआ भी ऐसा ही। बलजीत और उसके दोस्तों में मेहनत रंग लाई और वे सेना में भर्ती हो गए। बलजीत और उसके दोस्तों ने प्राइमरी तक की शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में ही की। इसके बाद बलजीत ने 10वीं कक्षा तक की पढ़ाई घरौंडा के आर्य स्कूल में की। यहां के बाद चारों दोस्तों ने अलग-अलग स्कूलों में शिक्षा हासिल की, लेकिन भर्ती की तैयारी के लिए हमेशा एक साथ रहे। शहीद बलजीत ¨सह के दोस्त संजय कुमार बीती 31 जनवरी को जाट रेजिमेंट से रिटायर हुए है, जबकि परमजीत और सुशील कुमार आइटीबीपी में अपनी सेवाएं दे रहे है। संजय बताते है कि बलजीत और उनके दोस्तों में सेना में भर्ती का इतना ज्यादा जुनून था कि मात्र एक साल की कड़ी मेहनत के बाद ही सभी देश की सेवा के लिए सेना में भर्ती हो गए। संजय का कहना है कि वे सबसे ज्यादा कबड्डी खेलते थे। जब कभी छुट्टी आते थे तो बचपन की यादें ताजा हो जाती थी। बलजीत मिलनसार था और समाजसेवा के कामों में भी आगे रहता था। फोटो----69 नंबर है।
ट्रे¨नग के दौरान चिट्ठी लिखकर जानते से हाल
संजय कुमार बताते है कि सेना की भर्ती के बाद ट्रे¨नग अलग-अलग जगहों पर हुई। बलजीत महाराष्ट्र के अहमदनगर में ट्रे¨नग करता था। जबकि मेरी ट्रे¨नग बरेली में हुई। वहां पर फोन का इस्तेमाल नहीं किया जाता था लेकिन हम चिट्ठी लिखकर एक-दूसरे का हाल जानते थे और ट्रे¨नग के बारे में भी पूछते थे। फोटो----69 नंबर है।
हमने एनएसजी में साथ ट्रे¨नग की
पनौड़ी निवासी राजेश कुमार मौजूदा समय में भारतीय सेना में अपनी सेवा दे रहा है। राजेश कुमार बलजीत का रिश्तेदार भी है। राजेश ने बलजीत के साथ एनएसजी में पो¨स्टग के दौरान साथ-साथ ड्यूटी दी है। राजेश बताते है कि बलजीत अपनी ड्यूटी के प्रति बहुत ही गंभीर रहता था और हर तरह की चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहता था। फोटो---68 नंबर है।
जब 1962 युद्ध हुआ तो शहीद के पिता भी सेना में भर्ती होने गए थे बलजीत के चाचा बलबीर लाठर के मुताबिक 1962 में चीन-भारत युद्ध के दौरान सैनिकों की कमी हुई तो युवकों की डायरेक्ट भर्ती हुई। धरती माता की रक्षा के लिए बलजीत ¨सह के पिता किशनचंद भी सेना में चले गए थे। लेकिन युद्ध बंद होने के कारण अधिकारियों ने मना कर दिय।जिससे वे भर्ती नहीं पाए। बलबीर लाठर का कहना है कि उनके गांव के लगभग 25 युवक सेना में देश की सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा काफी संख्या में सेना से रिटायर्ड हो चुके हैं। हर भर्ती में गांव के युवक सेना की तैयारी करते हैं और दो से तीन युवा एक हर बार देश सेवा के लिए सलेक्ट होते हैं।