रिग का बादशाह द ग्रेट खली कर रहा चिनाई, यूं जीतते हैं कर्मयोद्धा
जुलाई 2007 में डब्ल्यूडब्ल्यूई वर्ल्ड हेवीवेट चैंपियनशिप के पहले भारतीय विजेता दलीप सिंह राणा यानी द ग्रेट खली के हाथ में गारा खुरपी। मिट्टी से सने हुए। दीवार की चिनाई में जुटे हुए तो कभी ट्रैक्टर या जेसीबी चलाकर जमीन समतल करते हुए।
पवन शर्मा, करनाल
जुलाई 2007 में डब्ल्यूडब्ल्यूई वर्ल्ड हेवीवेट चैंपियनशिप के पहले भारतीय विजेता दलीप सिंह राणा यानी द ग्रेट खली के हाथ में गारा, खुरपी। मिट्टी से सने हुए। दीवार की चिनाई में जुटे हुए तो कभी ट्रैक्टर या जेसीबी चलाकर जमीन समतल करते हुए। मौका मिलता है तो पकौड़े तलने या जलेबी भी बनाने लगते हैं। उन्हें ये काम करता देख हर कोई हैरान हो जाता है। थोड़ी देर में ही पता चलता है कि वे यहां इंटरनेशनल एकेडमी तैयार कर रहे हैं। प्रोजेक्ट से जुड़ाव इतना कि, खुद मजदूर की भूमिका में आ गए हैं। कामगार अब कम हो चले हैं। काम रोकना इस कर्मयोद्धा को स्वीकार नहीं। कोरोना से जंग जीतने के लिए कहते हैं-कसरत जरूर करनी चाहिए। यहां कुछ मजदूरों को एकत्र कर कबड्डी भी खिलवाते हैं। एकेडमी बनाने के लिए उन्होंने डब्ल्यूडब्ल्यूई की पूरी कमाई लगा दी है।
बेशक, पहलवान का शरीर मखमली बिस्तर पसंद नहीं करता, वह हमेशा उसे मेहनत करने के लिए बोलता है। यही झलक नुमायां करते हुए खली करनाल-कुरुक्षेत्र सीमा स्थित समानाबाहु में बन रही एकेडमी में इतना कुछ कर रहे हैं कि उनके लिए दिन-रात सब एक बराबर है। करीब 45 कनाल जमीन पर जारी इस प्रोजेक्ट में इंटरनेशनल एकेडमी के साथ फूड कोर्ट बनेगा, जहां खिलाड़ियों की डाइट पर खास फोकस होगा। खली ने रेसलिग के पेशेवर मुकाबलों से अर्जित सारी कमाई प्रोजेक्ट में लगा दी है। वह जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं। कामगारों की किल्लत है, इसलिए खुद हर काम में जुटे हैं। कहते हैं कि जब मजदूर था, तब जिदगी में जरूरतों ने सब सिखा दिया था, इसलिए किसी काम से हिचकिचाता नहीं।
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रियल लाइफ का बॉस है कोरोना
खली कहते हैं कि कोरोना रियल लाइफ का बिग बॉस है, इससे बचिए। बेवजह घर से बाहर न निकलें, शारीरिक दूरी बनाए रखें, मास्क जरूर लगाएं। हमारा देश पहले ही बहुत पीछे चला गया है, इसे मिलकर फिर विश्व गुरु बनाना होगा।
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सब कुछ करते हैं खली
यूपी-बिहार के कामगार नहीं हैं, लिहाजा चंद लोकल मजदूर साथ लेकर खली गड्ढा बनाकर गारा सानने से लेकर दीवार में ईंट रखने, बजरी उठाने, ट्रैक्टर चलाने, घास साफ करने, पौधे लगाने या लकड़ी काटने तक हर जिम्मेदारी बखूबी निभा रहे हैं। वक्त मिलता है तो सोशल मीडिया पर प्रशंसकों से लाइव हो जाते हैं या उनके लिए वीडियो तैयार करते हैं। सबके खाने-पीने का ख्याल रखते हुए सब्जियां या सलाद काटते हैं और पसंदीदा खाना तैयार करते हैं। उन्होंने कुछ वक्त पहले पकौड़ों के साथ जलेबी बनाई थी लेकिन थोड़ी अधिक उबलने से इसका टेस्ट उन्हें खुद नहीं भाया। फिर भी नित नए प्रयोग जारी रखे हुए हैं। अपने साइज का स्पेशल बेड भी बना रहे हैं।
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मैं आपकी मदद कर सकती हूं पापा
खली काम में व्यस्त होते हैं तो मासूम बिटिया पास आकर पूछती है- मैं आपकी मदद कर सकती हूं पापा ? खली मुस्कराकर उसकी ओर देखते हैं और फिर काम में जुट जाते हैं। खली बिटिया को पौधे लगाने की अहमियत भी बताते हैं और अक्सर खेलकूद में समय गुजारते हैं। साइट पर मजदूरों की टीमें बनवाकर अक्सर कबड्डी मुकाबले भी कराते हैं।
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भा रहा भगवा रंगत का परना
एक और काबिल ए गौर पहलू यह है कि अपनी हर तस्वीर में खली कंधों पर भगवा रंगत का गमछा या परना डाले नजर आ रहे हैं, इस पर उन्हें दिलचस्प कमेंट भी मिल रहे हैं और आम प्रशंसक इसे उनकी हिदुत्व आधारित विचारधारा के साथ भाजपा से नजदीकी के रूप में देख रहे हैं।
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कभी करते थे दिहाड़ी मजदूरी
हिमाचल के सिरमौर में किसान परिवार में जन्मे दलीप उर्फ खली के घर में हमेशा पैसों की कमी रहती थी, इसलिए पिता के कामों मे हाथ बंटाते। जब महज आठ साल के थे, तभी से गांव में दिहाड़ी मजदूरी करने लगे। उन्हें रोज पांच रुपये मिलते, जो उनके लिए बड़ी रकम थी क्योंकि उन्हें महज ढाई रुपये के लिए स्कूल से निकाल दिया गया था।