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बेसहारा बच्चों के लिए ममता की ऊष्मा हैं सुषमा

उम्र 57 वर्ष मासूम चेहरा हृदय में बच्चों के लिए ममता? ये व्यक्तित्व है सुषमा नाथ का।

By JagranEdited By: Published: Fri, 04 Oct 2019 08:53 AM (IST)Updated: Fri, 04 Oct 2019 08:53 AM (IST)
बेसहारा बच्चों के लिए ममता की ऊष्मा हैं सुषमा
बेसहारा बच्चों के लिए ममता की ऊष्मा हैं सुषमा

यशपाल वर्मा, करनाल:

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उम्र 57 वर्ष। मासूम चेहरा। हृदय में बच्चों के लिए ममता। ये व्यक्तित्व है 102 बेसहारा बच्चों का पालन पोषण करने वाली सुषमा नाथ की। इन बच्चों के लिए वे किसी भी मायने में मां से कम नहीं हैं। वे अब तक सात बच्चियों को पाल पोषकर शादी रचा चुकी हैं। ये सिलसिला पिछले 20 वर्षो से चला आ रहा है।

सुषमा का बचपन केरल के जिला कोट्याम में बीता। इसके बाद वे करनाल आ गई। यहां आकर उन्होंने अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण 20 वर्ष इन बच्चों की जिंदगी संवारने में लगा दी। वे फूसगढ़ रोड स्थित एमडीडी बाल भवन में 102 बच्चों की देखभाल कर रही हैं और सात बेटियों के हाथ भी पीले कर चुकी हैं। इस नेक काम में उनके पति पी रविद्रनाथ और तीनों बेटे सहयोग करते हैं। उनका व्यक्तित्व ऐसा है कि वे अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं। ऐसे पहुंचीं करनाल

वर्ष 1962 में साधारण परिवार में जन्मी सुषमा तीन बहनों और माता-पिता की बचपन से ही लाड़ली रही हैं। परिवार में मिले माहौल के कारण बचपन से ही उनमें बच्चों के प्रति मोह रहा। वर्ष 1982 में ग्रेजुएशन करने के बाद अपने पैरों पर खड़े होने की इच्छा लेकर वे दिल्ली अपनी बहन के पास आ गई। परिवार की इच्छा से 5 फरवरी 1990 को पी रविंद्रनाथ से विवाह किया। सौभाग्य से रविद्रनाथ का व्यवहार भी पत्नी के अनुसार सकारात्मक था। विवाह के बाद 1994 में दोनों ने देहरादून के एक स्कूल में सेवाएं दीं। सुषमा नाथ बताती हैं कि स्कूल प्रिसिपल एमएस बेदी का करनाल में आना हुआ तो उनके साथ वह भी परिवार के साथ 1997 में करनाल पहुंच गई। पति के सहयोग ने बढ़ाई हिम्मत

बेसहारा बच्चों के पालन पोषण के लिए पति पी रविद्रनाथ को प्रोत्साहित किया और वर्ष 1998 में आइटीआइ के पास एक कमरे में सोसाइटी शुरू की। सुषमा दिन में स्कूल में नौकरी करतीं और छुट्टी के बाद इन बच्चों के पालन-पोषण में लग जातीं। समाजसेवियों के सहयोग से 20 वर्षों में पति के साथ मिलकर उन्होंने एमडीडी बाल भवन में 148 से अधिक बेसहारा बच्चों को सहारा दिया। पुराने दिनों को याद करते हुए वे बताती हैं कि वर्ष 2006 में मां का निधन हुआ था और बच्चों की देखभाल के लिए पति नहीं पहुंच सके और उन्हें अकेले ही केरल जाना पड़ा। इन दिनों बच्चों को अकेले रहना पड़ा। यहीं से उन्हें अकेलेपन का दर्द महसूस हुआ। सुषमा 57 वर्ष की उम्र में पहुंच चुकी हैं और अब भी बेसहारा बच्चों को प्रति उनका प्यार कम नहीं है।


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