सुषमा ने कहा था- युवा परिर्वतन चाहे तो कोई भी रोक नहीं सकता
1989 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुषमा स्वराज ने जनता के प्रत्येक मुद्दे को छुआ था तो छात्रों को अपने भाषणों से खासा प्रभावित किया था। उनकी जनसभाओं में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र उत्साह के साथ पहुंचते थे। क्योंकि सभी उनकी वक्तव्य कला व राष्ट्र के प्रति सोच से प्रभावित थे। वह अपने भाषणों के माध्यम से युवाओं को जागरूक करने का काम करती थीं।
जागरण संवाददाता, करनाल : 1989 के लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी सुषमा स्वराज ने जनता के प्रत्येक मुद्दे को छुआ था तो छात्रों को अपने भाषणों से खासा प्रभावित किया था। उनकी जनसभाओं में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र उत्साह के साथ पहुंचते थे। क्योंकि सभी उनकी वक्तव्य कला व राष्ट्र के प्रति सोच से प्रभावित थे। वह अपने भाषणों के माध्यम से युवाओं को जागरूक करने का काम करती थीं।
भाजपा के प्रदेश महामंत्री एडवोकेट वेदपाल बताते हैं कि 1989 में वह डीएवी कॉलेज के छात्र थे। एबीवीपी से जुड़े हुए थे। उस समय दयालपुरा गेट में सुषमा स्वराज की चुनावी जनसभा थी। वह छात्रों के साथ उनका भाषण सुनने गए थे। उन्होंने युवाओं से रूबरू होते हुए कहा था कि युवा अगर परिर्वतन चाहे तो कोई भी नहीं सकता। उनकी यह पंक्ति आज भी उनके जेहन में है। उन्होंने युवाओं को राष्ट्र निर्माण व समाज निर्माण में योगदान देने का आह्वान किया था। उनके भाषण से सभी छात्र बेहद प्रभावित हुए थे।
मैंने पहला वोट सुषमा स्वराज को दिया था
एडवोकेट वेदपाल बताते हैं कि मैं सौभाग्यशाली समझता हूं कि मेरा पहला वोट 1989 में बना था और यह वोट मैंने सुषमा स्वराज को दिया। उनका भाषण सुनने के बाद उनके साथ गए दूसरे छात्र भी प्रभावित हुए थे। उनसे मिली प्रेरणा के बाद अन्य छात्रों का झुकाव भी एबीवीपी की ओर हो गया। उन्होंने ना केवल एबीवीपी ज्वाइन की, बल्कि अपना अपना वोट भी सुषमा स्वराज को देने का वादा किया।
मुलाकात करने दिल्ली व विदिशा कई बार जाना हुआ
एडवोकेट वेदपाल बताते हैं कि सुषमा स्वराज का कार्यकर्ताओं से खासा लगाव रहता था। वह अक्सर उनसे मिलने दिल्ली या विदिशा जाते थे। वह उनका व परिवार का हालचाल पूछती थी। उनसे मिलने के लिए प्रतिदिन सैकड़ों कार्यकर्ता आते थे और वह किसी को भी निराश नहीं करती थी। उनकी कार्यशैली से वर्कर हमेशा प्रभावित रहे हैं। करनाल से उनका खास लगाव रहा। वह अक्सर यहां लोगों के सुख-दुख में शामिल होने के लिए आती रही। उन्होंने करनाल से 1989 के बाद भले ही चुनाव नहीं लड़ा हो, लेकिन यहां के लोगों से उनका नाता अटूट बन गया था।
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