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..नींद क्यों रात भर नहीं आती ?

दिन का चैन और रातों की नींद दोनों पर अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं। दरअसल कड़वा सच यही है कि दिनचर्या में बड़े पैमाने पर कायम बदलाव का दौर सीएम सिटी के बाशिदों की सेहत ही नहीं बल्कि जिंदगी के लिए भी लगातार खतरे बढ़ा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 13 Mar 2020 09:00 AM (IST)Updated: Fri, 13 Mar 2020 09:00 AM (IST)
..नींद क्यों रात भर नहीं आती ?
..नींद क्यों रात भर नहीं आती ?

जागरण संवाददाता, करनाल: दिन का चैन और रातों की नींद, दोनों पर अब संकट के बादल मंडरा रहे हैं। दरअसल, कड़वा सच यही है कि दिनचर्या में बड़े पैमाने पर कायम बदलाव का दौर सीएम सिटी के बाशिदों की सेहत ही नहीं बल्कि, जिंदगी के लिए भी लगातार खतरे बढ़ा रहा है। आलम यह है कि महज 5-6 साल के बच्चे तक रात भर जाग रहे हैं। इससे उन्हें दिन में भी बेचैनी रहती है। पबजी और इसी तरह के अन्य ऑनलाइन गेम्स की लत ने उनकी आंखों से नींद गायब कर दी है तो, युवाओं को यह स्थिति गहरे डिप्रेशन की तरफ ले जा रही है। शहर के सिविल हॉस्पिटल में हर दिन मनोरोग विशेषज्ञों के पास ऐसे मरीजों की खासी भीड़ जुटना आम है, जिनमें इनसोमेनिया पीड़ितों की तादाद भी अच्छी-खासी है। दरअसल, एक समय था, जब रात भर भरपूर नींद लेने के बाद खुद को दिन भर तरोताजा बनाए रखना कठिन नहीं था मगर, अब ऐसा कभी-कभार ही होता है।

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जानकारों की मानें तो, यही इनसोमेनिया यानि अनिद्रा की शुरुआत का भी स्पष्ट संकेत है, जिसका शिकंजा करनालवासियों की जिंदगी पर ते•ाी से कस रहा है। स्मार्ट सिटी बनने के साथ ही ते•ाी से बदल रहे लाइफ स्टाइल ने यहां के लोगों के सामने मनोविकारों के चक्रव्यूह से जूझने का खतरा कई गुना बढ़ा दिया है। काबिल-ए-गौर पहलू यह है कि, युवाओं से लेकर बच्चे तक इस स्थिति से जूझने को मजबूर हैं।

सिविल हॉस्पिटल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. आशीष अग्रवाल तस्दीक करते हैं कि ओपीडी में हर दिन इस समस्या से जूझने वालों की तादाद ते•ाी से बढ़ रही है। सबसे हैरान-परेशान करने वाली बात यह है कि, कई बार पेरेंट्स अपने 5-6 साल के छोटे-छोटे बच्चों तक को लेकर आते हैं। पबजी और इसी तरह के अन्य गेम्स खेलने की बेतहाशा लत उनकी नींद पूरी तरह अपने चंगुल में ले चुकी है। उन्हें मोबाइल यूज नहीं करने दिया जाता तो, रात को वे देर तक बेचैन रहते हैं और धीरे-धीरे यही प्रक्रिया ऐसे बच्चों को इनसोमेनिया का शिकार बना देती है। उनका शारीरिक और मानसिक विकास भी प्रभावित होता है। युवाओं में शिक्षा और रोजगार से जुड़े मसलों के चलते बढ़ते तनाव के कारण अनिद्रा की समस्या बढ़ रही है। जबकि, बुजुर्गों में बढ़ती उम्र के साथ ऐसी शिकायत होना आम है।

हादसे करते हैं परेशान

गुजरे दौर में पेश आए किसी गंभीर हादसे की यादें भी इंसान को अनिद्रा से जूझने पर मजबूर करती हैं। स्थानीय मनोरोग विशेषज्ञों के पास ऐसे काफी मरीज आते हैं, जिन्हें तकरीबन रो•ा सपनों की शक्ल में तमाम ऐसी यादें सताती हैं। नतीजतन, वे अर्से तक ठीक से सो नहीं पाते। इसे मेडिकल साइंस में पोस्ट ड्रामेटिक फ्लैश कहते हैं। महिलाएं इसकी बहुतायत से शिकार होती हैं, जिनके इलाज के लिए हॉस्पिटल में महिला मनोवैज्ञानिक के •ारिए सघन काउसिंलिग की प्रक्रिया अपनाई जाती है।

प्रजनन क्षमता पर खतरा

इनसोमेनिया और इसी तरह के अन्य स्लिपिग डिसऑर्डर के कारण प्रजनन क्षमता भी घट रही है। बकौल, डॉ आशीष, ब्रैंगलुरु सरीखे महानगरों में हालिया स्टडी के नतीजों से स्पष्ट है कि, बदलता लाइफस्टाइल युवाओं की भावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, जिसके चलते उनमें शिथिलता बढ़ जाती है। यही स्थिति अंततोगत्वा उनकी प्रजनन क्षमता घटाने में सबसे अहम फैक्टर साबित होता है। करनाल में भी ऐसे मामले बहुतायत से सामने आने लगे हैं, जिन्हें देखते हुए वे ऐसे युवाओं के लिए काउंसिलिग का दायरा बढ़ा रहे हैं।


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