हमारा हाल भी देख लो साहब
बेचारे खाकी वाले सबकी सुनने की भरसक कोशिश करते हैं लेकिन खुद उनकी सुनवाई की फुर्सत किसी को नहीं है। ऐतबार न हो तो तनिक शहर के उपायुक्त कार्यालय के समीप तिराहे के आसपास उनके ठीहे का हाल देख लीजिए।
बेचारे खाकी वाले सबकी सुनने की भरसक कोशिश करते हैं लेकिन खुद उनकी सुनवाई की फुर्सत किसी को नहीं है। ऐतबार न हो तो तनिक शहर के उपायुक्त कार्यालय के समीप तिराहे के आसपास उनके ठीहे का हाल देख लीजिए। सर्दी और गर्मी से लेकर बरसात तक उन्हें यहीं बैठकर तमाम कामकाज संभालना पड़ता है। वाहनों की नियमित चेकिग हो या ट्रैफिक संचालन, हर काम में लगातार मुस्तैद रहने के बाद चंद पल बैठकर थकान उतारने का यही आसरा है लेकिन, यह जगह खुद इतनी बुरी हालत की शिकार है कि यहां कुछ राहत मिलना तो दूर, थकावट और बढ़ जाती है। शायद यही वजह है कि बातों बातों में अक्सर यहां बैठने वाले पुलिसकर्मी यही दुआ मांगते रहते हैं कि काश, दुनिया-जहान के दुख-दर्द की चिता करने वाले उच्चाधिकारी कभी उनकी तरफ भी एक निगाह डाल लें ताकि उन्हें जल्द से जल्द इस समस्या से निजात हासिल हो सके।
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काश, पा जी संग सेल्फी हो जाती
गरम धरम के नाम से मशहूर सदाबहार अभिनेता शहर में क्या आए, हर तरफ उन्हें लेकर क्रेज चरम पर नजर आया। अपने जिस रेस्टोरेंट को विधिवत रूप से लांच करने के लिए वह यहां पहुंचे, वहां भी उनकी आमद से घंटों पहले ही आम लोगों का तांता लग गया। मीडियाकर्मियों की संख्या भी खासी नजर आई। हर कोई अपने पसंदीदा अभिनेता के साथ किसी भी तरह बस एक अदद सेल्फी खिचवाने के लिए बेकरार रहा। लेकिन यह मुराद इतनी आसानी से भला कहां पूरी होने वाली थी। लगातार होते शोरशराबे और धक्कामुक्की के बीच गिनती के दीवाने ही यह लक्ष्य साधने में कामयाबी हासिल कर सके। जो सफल नहीं हुए, वे बेचारे बातों बातों में ही यह कहकर दिल का गुबार निकालते नजर आए कि काश, हमें भी पा जी के साथ बस एक तस्वीर कैमरे में कैद करने का मौका मिल जाता तो बाई गॉड, लाइफ ही बन जाती।
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हम गरीबों पर कब तक जुल्म
बेचारे सब्जी और पकौड़ों की रेहड़ी लगाकर मुश्किल से गुजर-बसर करने वालों ने बड़ी मुश्किल से जीएसटी बिलिग के फर्जीवाड़े से जुड़े बहुचर्चित मामले में एक शख्स की गिरफ्तारी के बाद कुछ वक्त के लिए राहत की सांस ली थी लेकिन अब एक बार फिर इस मामले का जिन्न बोतल से बाहर आते ही उनका बुरा हाल हो गया है। करीब तीन साल पुराने इस प्रकरण में अब नए सिरे से उन्हें करोड़ों की रिकवरी के नोटिस थमा दिए गए हैं, जिसे लेकर उन्हें समझ नहीं आ रहा कि आखिरकार पहले ही तमाम जगह ठोकर खाकर निराश होने के बाद अब भला किस दर जाकर इंसाफ की गुहार लगाएं। जब कुछ समझ नहीं आया तो मजबूरन उन्होंने मीडिया के आगे ही बातों बातों में अपना पूरा दुखड़ा सुना डाला और रुंधे गले से बार-बार यही सवाल पूछते रहे कि उन जैसे गरीब लोगों पर ही इतना जुल्म क्यों होता है ?
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सांग का सिलसिला बचा रहा संस्कार
सांग का संसार भी बेहद दिलचस्प है। जितना आनंद इसे खेलने वालों को आता है, उससे कहीं ज्यादा लुत्फ इसे देखने वाले लेते हैं। शहर में इन दिनों सांग के एक से बढ़कर एक किस्से देखने-सुनने वालों की खासी भीड़ उमड़ रही है। हालांकि काबिल-ए-गौर पहलू यह है कि इनमें ठेठ देहाती लोग ही अधिक नजर आते हैं और इनमें भी खासा प्रतिशत बुजुर्गों का है। हरियाणवी लोक संस्कृति और परंपरा की सीधी संवाहक इस विधा पर बेशक कुछ समय से संकट के बादल मंडरा रहे हों, लेकिन सीएम सिटी में इसका कई रोज तक होना यकीनन नई उम्मीद जगाता है। इसी सिलसिले के बीच एक रोज सांग का आनंद उठा रहे कुछ बुजुर्ग दर्शकों से रूबरू होने का मौका मिला तो सबने बातों बातों में कलाकारों की तो जमकर तारीफ की लेकिन उन लोगों को जमकर कोसा, जो ग्लैमर की चकाचौंध में अपने सांस्कृतिक मूल्यों को भूल बैठे हैं।