चिह्नित अपराधों में हर हाल में मिले सजा-डीसी
पब्लिक प्रोसिक्यूटर और जांच अधिकारी की ओर से न रहे कोई कमी जागरण संवाददाता करनाल
पब्लिक प्रोसिक्यूटर और जांच अधिकारी की ओर से न रहे कोई कमी
जागरण संवाददाता, करनाल
चिह्नित अपराधों को लेकर गठित जिला स्तरीय मानिटरिग कमेटी की मासिक बैठक सोमवार को उपायुक्त करनाल अनीश यादव की अध्यक्षता में हुई। बैठक में जिला पुलिस अधीक्षक गंगा राम पूनिया के अतिरिक्त, जिला न्यायवादी डॉ. पंकज सैनी तथा सहायक जिला न्यायवादी बृज मोहन व जेल अधीक्षक विशाल छिब्बर शामिल रहे।
उपायुक्त ने कहा कि जिला में चिह्नित अपराधों को लेकर हर मास मंथन किया जाता है, ताकि संगीन अपराधों में शामिल अपराधियों का हर हाल में सजा दिलवाई जा सके। उन्होंने कहा कि भारत ऐसा देश है, जिसमें एक न्याय प्रक्रिया से अपराधियों को सजा दी जाती है, यानि समझौता से अपराधियों को छोड़ देने का कोई कानून नहीं है। इसलिए संगीन अपराधों में एफएसएल रिपोर्ट तथा न्यायालय में चालान दाखिल करने से पहले उसे अच्छी तरह देखने पर जोर दिया जाता है। संगीन अपराधों में एक्टीवल न हो, इसे लेकर जांच अधिकारी और पब्लिक प्रोसिक्यूटर को केस की अच्छे से स्टडी करने के लिए कहा जाता है। यही नहीं किसी भी अपराध से जुड़े गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर भी जोर दिया जाता है, ताकि वह न्यायालय में जाकर बिना किसी भय के गवाही दे सके।
पुलिस अधीक्षक गंगा राम पूनिया ने जानकारी दी कि जिला में अब तक 36 मामले चिह्नित अपराध के रूप में टेकअप किए गए थे। इनमें चार पर न्यायालय की ओर से फैसला हो गया था और चारों में अपराधियों को सजा हुई है। अब इनकी संख्या 32 रह गई है। करनाल जिला की रिपोर्ट शत प्रतिशत है। इस पर उपायुक्त ने कहा कि जिला के असंध में पिछले दिनो एक निजी अस्पताल में बदमाश व्यक्तियों द्वारा गोली चलाने का एक मामला हुआ था, उसमें संलिप्त अपराधियों को गिरफ्तार किया गया था, इस मामले को भी चिह्नित अपराध की सूची में शामिल कर लिया जाए। क्या है चिह्नित अपराध
चिह्नित अपराध को लेकर हर जिला में गठित एक कमेटी के माध्यम से सरकार को रिपोर्ट जाती है। ऐसे अपराध जिनसे जनता के दिलो-दिमाग में यह जानने की जिज्ञासा होती है कि इसमें अपराध करने वाले को सजा मिलेगी या नहीं और केस का फैसला होने के बाद उसके कारणों को जानने की भी जिज्ञासा रहती है। इस बारे सरकार का मानना है कि ऐसे केसों में अपराधियों का सजा जरूर मिलनी चाहिए और बेगुनाह केस से बरी होने चाहिएं, लेकिन कई बार ऐसा हो जाता है कि अपराधी केस की अच्छी तरह पैरवी न होने से बच निकलते हैं या बरी हो जाते हैं। ऐसे केसों पर मंथन करने के लिए हर माह जिला स्तर पर मीटिग होती है।