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हौसले की सुई से जख्म सीने की तमन्ना रख

जागरण संवाददाता, करनाल कविता में नए मुहावरे को लाना होगा। नई शब्दावली को जानना होगा, जिसके लिए स्वाध्याय की जरूरत है। नए कवियों को पढ़ने की जरूरत है। ये शब्द सांझा साहित्य मंच के संरक्षक डॉ. अशोक भाटिया ने मंच की मासिक साहित्यिक गोष्ठी में अपनी रचना पाठ से पूर्व कवियों की प्रस्तुतियों पर टिप्पणी करते हुए कहे।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Nov 2018 01:46 AM (IST)Updated: Mon, 12 Nov 2018 01:46 AM (IST)
हौसले की सुई से जख्म सीने की तमन्ना रख
हौसले की सुई से जख्म सीने की तमन्ना रख

जागरण संवाददाता, करनाल

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कविता में नए मुहावरे को लाना होगा। नई शब्दावली को जानना होगा, जिसके लिए स्वाध्याय की जरूरत है। नए कवियों को पढ़ने की जरूरत है। ये शब्द सांझा साहित्य मंच के संरक्षक डॉ. अशोक भाटिया ने मंच की मासिक साहित्यिक गोष्ठी में अपनी रचना पाठ से पूर्व कवियों की प्रस्तुतियों पर टिप्पणी करते हुए कहे। सांझा साहित्य मंच की मासिक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन निर्मल धाम, मॉडल टाउन करनाल में किया गया, जिसकी अध्यक्षता डॉ. वनिता चोपड़ा ने की। विशिष्ट अतिथि के तौर पर हर्ष जैन और मनोज गौतम रहे। अपनी प्रथम रचना का पाठ करते हुए युवा कवि गुरदास चौधरी ने कहा आओ मुझे मेरा मर्ज बता दो, गैर हूं, गलत जो चाहे सजा दो।

प्रवीण जन्नत ने कहा आओ दीप जलाएं, अंधियारा दूर भगाएं। युवा कवि अनिल ¨सघानिया ने अपनी बात रखी अभी तो ठोकरों में हूं, जल्द जीना आएगा, मेरी हार से निकलकर जीत का नगीना आएगा। पर्यावरण सुरक्षा के लिए रामनाथ शास्त्री ने आह्वान करते हुए कहा कुदरत तै खिलवाड़ करण की कार नहीं हो स्याणी, रोज कटे जां पेड़ रहे ना शुद्ध हवा और पाणी। मनोज गौतम ने कहा प्यास तेरी जो बाकी है तो पीने की तमन्ना रख, हौसले की सुई से जख्म सीने की तमन्ना रख। अभी अहसास का अंदाज-ए- बयां कुछ यूं रहा, सोचता हूं ¨जदगी में मोड़ वो आखिर को क्या था, वक्त गुजरा तो ये जाना वो सही था जो हुआ था। हर्ष जैन सहर्ष बोले रोशन कर दो सारे जग की रातें काली दीप बनों, भारत के हर घर-आंगन में हो खुशहाली दीप बनों। कृष्ण कुमार निर्माण बोले संबंधों की परिभाषा आज बदल देते हैं, अपनी-अपनी राहों पर फिर से चल देते हैं। मंच संचालन की जिम्मेदारी निभाते हुए सत¨वद्र कुमार राणा ने कहा धारो सत की ज्योति को भरो प्रेम का तेल, मन का दीप जलाइए, बने रोशन मेल। डॉ. भाटिया ने अपनी रचना पाठ करते हुए कहा सूरज खुद उदित नहीं होता, धरती उधर जाती है तो ही होता है। अध्यक्षीय टिप्पणी के बाद डॉ. वनिता चोपड़ा ने अपनी कविता पढ़ते हुए कहा 'रात की खामोशी को देखकर जेहन में ख्याल आया, यह भी कितनी दरियादिली दिखाती है। खुद जगकर लोगों को सुलाती है। गोष्ठी में पवन पबाना ने अपनी प्रस्तुति दी।


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