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लेवी में लापरवाही : मिलर्स की इस बार न पीवी हुई, न अभी तक पूरा चावल जमा किया

आटा वितरण में सवालों के घेरे में रहा खाद्य आपूर्ति विभाग लेवी चावल को लेकर भी संजीदा नजर नहीं आ रहा है। पिछले माह की 28 तारीख तक 1286 वैगन चावल राइस मिलर्स पर बकाया थी। इधर कई राइस मिलर्स तो स्टॉक भी नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 18 Aug 2019 07:20 AM (IST)Updated: Sun, 18 Aug 2019 07:20 AM (IST)
लेवी  में लापरवाही : मिलर्स की इस बार न पीवी हुई, न अभी तक पूरा चावल जमा किया
लेवी में लापरवाही : मिलर्स की इस बार न पीवी हुई, न अभी तक पूरा चावल जमा किया

जागरण संवाददाता करनाल : आटा वितरण में सवालों के घेरे में रहा खाद्य आपूर्ति विभाग लेवी चावल को लेकर भी संजीदा नजर नहीं आ रहा है। पिछले माह की 28 तारीख तक 1286 वैगन चावल राइस मिलर्स पर बकाया थी। इधर, कई राइस मिलर्स तो स्टॉक भी नहीं है। यूथ फॉर चेंज के प्रदेशाध्यक्ष एडवोकेट राकेश ढुल ने बताया कि लेवी चावल वह है जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीबों में बांटा जाता हैं, इसे लेकर विभाग और प्रशासन कतई संजीदा नजर नहीं आ रहा है। उन्होंने सीएम मनोहर लाल, केंद्रीय खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग के मंत्री रामविलास पासवान को एक पत्र लिखकर इस ओर ध्यान देने की मांग की है।

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क्यों होनी चाहिए

एडवोकेट ढुल ने बताया कि गैर बासमती धान जिसका न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित होता है, यह धान सरकारी एजेंसी खरीद कर राइस मिलर्स को देती है। राइस मिलर्स इससे चावल बनाकर सरकार को देता है। अब होता यह है कि कुछ राइस मिलर्स खरीद एजेंसी के साथ मिल कर धान को खरीदते नहीं, लेकिन कागजों में खरीद दिखा दी जाती है। बाद में वह सस्ता चावल मंगा कर इसकी आपूर्ति कर देते हैं। इसलिए लेवी पर नजदीक से जांच होनी चाहिए।

गरीबों का निवाले से मिलर्स और भ्रष्ट सिस्टम कमाता है करोड़ों

यह चावल सस्ती दरों पर गरीबों को दिया जाता है। अब इस सिस्टम में होता यह है कि चावल गरीबों को नहीं दिया जाता। जिस तरह से आटे में गड़बड़ी हुई थी, ठीक इसी तरह से चावल में भी गड़बड़ी होती है। चावल गोदामों से निकल कर उन राइस मिलर्स के पास पहुंच जाता है, जिन्होंने सरकारी खरीद में धान नहीं दिया, सिर्फ सरकारी दस्तावेज में उन्हें धान की आपूर्ति दिखायी गई। वह मिलर्स इस चावल को खरीदकर फिर से एजेंसी के गोदाम में जमा करा देते हैं। इस तरह से यह करोड़ों का धंधा चलता रहता है।

कम से कम दो पीवी होनी चाहिए थी

कायदे से होना तो यह चाहिए कि पीवी (फिजिकल वेरिफिकेशन) कम से कम दो बार होनी चाहिए थी। इससे सिस्टम में भ्रष्ट तत्वों की पहचान हो सकती थी। एक तो खरीद के वक्त और दूसरी पीवी इसके बाद होनी चाहिए थी। पीवी से होता यह है कि जो राइस मिलर्स ने धान नहीं लिया, उनका समय रहते पता चल सकता था। बाद की पीवी से यह भी पता चल जाता कि कहीं वह गरीबों को दिए जाने वाले चावल को ही दोबारा से लाकर अपने गोदाम में तो जमा नहीं कर रहे हैं।

चावल लेने के लिए हम संजीदा है: कुशल बूरा

इधर, डीएफएससी कुलश बूरा ने बताया कि इस बार पीवी के लिए टीम नहीं आई। बस इंस्पेक्टर अपने स्तर पर पर ही जांच कर रहे हैं। चावल की वैगन तेजी से आ रही है। शनिवार तक 750 वैगन ही बकाया है। क्योंकि वैगन देने का समय बढ़ाकर 31 अगस्त तक कर दिया है।


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