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एनडीआरआइ के वैज्ञानिक पहुंचे गढ़ी गुजरान, ग्रामीणों को किया जागरूक

राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने फार्मर फ‌र्स्ट प्रोग्राम के तहत गढ़ी गुजरान गांव में बाह्य परजीवी रोकथाम अभियान चलाया। इस अभियान के तहत जहां पूरे गांव की पशुशालाओं (बाड़ा) में चिचड़ियों की रोकथाम के लिए दवा का छिड़काव किया गया। एनडीआरआइ के विद्यार्थियों ने घर-घर जाकर किसानों एवं पशुपालकों को डेरी प्रबंधन संबंधी टिप्स दिए। वैज्ञानिकों व विद्यार्थियों ने पौधरोपण कर पर्यावरण जागरूकता का संदेश भी दिया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 14 Jul 2018 06:20 PM (IST)Updated: Sun, 15 Jul 2018 01:14 AM (IST)
एनडीआरआइ के वैज्ञानिक पहुंचे गढ़ी गुजरान, ग्रामीणों को किया जागरूक
एनडीआरआइ के वैज्ञानिक पहुंचे गढ़ी गुजरान, ग्रामीणों को किया जागरूक

जागरण संवाददाता, करनाल : राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने फार्मर फ‌र्स्ट प्रोग्राम के तहत गढ़ी गुजरान गांव में बाह्य परजीवी रोकथाम अभियान चलाया। इस अभियान के तहत जहां पूरे गांव की पशुशालाओं (बाड़ा) में चिचड़ियों की रोकथाम के लिए दवा का छिड़काव किया गया। एनडीआरआइ के विद्यार्थियों ने घर-घर जाकर किसानों एवं पशुपालकों को डेरी प्रबंधन संबंधी टिप्स दिए। वैज्ञानिकों व विद्यार्थियों ने पौधरोपण कर पर्यावरण जागरूकता का संदेश भी दिया।

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डॉ. गोपाल सांखला ने पशुपालकों को चिचड़ी से निजात पाने के लिए सफाई की ओर ध्यान देने की नसीहत दी। उन्होंने कहा कि चिचड़ियां पशु का खून ही नहीं चूसती, बल्कि बीमारियों को भी न्योता देती हैं। बारिश के मौसम में चिचड़ियां अधिक होती हैं। अगर पूरे गांव में एक साथ दवा का छिड़काव किया जाए तो इस समस्या से निजात पाई जा सकती है।

उन्होंने कहा कि थनैला भी एक गंभीर बीमारी है, इसलिए दूध निकालते समय सावधानी बरतना बहुत जरूरी है। पशु को दूध निकालने के बाद कम से कम आघा घंटा बैठने न दें, क्योंकि उस समय तक थन का द्वार खुला होता है और कीटाणु थन में प्रवेश कर जाते हैं। जिसकी वजह से पशु थनैला रोग के प्रभाव में आ जाता है।

डॉ. ओमवीर सिंह ने कहा कि किसान पशुओं में ऑक्सीटोसिन के टीके का प्रयोग नहीं करें। अगर पशु दूध उतारने में असमर्थ है तो चिकित्सक की सलाह लें। ऑक्सीटोसिन के टीके का प्रभाव पशु के दूध उतारने की प्रक्रिया में लाभदायक नहीं है। इसलिए पशु के थनों को 3-5 मिनट सहलाएं, जिससे कि ऑक्सीटोसिन स्वत: ही पशु के शरीर में उत्सर्जित हो।

डॉ. ¨सह ने आगे बताया कि देश का हर हिस्सा प्रजनन की समस्या से प्रभावित है। जिसकी वजह से पशुपालक को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। एनडीआरआइ के वैज्ञानिक इस समस्या से निजात दिलवाने की दिशा में ही काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पशु के हीट में आना का सही समय ब्याहने के 60 दिन के बाद होता है। उसके बाद उसका कृत्रिम गर्भाधान करवाना चाहिए।

इस अवसर पर सरपंच घनश्याम ने गांव का दौरा करने पर वैज्ञानिकों की टीम का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में विक्रम चोपड़ा, दिवाकर, चंद्रपाल व अमित संधू का अहम योगदान रहा।


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