मल्टी पार्किंग नक्शे का मसला : तीन वर्ष से प्ला¨नग तीन आर्किटेक्ट रिजेक्ट, सवालों में निगम कमिश्नर
फोटो समाचार-01 नंबर गेम 37 करोड़ रुपये से बननी है मल्टी लेयर पार्किंग 80 लाख रुपये में
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37 करोड़ रुपये से बननी है मल्टी लेयर पार्किंग
80 लाख रुपये में बनना था इस पार्किंग का नक्शा
05 हजार रुपये में स्थानीय आर्केटेक्ट ने बनाया आयुक्त का जवाब : प्रशासनिक मसला है, आप क्यों दखलअंदाजी कर रहे हो?
हमारा तर्क : हम दखलअंदाजी कर रहे हैं, क्योंकि निगम शहर की सुविधा के लिए होता है, आरोपों के घेरे में निगम के सीनियर ऑफिसर भी हैं। तीन साल से नक्शा-नक्शा सिर्फ खेल रहे हैं? इसकी आड़ में क्या किसी को नवाजा जा रहा है? हम हर उस काम में दखलअंदाजी करेंगे, जो सीधे हमारे शहर की जनता से जुड़ा है। प्रदीप शर्मा, करनाल
मल्टी लेयर पार्किंग के मसले पर नक्शा-नक्शा खेला जा रहा है। एक नक्शा बनता है, फिर रहस्यमयी तरीके से रिजेक्ट हो जाता है। फिर नया बनता है। फिर रिजेक्ट। यह खेल तीन साल से इसी तरह खेला जा रहा है। नक्शा बनने पर 80 लाख रुपये खर्च होना है। यह प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी का हिस्सा है। स्मार्ट सिटी के नाम पर अधिकारियों ने तीन वर्ष से शहर को प्रयोगशाला बना रखा है। मल्टी लेयर पार्किंग के पीछे सोच है कि इससे शहर की जनता को जाम की समस्या से निजात मिलेगी। यही वजह है कि स्मार्ट सिटी की पहली सूची में इस प्रोजेक्ट को शामिल किया गया है। प्रोजेक्ट करीब साढ़े 37 करोड़ रुपये का है। देखिए, नक्शे के लिए कितने गंभीर हैं अधिकारी
पहली बार : वास्तुमंडला आर्केटेक्ट को मल्टीलेयर पार्किंग के नक्शा तैयार करने का काम सौंपा गया। नक्शा तैयार कर मुख्यालय भेजा अप्रूवल मिल गई।
ये कारण बताया : फाइनेंशियल बिड में डिस्क्वालीफाइ है, इसलिए काम नहीं कर सकते। दूसरी बार: दिल्ली की कंपनी ग्रिड आर्केटेक्ट को काम सौंपा गया। इस नक्शे को अप्रूव मुख्यालय ने कर दिया।
ये कारण बताया : नक्शा रिवाइज कराना था वह नहीं किया, अन्य बैठकों में भी अधिकारी शामिल नहीं हुए। तीसरी बार: सीएम के सख्त रवैये के बाद आनन-फानन में निगम अधिकारियों ने करनाल के स्थानीय आर्केटेक्ट से नक्शा तैयार कराया। फीस भी महज पांच हजार।
कारण : उच्चाधिकारी चाहते हैं कि ग्रिड आर्केटेक्ट को काम दिया जाए, क्योंकि सॉयल टेस्ट भी होनी है और काम भी होने हैं। रिजेक्शन के पीछे कहीं कमीशनखोरी तो नहीं?
अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या इसमें कमीशनखोरी का खेल हो रहा है। सवाल इसलिए उठ रहा है, क्योंकि जिस नक्शे पर अधिकारी 80 लाख रुपये खर्च करने जा रहे थे। उन्हीं अधिकारियों ने मात्र पांच हजार में एक स्थानीय आर्केटेक्ट से नक्शा तैयार करा लिया। इस नक्शे को पास कराने की पूरी कोशिश हो गई थी। अब अधिकारियों की इस कोशिश को क्या माना जाए? इसे मिलीभगत कह सकते हैं क्या?
दैनिक जागरण को इस बात की जानकारी मिली है कि 10 जनवरी को आयुक्त नगर निगम की बैठक अतिरिक्त मुख्य सचिव के साथ चंडीगढ़ में बैठक होनी है। इसके बाद ही निर्णय होगा। चूंकि उच्चाधिकारी ग्रिड आर्केटेक्ट को वर्क ऑर्डर देने के पक्ष में हैं, ऐसे में ग्रिड आर्केटेक्ट को काम मिलना लगभग तय माना जा रहा है। यह स्थिति तब है जब सीएम स्वयं मामले में दखल रहे हैं
अधिकारियों की यह कार्यप्रणली तब है, जब सीएम मनोहर लाल खुद इस मामले में दखल दे रहे हैं। उन्होंने 26 दिसंबर को करनाल प्रवास के दौरान अधिकारियों से प्रोजेक्ट की फाइल मांग ली थी। तब काम में देरी करने वाले अधिकारियों के चेहरे की हवाइयां उड़ गई थीं। अधिकारियों की हालत देख सीएम ने बाद में नरम रुख अपनाते हुए खुद स्थानीय निकाय के एसीएस के साथ अगले दिन मी¨टग फिक्स कर दी। दिल्ली में बैठा एक अधिकारी एक आर्केटेक्ट पर मेहरबान
बताया जा रहा है कि दिल्ली में बैठा हरियाणा का एक अधिकारी एक आर्केटेक्ट पर मेहरबान है। उनका ही दबाव है कि नक्शे का काम उसके चहेते को मिले। यही वजह है कि बार-बार नक्शे रिजेक्ट हो रहे हैं। बताया तो यह भी जा रहा है कि स्थानीय अधिकारी भी नहीं चाह रहे कि चहेते आर्केटेक्ट को काम मिले। अब देखना यह है कि इस अधिकारी का दबाव अब कितना काम करता है। वर्जन
ये एक ऑफिशयल मेटर है। उसका आपसे क्या संबंध। ग्रिड डिस्क्वालीफाई नहीं हुआ। उसको वर्क अलॉट हुआ है। उसका वर्क लेट हुआ है। उसको बुलाकर पूछा जाएगा। हमने उसको 21 दिन का समय दिया है। अगर वह भेजेगा तो ठीक नहीं तो कैंसल करेंगे।
राजीव मेहता, कमिश्नर नगर निगम करनाल।