फसलों की ई-गिरदावरी का काम जोरों पर, अब तब करनाल पूरे प्रदेश में अग्रणी : उपायुक्त
जिले में फसलों की ई-गिरदावरी का काम जोरों पर है। अब तक 157 गांव कवर कर लिए गए हैं जबकि 423 गांवों के रकबे की गिरदावरी की जानी है। इसके लिए राजस्व विभाग के पटवारी लगातार जुटे हैं।
जागरण संवाददाता, करनाल :
जिले में फसलों की ई-गिरदावरी का काम जोरों पर है। अब तक 157 गांव कवर कर लिए गए हैं, जबकि 423 गांवों के रकबे की गिरदावरी की जानी है। इसके लिए राजस्व विभाग के पटवारी लगातार जुटे हैं। डीसी निशांत कुमार यादव ने बुधवार को सलारू, उचाना व कुराली के खेतों में की जा रही गिरदावरी का निरीक्षण किया। उनके साथ प्रशिक्षणाधीन आइएएस आशीष सिन्हा, अखिल पिलानी, सचिन गुप्ता, अपराजिता, डीआरओ श्याम लाल, तहसीलदार राजबख्श के अतिरिक्त हलका कानूनगो, पटवारी व एनआइसी के ट्रेनर तेज सिंह भी मौजूद रहे।
गौर हो कि हरियाणा में ई-गिरदावरी वर्ष 2017 में करनाल जिला के 10 गांवों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू की गई थी, जो सफल रही और उसके बाद राजस्व विभाग हरियाणा के निर्देश पर यह पूरे प्रदेश में लागू हुई। खास बात यह है कि करनाल जिले ने विगत खरीफ सीजन में प्रदेश में सबसे पहले ई-गिरदावरी पूरी की थी और मौजूदा रबी सीजन में भी यह जिला सबसे आगे है। उम्मीद है कि आगामी 28 फरवरी तक सभी गांवो की ई-गिरदावरी मुकम्मल कर ली जाएगी। नियमानुसार साल में दो बार खेतों में खड़ी फसलों की गिरदावरी की जाती है और उसका सारा डाटा, राजस्व अधिकारियों की पड़ताल के बाद तहसील स्तर पर अपलोड कर, चंडीगढ़ स्थित राजस्व विभाग की वेब हैलरिस में जाकर स्टोर हो जाता है। यदि प्राकृतिक आपदा से फसलों में खराब हो जाए, तो सरकार के निर्देश पर स्पेशल गिरदावरी की जाती है।
उपायुक्त के साथ दौरे पर गए प्रशिक्षणाधीन आइएएस अधिकारियों ने भी ई-गिरदावरी के तौर तरीके को देखने व समझने में काफी रुचि ली। उन्होंने बताया कि 28 फरवरी को गिरदावरी का काम मुकम्मल कर लेने के बाद इसकी पड़ताल होती है, जो कुछ प्रतिशत के हिसाब से कानूनगो, तहसीलदार, डीआरओ, एसडीएम, उपायुक्त और आयुक्त चेक करते हैं। यदि कोई त्रुटि मिलती है, तो वह इन अधिकारियों के स्तर पर दुरुस्त हो जाती है। उपायुक्त ने बताया कि वैसे तो गिरदावरी का चलन काफी पुराना है, लेकिन बदलते समय के साथ अब गिरदावरी मैन्यूअल न करके ऑनलाइन की जा रही है। इसमें समय की बचत के साथ-साथ डाटा एकत्रीकरण में एक्यूरेसी रहती है। इसी डाटा के आधार पर सरकार को, फसलों के वर्गीकरण की कैलकुलेशन करने में आसानी हो जाती है।