स्वस्थ भारत का प्रण लेकर किशोरों के जीवन में गुलाबी रंग भर रहीं डा. प्रभजोत
एनीमिया की समस्या से जूझ रहे बचपन को देखकर समाजसेवी डा. प्रभजोत कौर विचलित हो उठती हैं।
प्रदीप शर्मा, करनाल : एनीमिया की समस्या से जूझ रहे बचपन को देखकर समाजसेवी डा. प्रभजोत कौर विचलित हो उठती हैं। उन्होंने तय किया कि इन बच्चों की जिदगी में बदलाव के लिए वह कुछ न कुछ करेंगी। एनीमिया के चंगुल से बचपन को आजाद करने के लिए मन में ठानी। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मिशन पिक हेल्थ से जुड़कर प्रदेशभर में स्कूली बच्चों को जागरूक करना शुरू कर दिया। कैंप लगाकर उनको दवाइयां वितरित करना व डाइट प्लान के बारे में जानकारी दे रही हैं। हालांकि कोरोना काल में अभियान पर असर पड़ा, लेकिन फिर भी ऐसे पीड़ित बच्चों तक पहुंचने का प्रयास किया, जो एनीमिया की चपेट में आ रहे हैं।
डा. प्रभजोत कौर ने दैनिक जागरण से बातचीत में बताया कि स्कूल खुल रहे हैं। वह हर समय सेवा के लिए तत्पर हैं। जहां पर भी स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के लिए कैंप का अवसर मिलता है, पहुंच जाती हैं। हालांकि इस अभियान में पूरी टीम काम करती है, लेकिन डा. प्रभजोत कौर का सेवाभाव इसलिए प्रशंसा योग्य है कि वह अपने निजी अस्पताल के महत्वपूर्ण समय में से जरूरतमंद बच्चों की सेवा में अपना योगदान दे रही हैं। कोरोना काल में इस अभियान को गति देने का निरंतर प्रयास कर रही हैं। ऑनलाइन स्कूलों से जुड़कर जागरूकता का यह अभियान जारी रखेंगी। मिशन पिक हेल्थ के तहत इन बच्चों की हो चुकी स्क्रीनिग
जिला स्क्रीन बच्चों की संख्या करनाल 4100 भिवानी 4600 बहादुरगढ़ 3500 यमुनानगर 3800 हिसार 3200 फरीदाबाद 4300 गुरुग्राम 3200 पंचकुला 2000 पलवल 2500 सोनीपत 2800 मिशन पिक हेल्थ के जरिये ये रहती हैं गतिविधियां
डा. प्रभजोत कौर ने बताया कि इस अभियान के तहत एनीमिया के प्रति जागरूकता, किशोरावस्था में जागरूकता, बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, स्वच्छता, सेनेटरी पेड इस्तेमाल, सेक्स एजुकेशन, गुड टच-बैड टच, सेल्फ डिफेंस, सोशल मीडिया एडिक्शन, मोबाइल इस्तेमाल, संतुलित आहार, जंक फूड आदि के बारे में जागरूक कर रही हैं। 55 फीसद महिलाएं खून की कमी से ग्रस्त
डा. प्रभजोत कौर बताती हैं कि हमारे देश में महिलाओं में रक्त की कमी का प्रतिशत 50 से 60 प्रतिशत तक है। हरियाणा में भी लगभग 40 से 50 फीसद महिलाएं अपने जीवन में कभी न कभी खून की कमी से ग्रस्त रहती हैं। महिलाओं में खून की कमी होने पर मातृ मृत्यु और शिशु मृत्यु दोनों की आशंकाएं बढ़ जाती है, साथ ही कम वजन एवं प्रीमेच्योर बच्चे होने पर कुपोषण का भी खतरा बना रहता है। कुपोषित बच्चे जीवन में शारीरिक एवं मानसिक क्षमताओं का पूरी तरह से विकास नहीं कर पाते हैं। यह गंभीर विषय है। इसलिए बचपन में ही एनीमिया जैसे घातक बीमारियों पर अंकुश लगाने के प्लान किया जाए तो जीवन शैली हेल्दी होगी।