रसाेई का कचरा यूं ही नहीं फेकें, है बड़े काम की चीज, ऐसे करें इस्तेमाल
यदि अब तक आप रसोई का कचरा फेंक देते हैं तो आगे से इस आदत को बदल लें। केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान (सीएसएसआरआइ) में हुए शोध में खुलासा हुआ है कि इससे भूमि की उर्वरता शक्ति बढती है।
करनाल, [प्रदीप शर्मा]। यदि आप रसोई का कचरा यूं ही फेंक देते हैं तो आगे से एेसा न करें। यह बड़े काम की चीज है और इसका इस्तेमाल खाद के रूप में किया जा सकता है। फल-सब्जी के छिलके, बचे हुए भोजन आदि के रूप में रसोई से निकलने वाला जैविक कचरा बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने में बेहद कारगर साबित हुआ है।
बेहतर खाद के रूप में कर सकते हैं प्रयोग, बंजर भूमि की सेहत को सुधारने में बेहद कारगर
शोध में खुलासा हुआ है कि रसोई के कचरे का इस रूप में सदुपयोग किया जाए तो बेहतर वेस्ट मैनेजमेंट के साथ ही देश में बंजर पड़ी 37.70 लाख हेक्टेयर क्षारीय भूमि को उपाजाऊ बनाया जा सकता है। हरियााण के करनाल स्थित केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान (सीएसएसआरआइ) में हुए शोध में जैविक कचरे के इस विशेष गुण की पुष्टि हुई है।
संस्थान की वैज्ञानिक पारुल सूंधा बताती हैं कि किचन से निकलने वाला कचरा जब गलता है तो वह एसिडिक यानी अम्लीय हो जाता है। क्षारीय भूमि में जब इसको मिलाया जाता है तो क्षारीय भूमि बेसिक हो जाती है। उन्होंने बताया कि शोध में साबित हुआ कि क्षारीय भूमि के सुधार में जैविक कचरे (आर्गेनिक वेस्ट) की बड़ी भूमिका हो सकती है। शोध में यह भी स्पष्ट हुआ कि जैविक कचरे के अलावा जिप्सम का इस्तेमाल फायदेमंद होगा, लेकिन जिप्सम की मात्रा 25 से 30 प्रतिशत कम हो।
इस समय देश में अधिकतर क्षारीय भूमि उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और कर्नाटक में है। क्षारीय सुधार से भूमि, जल, वातावरण और अनेक अनूकुल परिस्थिति का सीधा प्रभाव ग्रामवासियों के रहन-सहन, स्वास्थ्य एवं उपयोग की स्थिति पर पड़ा है।
सीएसएसआरआइ में चल रहे इस शोध के सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। शोध पूरा होने के बाद यह शहर व ग्रामीण दोनों क्षेत्र के लिए संजीवनी का काम करेगा। शहरों से रोजाना निकलने वाले करोड़ों टन गलनशील कचरे का निस्तारण भी होगा और वह प्रोसेसिंग होकर जब क्षारीय जमीन में पहुंचेगा तो बंजर भूमि में भी जान आएगी। जहां पर अन्न का एक दाना भी नहीं होता वहां पर फसलें लहलाएंगी।
क्या है क्षारीय भूमि
डॉ. पारुल ने बताया कि इस भूमि में सोडियम काबरेनेट, बाइकाबरेनेट तथा सिलीकेट लवणों की अधिकता होती है। विनिमय योग्य सोडियम 15 प्रतिशत से अधिक और पीएच मान 8.2 से अधिक हो तो वह क्षारीय भूमि होती है। इस तरह की भूमि में घुलनशील लवण ऊपरी सतह पर सफेद पाउडर के रूप में एकत्रित हो जाते हैं। जिस कारण भूमि खेती के योग्य नहीं रहती।
बंजर भूमि उपजाऊ हुई तो हर साल होगी 15 लाख टन अनाज की उपज
सीएसएसआरआइ के विशेषज्ञों के मुताबिक, हरियाणा में जितनी बंजर जमीन पड़ी है, यदि वह उपजाऊ हो तो 15 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन अधिक हर साल हो सकता है। इसकी कीमत औसत एक हजार करोड़ रुपये बनती है। इस समय प्रदेश में कुल 44 लाख हैक्टेयर भूमि में है, जिसमें से 39 लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य भूमि है। बाकी लवणीय व क्षारीय भूमि है।
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'' वर्ष 2016 में म्यूनिसिपल वेस्ट पर रिसर्च शुरू की गई। रसोई से निकलने वाला कचरा, सब्जियों व फलों के छिलके व अन्य पदार्थ जो डीकंपोज हो सकें, वह क्षारीय भूमि के सुधार में बेहद फायदेमंद साबित हुए। जिस क्षारीय भूमि का पीएच मान 9.5 से ऊपर है उस पर शोध किया गया। यह ऐसी जमीन होती है जहां पर फसलें नहीं होती, शोध सफल रहा है।
- डॉ. पारुल सूंधा, वैज्ञानिक, केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल, हरियाणा।