बच्चों ने बदला सरकारी स्कूलों में पढ़ाई का नजरिया
बारहवीं कक्षा के परिणाम सरकारी स्कूलों के निजी से बेहतर रहे हैं। बच्चों की उपलब्धि ने अभिभावकों का नजरिया बदल दिया।
जागरण संवाददाता, करनाल : प्रतिस्पर्धा की दौड़ में सरकारी स्कूलों के बच्चे भी पीछे नहीं रहे हैं, बस सोच बदलने की जरूरत है। हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड के 12वीं के नतीजों में प्रदेश में जिले ने 14वां स्थान हासिल किया है। आर्ट्स, साइंस व कॉमर्स में टॉप टेन में 17 लड़कियां और तीन लड़के हैं। अकाउंट, बिजनेस, मैथ्स में छात्र-छात्राओं ने 100 में से 100 अंक हासिल राजकीय स्कूलों किए हैं। जिले की आरती, सलोनी, चेतना, संगीता, निशु इसके उदाहरण हैं। पिछले आंकड़ों की तरफ झांका जाए तो वर्ष 2015 में 48.56, 2016 में 50.02, 2017 में 62.51, 2018 में 63.95 और 2019 में 74.86 फीसद जिले में भिवानी बोर्ड का परीक्षा परिणाम रहा है। प्रतिस्पर्धा की दौड़ में चार साल से बढ़ रही पास प्रतिशत सरकारी स्कूलों की बिगड़ी हुई छवि को सुधार रहा है।
लोगों को बदलनी होगी धारणा
गवर्नमेंट सीसे स्कूल के प्रिसिपल सुखबीर सिंह ने बताया कि समाज में लोगों को सरकारी स्कूल के प्रति बनी धारणा को बदलने की जरूरत है। निजी स्कूल में एक बच्चे पर अभिभावक जितना पैसा खर्च करते हैं उससे भी आधे से कम खर्च में बच्चा टॉप रैंक हासिल कर सकता है। चंडीगढ़ जैसे शहर में सरकारी स्कूलों में बच्चों का दाखिला वेटिग के आधार पर होता है। समाज, व्यवस्था, शिक्षक अभिभावक सहित सभी कारकों को सकारात्मक पहल करनी होगी। सरकारी स्कूलों में शिक्षा, शिक्षक, शिष्य अभिभावकों के बीच विश्वास कायम करना होगा।
स्किल पासबुक से बदला तरीका
राजकीय सीनियर सेकेंडरी स्कूलों की बात की जाए तो जिले में 107 सीनियर और 65 हाई स्कूलों में बच्चों को बेहतर शिक्षा दी जा रही है। इन स्कूलों में 1346 स्थाई, 85 गेस्ट टीचर बच्चों को शिक्षा दे रहे हैं। 698 शिक्षकों के पद अभी खाली हैं। दूसरी तरफ, सरकारी स्कूल की बदलती तस्वीर के लिए शिक्षकों का योगदान भी रहा है। बच्चों के बेहतर परिणाम के लिए अलग से कक्षाएं लगाई जानी शुरू की गई हैं। प्रवेश उत्सव मुहिम के तहत स्कूल में आने वाले नए बच्चों को स्वागत किया जाता है। स्किल पासबुक के तहत बच्चों को पढ़ाने का शिक्षकों ने तरीका बदला है। स्किल पासबुक में बच्चों की काबलियत के अनुसार शिक्षा दी जाती है।
सरकार स्कूलों में प्रत्येक वर्ष सुधर रहा रिजल्ट
2018 में 64.09 और 2019 में 74.86
परीक्षा दी 10169 अब 8670
पास 6517 6490
कपार्टमेंट 2413 अब 1330
फेल 1199 अब 850
134-ए के बच्चे ला सकते हैं गजब के परिणाम
अधिवक्ता मुकेश कुमार ने बताया कि सरकारी स्कूल बेहतर परिणाम दे रहे हैं। 134-ए के तहत लोग निजी स्कूलों में रुख कर रहे हैं, जबकि यह बच्चे अगर सरकारी स्कूलों में अपना प्रदर्शन करें तो स्कूलों की छवि में सुधार होगा। इस बार भी जिले के छह खंडों के 6748 बच्चे प्रतिस्पर्धा में बेहतर प्रदर्शन कर टेस्ट में अच्छे नंबर हासिल किए हैं। यानि सरकारी स्कूलों की क्रीम छह हजार बच्चे निजी स्कूलों में जा कर अपना प्रदर्शन करेंगे। अभिभावकों को सोच बदलनी चाहिए। अभिभावकों अपनी धारणा बदलें तो सभी बच्चे वरिष्ठ कक्षाओं में एक दिन अच्छे अंक लेकर गजब के परिणाम दे सकते हैं।
निजी स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूलों के बच्चों भी बेहतर परफॉर्मेंस दे रहे हैं। पिछले वर्षों के मुकाबले बढ़ रही पास प्रतिशत से जाहिर होता है कि स्कूलों के मुखिया अपना सौ फीसदी बच्चों को दे रहे हैं। जिले के स्कूलों में एक्स्ट्रा क्लासेस, प्रवेश उत्सव, स्किल पासबुक आदि से विद्यार्थियों की काबलियों को शिक्षकों के सामने रखा है और उन्हें बेहतर परिणाम के लिए प्रोत्साहित किया है।
--राजपाल चौधरी, जिला शिक्षा अधिकारी, करनाल
सरकारी स्कूलों में सुधरा शिक्षा का स्तर
एसएमओ डॉ. अंजू ने कहा कि पहले की अपेक्षा अब सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर बढ़ा है। इसलिए ही अब लोगों का रुझान भी सरकारी स्कूलों की तरफ हो गया है। दूसरा प्रदेश सरकार व शिक्षा विभाग के अथक प्रयासों से सरकारी स्कूलों में अब शिक्षक भी बच्चों को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए बेहतर शिक्षा प्रणाली अपना रहे हैं। इसलिए ही अब प्राईवेट स्कूलों के साथ-साथ सरकारी स्कूलों का परीक्षा परिणाम भी बेहतर रहा है।
शिक्षक पर निर्भर करती है बेहतर शिक्षा
एडवोकेट रफीक चौहान ने कहा कि शिक्षा केवल शिक्षक पर ही निर्भर करती है। यदि शिक्षक बच्चों को बेहतर तरीके से शिक्षा उपलब्ध कराएंगे तो बच्चे भी अपना भविष्य चुनने में पीछे नहीं रहेंगे। प्राईवेट स्कूलों के साथ-साथ सरकारी स्कूलों का अच्छा रिजल्ट आने का मुख्य कारण यही है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक अब बच्चों को अच्छी शिक्षा उपलब्ध कराने के साथ-साथ उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। होना भी ऐसा ही चाहिए कि शिक्षक को बच्चों में फर्क नहीं समझकर उन्हें बेहतर शिक्षा देनी चाहिए।
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