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योग के माध्यम से कुपोषण से दूर रहने का दे रही संदेश

जेबीटी शिक्षक व योग प्रशिक्षिका अमर राविश योग के माध्यम से लोगों को कुपोषण से दूर रहने का संदेश दे रही है। वह सुबह व शाम में योग कक्षाओं में कुपोषण से बचाव की जानकारी देती है। इसके साथ ही वह हरी सब्जियों को खाने में उपयोग के लिए अपने योग साधकों प्रेरित करती है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 13 Sep 2019 09:05 AM (IST)Updated: Fri, 13 Sep 2019 09:05 AM (IST)
योग के माध्यम से कुपोषण से दूर रहने का दे रही संदेश
योग के माध्यम से कुपोषण से दूर रहने का दे रही संदेश

जागरण संवाददाता, कैथल :

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जेबीटी शिक्षक व योग प्रशिक्षिका अमर राविश योग के माध्यम से लोगों को कुपोषण से दूर रहने का संदेश दे रही है। वह सुबह व शाम में योग कक्षाओं में कुपोषण से बचाव की जानकारी देती है। इसके साथ ही वह हरी सब्जियों को खाने में उपयोग के लिए अपने योग साधकों प्रेरित करती है। राविश का कहना है कि वर्तमान समय में जहरयुक्त खेती के कारण लगातार लोगों को बीमारियों ने घेरा है। इसी दिशा में वह साधकों को लगी बीमारियों को भी योग के माध्यम से दूर करवा चुकी है। उसने सैंकड़ों महिलाओं की बीमारियों को योग से दूर करवा चुकी है। इसके साथ ही शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अध्यापक अमर राविश महिलाओं में योग की अलख जगा रही है।

राविश बताती हैं कि उनका जीवन संघर्षमय रहा है। वे मानती हैं कि उनको दूसरा जीवन मिला है और उसका उपयोग वे सामाजिक कार्यो के लिए करना चाहती हैं। यही कारण है कि वे 12 वर्षो से पतंजलि महिला समिति के जिलाध्यक्ष के पद पर कार्य कर रही हैं। अमर ने बताया कि 2001 में जब उन्होंने हुडा स्कूल में ज्वाइन किया तो वहां 20 बच्चों के करीब पढ़ रहे थे।

2006 के बाद आया बदलाव :

बाबा रामदेव 2006 में कुरुक्षेत्र गुरुकुल में पीटीआइ और डीपीई को सात दिनों तक प्रशिक्षण देने के लिए आए थे। वे बतौर जेबीटी पढ़ा रही थीं तो उन्होंने जिला शिक्षा अधिकारी से शिविर में भाग लेने की लिए अनुमति ली और कुरुक्षेत्र पहुंची। यहीं से उनके जीवन में बदलाव आया। उसी दिन ठान लिया था कि उन्हें अब योग को घर-घर तक पहुंचाना हैं। अब वे इस कार्य में लगी रहती हैं। योग के लिए प्रेरित करने में उनके प्राध्यापक पति सूबे सिंह को भी विशेष योगदान रहा है। अब भी वह उनके साथ रोजाना शिविर में भाग लेने जाते हैं।

दिव्यांगों के लिए किया कोर्स :

राविश ने बताया कि जब उन्होंने देखा कि दिव्यांग बच्चों के साथ व्यवहार और उनकी शिक्षा में परेशानी हो रही है, तो उन्होंने रोहतक से 2007 में दिव्यांगों के लिए फाउंडेशन कोर्स किया और उसके बाद उनके जीवन में बदलाव लाने के प्रयास किए। वह उन बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ योग, खेलों, नृत्य और गायन के लिए भी प्रोत्साहित करती। यही कारण है कि आज उनसे पढ़े कुछ दिव्यांग बच्चे अपने जीवन में उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं। समाचारपत्र में उनकी तस्वीरें छपी देखकर उनको बहुत खुशी मिलती है।


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