प्राचीन इतिहास समेटे है कैथल की मुगलकालीन बावड़ी
शहर में पुराने अस्पताल के पास बनी प्राचीन बावड़ी मुगलकालीन इतिहास समेटे हुए है। प्राचीन होने के साथ इसे कैथल के मुख्य पर्यटन स्थलों के रूप में देखा जाता है।
जागरण संवाददाता, कैथल :
शहर में पुराने अस्पताल के पास बनी प्राचीन बावड़ी मुगलकालीन इतिहास समेटे हुए है। प्राचीन होने के साथ इसे कैथल के मुख्य पर्यटन स्थलों के रूप में देखा जाता है। शहर के बुजुर्गों का कहना है कि कोठी गेट के पास बने भाई उदय सिंह के किले से कैथल की महारानी महताब कौर इस बावड़ी में स्नान करने के लिए आती थी। जबकि इतिहासकारों का कहना है कि यह बावड़ी दिल्ली सल्तनत के समय बनाई गई थी। उस समय यह जल संग्रहण करने का प्रमुख स्त्रोत थी।
बावड़ी में सैनिकों के लिए जल का संग्रहण किया जाता था, ताकि युद्ध व अन्य परिस्थितियों में राज्य में पानी की कमी न रहे। इसका निर्माण कैथल राज्य के भाई शासकों द्वारा सन 1767 से 1843 के मध्य करवाया गया था।
बावड़ी के निचले हिस्से में बना है ऐतिहासिक कुआं :
निर्माण के समय यह पानी का एक बहुत बड़ा टैंक था। तीन मंजिल में गहराई तक इसे चूना, सुरखी और लाखौरी ईंटों से बनाया गया है। इस आकार स्टेपवेल में हैं, जिसमें अंदर जान के लिए सीढि़यां दी गई हैं। इस गुंबद के आकार में बनी छत से ढका गया है और अंदर जाने के लिए बनाई गई सीढि़यों के दोनों तरफ मोटी-मोटी पुरानी ईंटों की दीवारें बनाई गई हैं। अंदर जाने के लिए अस्पताल के मुख्य गेट के साथ ही इसका गेट बनाया गया है। इसके अलावा दीवारों पर भी ईंटों को काटकर कलाकारी की गई है।
जीर्णोद्धार की दरकार :
साहित्यकार एवं लेखक अमृत लाल मदान ने बताया कि अंग्रेजों के शासनकाल में भी जिले के लोगों ने बावड़ी का पूरा प्रयोग किया और लाभ उठाया। आज भी सरकार और जिला प्रशासन को ऐतिहासिक स्थलों की देखरेख के प्रबंध करने की जरूरत है। यह ऐतिहासिक और भव्यता समेटे हुए है। जिला प्रशासन की ओर से करीब साढ़े तीन वर्ष पहले सामाजिक संस्थाओं के सहयोग से कैथल के प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों के जीर्णोद्धार को लेकर कदम उठाया गया था, लेकिन बाद में इस मुद्दे को फिर ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। छोटी ईंटों से बनी दीवारों में से ईंटें बाहर निकल रही हैं। दीवारों में भी दरारें आ रही हैं। सामाजिक संस्थाएं इसके जीर्णोद्धार की मांग कर रही हैं।